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शिक्षाभारत

यूक्रेन से लौटे भारतीय छात्र कैसे पूरी कर पाएंगे पढ़ाई

२३ फ़रवरी २०२३

पिछले साल यूक्रेन यु्द्ध के कारण भारत लौटे हजारों भारतीय छात्रों के सामने शिक्षा पूरी करने का संकट है. वे अपने देश, अपने परिवार के बीच तो हैं लेकिन उनकी पढ़ाई युद्ध के कारण बाधित हो रही है. वे भविष्य को लेकर चिंतित हैं.

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मोहम्मद फैसल खान जैसे हजारों छात्र भारत में ही रहकर ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं
मोहम्मद फैसल खान जैसे हजारों छात्र भारत में ही रहकर ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैंतस्वीर: privat

मोहम्मद फैसल खान को आज भी याद है कि वे किस तरह से युद्धग्रस्त यूक्रेन से जान बचाकर भागे थे. फैसल उन हजारों भारतीय छात्र-छात्राओं में से हैं जो यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए गए थे. 24 फरवरी 2022 को रूस ने "विशेष सैन्य अभियान" का हवाला देते हुए कीव पर हमले शुरू कर दिए थे. बीते एक साल में युद्ध कभी सुस्त हुआ तो कभी तेज हुआ लेकिन उसका अंत नहीं हुआ, और ना ही उन हजारों भारतीय छात्रों व उनके माता-पिता को एक साल से चैन मिला.

उत्तर प्रदेश के बागपत के रहने वाले मोहम्मद फैसल ने साल 2021 में यूक्रेन के इवानो फ्रांकिस्क स्थित नैशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया था. जब युद्ध शुरू हुआ था तो वह प्रथम वर्ष में थे और अब वह दूसरे वर्ष में पहुंच गए हैं. लेकिन बीता एक साल उनके लिए तनाव भरा रहा. फैसल कहते हैं, "पिछले एक साल से हम ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं. युद्ध जब चरम पर था तो प्रोफेसर शेल्टरों से पढ़ाई करवाते थे. अब वहां यूनिवर्सिटी खुल गई है लेकिन मैं अभी वापस नहीं जा रहा हूं."

फैसल ने डीडब्ल्यू को बताया कि उनके माता-पिता युद्ध को लेकर चिंतित हैं और वे चाहते हैं कि हालात सामान्य होने पर ही वह वापस लौटे.

भारत में रहते हुए फैसल की पढ़ाई को लेकर चुनौतियां कम नहीं हैं. फैसल कहते हैं, "पिछले एक साल से सिर्फ ऑनलाइन पढ़ाई हो रही है. यहां और वहां समय का अंतर है. हम सिर्फ थ्योरी पढ़ रहे हैं और कोई प्रैक्टिकल नहीं कर पा रहे हैं."

युद्ध के कारण छात्रों को भारत वापस लौटना पड़ा
युद्ध के कारण छात्रों को भारत वापस लौटना पड़ातस्वीर: Manish Kumar

संकट में भविष्य

यूक्रेन में पढ़ने वाले करीब 18 हजार भारतीय छात्र-छात्राओं को युद्ध के कारण यूक्रेन से लौटना पड़ा था. वे अनिश्चित और अस्थिर भविष्य के साथ देश लौटे थे. कई अभी भी अपने देश में अपनी मेडिकल डिग्री पूरी करने के तरीकों की तलाश कर रहे हैं. उनमें से कई ऐसे भी हैं जिन्होंने भारत में अन्य कोर्स में दाखिला ले लिया है.

कोलकाता की रहने वाली तियाशा बनर्जी भी यूक्रेन से लौटने के बाद घर से ऑनलाइन पढ़ाई कर रही हैं. तियाशा कहती हैं कि यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करना और घर से ऑनलाइन पढ़ाई करने में बहुत फर्क है. वह कहती हैं, "जब हम यूनिवर्सिटी में होते हैं तो हम आसानी से प्रोफेसर तक पहुंच पाते हैं, लाइब्रेरी से लेकर लैब तक हमारी पहुंच होती है लेकिन अब ऑनलाइन क्लास में सिर्फ पढ़ाया जाता है और कई बार खराब इंटरनेट की वजह से ऑनलाइन क्लास भी प्रभावित होती है."

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का इंतजार

कई माता-पिता की शिकायत है कि सरकार इन छात्र-छात्राओं को भारतीय मेडिकल कॉलेजों में दाखिल नहीं करा पाई. यूक्रेन से लौटे छात्रों का मामला सुप्रीम कोर्ट में है. छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर भारत के मेडिकल कॉलेजों में दाखिले की मांग की है. इस मामले पर केंद्र सरकार ने एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया है.

25 जनवरी को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मेडिकल की शिक्षा पर समझौता नहीं कर सकते हैं. कोर्ट ने कहा कि वह विशेषज्ञ समिति की सिफारिश के अनुसार चलेगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विशेषज्ञ समिति जल्द ही इस बारे में अपनी सलाह देगी.

कोर्ट ने कहा कि उसके पास इस मामले में विशेषज्ञता नहीं है और इसलिए यह विशेषज्ञों की समिति पर निर्भर करता है कि वह फैसले ले कि किस वर्ग के छात्रों पर यह लागू होता है.

पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार की तरफ से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच को बताया कि कोर्ट के पहले आदेश का पालन करते हुए समिति का गठन हो चुका है और विशेषज्ञों की समिति एक बार बैठक कर चुकी है. भाटी ने अदालत से कहा समिति राज्य सरकारों के साथ विचार करना चाहती है. उन्होंने कहा कि यह अंतिम वर्ष के छात्रों के लिए है.

याचिकाकर्ताओं के वकील ने दलील दी थी कि यूक्रेन में युद्ध के उग्र होने के कारण वहां पढ़ने वाले पहले से पांच वर्ष के सभी छात्र प्रभावित हैं.

पिछले साल नवंबर में केंद्र सरकार ने एक हलफनामे में बताया था कि कुल 15,783 छात्र यूक्रेन के अलग-अलग विश्वविद्यालयों में नामांकित हैं, जिनमें से 15,000 से कम ऑनलाइन कक्षाएं ले रहे हैं और 640 यूक्रेन में ऑफलाइन शिक्षा हासिल कर रहे हैं. वहीं पिछले साल अक्टूबर से ही सैकड़ों छात्र यूक्रेन में पढ़ाई करने के लिए लौट गए हैं.

यूक्रेन से कैसे निकले थे छात्र और नागरिक

यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद, 22,500 से अधिक भारतीय नागरिकों ने पूर्वी यूरोपीय देश छोड़ दिया था. उनमें से ज्यादातर मेडिकल और इंजीनियरिंग के छात्र थे और उन्हें "ऑपरेशन गंगा" के तहत सुरक्षित भारत लाया गया था.

लैंड बॉर्डर पोस्ट के माध्यम से यूक्रेन से रोमानिया, पोलैंड, हंगरी, स्लोवाकिया और मोल्दोवा आने के बाद भारत ने अपने नागरिकों को वापस लाने के लिए यह ऑपरेशन चलाया था. भारत ने ऑपरेशन गंगा के तहत अपनी पहली निकासी उड़ान से 26 फरवरी 2022 को रोमानिया की राजधानी बुखारेस्ट से 219 भारतीयों को सुरक्षित मुंबई वापस लाया.

तियाशा कहती हैं कि कई बार ऑनलाइन क्लास के दौरान एयर सायरन बजने लगते हैं जिससे पढ़ाई प्रभावित होती हैं और उस दौरान प्रोफेसर सुरक्षित ठिकानों पर चले जाते हैं. तियाशा कहती हैं, "हम ऐसे कोर्स के लिए ऑनलाइन क्लास कर रहे हैं जो कि प्रैक्टिकल रूप से होनी चाहिए." फैसल और तियाशा जैसे कई छात्र इस बात को लेकर असमंजस में हैं कि उनकी मेडिकल डिग्री पूरी करने के लिए ऑनलाइन क्लास वैध हैं या नहीं.

छात्रों को कैसे आकर्षित करता है यूक्रेन?

यूक्रेन सरकार के 2020 के आंकड़ों के मुताबिक वहां पढ़ने वाले विदेशी छात्रों की संख्या 76 हजार से अधिक है. आंकड़ों के मुताबिक लगभग एक चौथाई छात्र अफ्रीका से थे, जिनमें सबसे बड़ी संख्या नाइजीरिया, मोरक्को और मिस्र के छात्र-छात्राओं की थी. इसके बाद करीब 20 हजार छात्रों के साथ भारत का नंबर आता है.

यूक्रेन में मेडिकल, इंजीनियरिंग और बिजनेस की पढ़ाई करने वाले छात्र देश की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं.

यूक्रेनी विश्वविद्यालयों को यूरोप के जॉब मार्केट के प्रवेश द्वार के रूप में देखा जाता रहा है. देश में शिक्षा सस्ती है, वीजा आसानी से मिल जाता है और यहां तक की पर्मामेंट रेसिडेंसी मिलने की संभावना अधिक होती है. इन्हीं कारणों से भारतीय छात्र यूक्रेन में पढ़ना पसंद करते हैं.