ना खून ना सेक्स, 46 साल से हिट है यह क्राइम शो
११ नवम्बर २०१६1970 के दशक से लगातार इस सीरियल ने ऑडियंस को बांध कर रखा है. और भारत के क्राइम शो सीआईडी की तरह इसका मजाक नहीं उड़ाया जाता.
हर रविवार रात को लोग पब में बियर और दोस्तों का साथ छोड़ कर भी चल देते हैं ताकि सवा आठ बजे टीवी के सामने बैठ सकें. जर्मनी के सबसे मशहूर डिटेक्टिव सीरियल टाटऑर्ट का यही वक्त है. ऐसे वक्त में जब नेटफ्लिक्स और अमेजन प्राइम जैसे ऑनलाइन प्लैटफॉर्म लोगों को टीवी से दूर कर रहे हैं, टाटऑर्ट की व्यूअरशिप पिछले नवंबर में 1.37 करोड़ पहुंच गई थी. 5 करोड़ जर्मन कहते हैं कि वे टाटऑर्ट का साल में कम से कम एक एपिसोड जरूर देखते हैं. यानी टाटऑर्ट की लोकप्रियता वैसी ही है जैसी कि जर्मन फुटबॉल लीग बुंडेसलीगा की.
और टाटऑर्ट की यह सफलता अद्भुत इसलिए भी है क्योंकि यह बाकी आधुनिक जासूसी धारावाहिकों से अलग है. इस शो में ना गोलीबारी होती है, ना कारों से पुलिस चोर का पीछा करती है, हां इतना जरूर है कि जांच अधिकारियों की ऐसी टीमें भी हैं जिनका नेतृत्व महिला अधिकारी करती हैं. सरकारी टीवी चैनल एआरडी पर दिखाया जाने वाला यह टीवी शो अक्सर असलियत के बहुत करीब होता है. इसके किरदार भी ऐसे हैं कि असल जिंदगी में उन्हें देखा जा सकता है. लेकिन इसकी सफलता का राज क्या है? इस शो पर एक डॉक्युमेंट्री के सह-लेखक पीटर डोएर्फलर कहते हैं, "यह टीवी शो क्यों सफल है, यह एक राज है जिसे कोई जान नहीं पाया है."
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टीवी के जानकार टाटऑर्ट की सफलता की अलग अलग वजह बताते हैं. कुछ लोग कहते हैं कि यह बदले समाज का आईना है जिसमें बैंक डकैतियों से लेकर मानव तस्करी, आईटी हैकिंग, नस्लवादी हमले और प्यार से जुड़े अपराध दिखाए जाते हैं. अक्सर टीवी शो में ऐसा अपराध दिखाया जाता है जिसके बारे में समाज में बात हो रही हो. लेकिन इसका कॉन्सेप्ट भी दमदार है. जर्मनी, स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रिया की 22 जासूसी टीमें इस शो में नजर आती हैं जो अलग अलग जर्मन बोलियां बोलते हैं. इस सीरीज के रचयिता गुंथर विटे कहते हैं, "जर्मनी बस एक बड़ा टुकड़ा नहीं है. इसमें बवेरिया है, उत्तरी भाग है, मैक्लेबुर्ग-वेस्टर्न पोमेरानिया का इलाका है, बर्लिन है." विटे ने जब यह सीरीज रची थी तब उन्हें लगा था कि यह दो साल तक चलेगी, लेकिन आज 46 साल बाद भी शो उतना ही लोकप्रिय है.
वीके/एमजे (एएफपी)