भोजन नहीं सेक्स की लालसा में लंबी हुई जिराफ की गर्दन
१० जून २०२२धरती पर जीवन के विकास और जैवविविधता के इतिहास में हम लोग ये समझने की कोशिश करते रहे हैं कि जिराफों की उत्पत्ति कैसे हुई. इस छानबीन की एक बड़ी वजह थी उसकी लंबी सुंदर लोच भरी गर्दन. मध्य युग के रोचक सिद्धांतों के मुताबिक जिराफ, पैंथरों और ऊंटों की संकर प्रजाति है. दूसरी थ्योरियों का ख्याल था कि जिराफ शांत कीमेर जैसे काल्पनिक जीव रहे होंगे या वे चीलिन नाम के मिथकीय चीनी प्राणी का संस्करण थे.
ब्रिटेन के प्रकृतिवादी वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन ने उत्पत्ति और प्राकृतिक चयन की मिसाल के रूप में जिराफ की गर्दन का उल्लेख किया था. डार्विन ने कहा था कि जिराफ की गर्दन की लंबाई लाखों साल की अवधि में बढ़ी थी, जिसकी बदौलत वे भोजन के स्रोत के रूप में ऊंचे पेड़ों की शाखाओं तक पहुंच सकते थे.
लेकिन हाल के वर्षों में वैज्ञानिकों ने एक अलग सिद्धांत पेश किया है जिसके मुताबिक जिराफ की गर्दन, जोरदार यौन भिड़ंतों के चलते लंबी हुई थी. "नेक्स फॉर सेक्स" के सिद्धांत के मुताबिक "गर्दनी" लड़ाई नर जिराफों के बीच यौन प्रतिस्पर्धा का एक रूप होती थी. अब प्रतिष्ठित पत्रिका 'साइंस' में प्रकाशित एक नये अध्ययन के मुताबिक इस बात के और पुख्ता साक्ष्य मिले हैं कि प्रारंभिक जिराफों के बीच उन भीषण लड़ाइयों ने चयन का दबाव बना दिया होगा जिसके चलते ज्यादा लंबी किस्म की गर्दन विकसित होने लगी होगी.
जिराफ को गर्दन कैसे मिली?
डिस्कोकेरिक्स चाइजी नाम के एक प्राचीन जीव के जीवाश्मों का अध्ययन करते हुए वैज्ञानिकों को ये नया साक्ष्य मिला. ये प्रजाति जिराफ का एक पूर्व संस्करण मानी जाती है जो खुले सवाना जंगलों में, कमोबेश आज के जिराफों की तरह, एक करोड़ 69 लाख साल पहले रहा करती थी.
वैज्ञानिकों ने पाया कि डी.चाइजी नस्ल की एक असामान्य सिर-गर्दन आकृति थी. क्रेनियम के शीर्ष पर मोटी बड़ी हड्डी का एक हेल्मेट था और गर्दन से नीचे रीढ़ की हड्डी अत्यधिक मोटी थी. डी.चाइजी को जिराफॉयड भी कहा जाता है. कहा जाता है कि अभी तक जितने भी ज्ञात स्तनपायी जीव हैं, उनमें इस जीव के सिर-गर्दन के जोड़ सबसे ज्यादा पेचीदा हैं.
इसकी हड्डियों का ढांचा उच्च गति के लिए, सिर से सिर पर टक्कर मारने के लिए अत्यधिक विशेषीकृत था. नर जिराफों के बीच ये यौन प्रतिस्पर्धा का एक संभावित रूप था. ज्यादा मजबूत और ज्यादा लंबी गर्दनों वाले जिराफ कमजोर प्रतिद्वन्द्वियों को धराशायी कर, मादा जिराफ के साथ संसर्ग करते थे. इस तरह उनकी जीन्स आगे जाती थी और एक चयन प्रक्रिया खुलने लगती थी.
एक करोड़ से कुछ अधिक साल के दरमियान हजारों पीढ़ियां पैदा हुईं, और जिराफ की गर्दन धीरे धीरे बड़ी होती गई, विज्ञान का ये मत है.
पीढ़ियों से चली आती सिर की टक्कर
जानवरों के बीच सिर से सिर टकराकर अपने आक्रामक व्यवहार का इजहार अभी भी एक सामान्य तरीका है, खासकर हिरन, भेड़, बारहसिंगा और जंगली सांड जैसे जानवरों में ये देखा जाता है. संसर्ग के लिए मुकाबले में और परभक्षियों से लड़ने में इसका इस्तेमाल होता है.
ये तमाम टकराहटें समय के साथ कई गंभीर चोटें भी दे सकती हैं. जैसे कि इंसानों में. लेकिन डी.चाइजी के साथ ऐसा नहीं था. शोधकर्ताओं का मानना है कि कि उस प्रजाति के पास सिर और गर्दन का अपने ढंग का एक मजबूत दैहिक गठन था जो नेकिंग यानी एक दूसरे को सहलाने-चुभलाने का प्रतिरोध कर सकता था.
उनका आकलन है कि डी.चाइजी का सिर सेकंड के भी एक हिस्से में, मस्तिष्क को जरा भी आघात पहुंचाए बिना बड़ी टकराहटों का सामना कर सकता था. हो सकता है उन जीवों की खोपड़ी की सामर्थ्य ने मस्तिष्क पर चोट के खतरे को कम कर दिया हो. शोधकर्ता ये भी कहते हैं कि अपनी प्रत्यक्ष, मासूम सुंदरता के बावजूद, आज के जिराफ, अपने स्पष्ट पूर्वज डी.चाइजी की तरह गर्दन से गर्दन भिड़ाने में, आज भी जुटे रहते हैं.