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समाज

तालिबान के समर्थकों के लिए नसीरुद्दीन का सवाल

२ सितम्बर २०२१

अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने हिंदुस्तान के उन मुसलमानों पर निशाना साधा है जो अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी का जश्न मना रहे हैं. उन्होंने हिंदुस्तानी इस्लाम को दुनिया में माने जाने वाले इस्लाम से अलग बताया है.

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तस्वीर: DW/J.Sehgal

15 अगस्त को काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद से ही दुनियाभर से मुसलमानों ने अलग-अलग प्रतिक्रियाएं दीं. अधिकतर मुसलमानों ने तालिबान का विरोध ही किया. लेकिन कुछ लोगों ने तालिबान के समर्थन में बयान दिए और अफगानिस्तान में उसकी वापसी का स्वागत भी किया. भारत में भी कुछ मुसलमानों ने तालिबान के समर्थन में बयान दिया था. अब मशहूर अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने ऐसे ही लोगों से बहुत सख्त सवाल किया है और एक वीडियो जारी कर उन्हें कड़ा संदेश दिया है.

नसीरुद्दीन ने अफगानिस्तान में तालिबानी राज लौटने पर खुशी मनाने वालों को अपने वीडियो में संदेश दिया. उन्होंने अपने वीडियो संदेश में कहा, "हालांकि अफगानिस्तान में तालिबान का दोबारा हुकूमत पा लेना दुनिया भर के लिए फिक्र की बात है, इससे कम खतरनाक नहीं है कि हिंदुस्तानी मुसलमानों के कुछ तबकों का उन वहशियों की वापसी पर जश्न मनाना. आज हर हिंदुस्तानी मुसलमान को अपने आप से ये सवाल पूछना चाहिए कि उसे अपने मजहब में सुधार और आधुनिकता चाहिए या वो पिछली सदियों के वहशीपन के साथ रहना चाहते हैं."

नसीरुद्दीन के इस बयान का सोशल मीडिया पर लोग समर्थन कर रहे हैं और तालिबान को वहशी बता रहे हैं.

नसीरुद्दीन ने अपने वीडियो में "हिंदुस्तानी इस्लाम" और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में माने जाने वाले इस्लाम का अंतर भी बताया. उन्होंने कहा, "मैं हिंदुस्तानी मुसलमान हूं और जैसा कि मिर्जा गालिब फरमा गए हैं, मेरा रिश्ता अल्लाह मियां से बेहद बेतकल्लुफ है. मुझे सियासी मजहब की कोई जरूरत नहीं है. हिंदुस्तानी इस्लाम हमेशा दुनिया भर के इस्लाम से अलग रहा है और खुदा वो वक्त न लाए कि वो इतना बदल जाए कि हम उसे पहचान भी न सकें."

नसीरुद्दीन के इस वीडियो को लोगों ने सोशल मीडिया पर तेजी से शेयर किया और उनके इस बयान का स्वागत किया.

अफगानिस्तान पर तालिबान के नियंत्रण के बाद भारत में कुछ मुस्लिम नेता और संगठन से जुड़े लोगों ने पक्ष में बयान दिया था.

बयान पर ऐतराज

नसीरुद्दीन के बयान पर कुछ लोगों ने ऐतराज जताया है और कहा है कि इस्लाम इस्लाम है. पत्रकार रिफत जावेद लिखते हैं, "भारतीय, पाकिस्तानी या तालिबानी इस्लाम नाम की कोई चीज नहीं है. इस्लाम क्षेत्र या उसके अनुयायियों के अनुसार नहीं बदलता है."

ट्विटर पर पत्रकार सबा नकवी सवाल करती हैं, "इतने सारे भारतीय मुसलमानों से क्यों तालिबान की निंदा करने के लिए कहा जा रहा है? क्या उन्होंने तालिबान को चुना, चुनाव किया या आमंत्रित किया? सिनेमा जगत के प्रतिभाशाली लोग इस पर बोलने के चक्कर में क्यों पड़ रहे हैं? यह एक जाल है."

नसीरुद्दीन के बयान के बाद सोशल मीडिया पर नई बहस छिड़ गई है. जहां एक तबका नसीरुद्दीन के बयान का समर्थन कर रहा है तो वहीं दूसरा उनके बयान का विरोध.

तालिबान पर खुशी किस बात की

तालिबान ने 1996 से 2001 से अफगानिस्ता पर राज किया था. उस दौरान देश में शरिया यानी इस्लामिक कानून लागू कर दिया गया था और महिलाओं के काम करने, लड़कियों के पढ़ने और बिना किसी पुरुष के अकेले घर से बाहर जाने जैसी पाबंदियां लगा दी गई थीं. तालिबान के दोबारा सत्ता में आने पर बहुत से लोगों को वैसे ही कानून दोबारा लागू होने का भय है.

तालिबान शासन के दौरान महिलाओं को शरीर और चेहरे को बुर्के से ढकने पड़ते थे. उन्हें शिक्षा से वंचित किया गया और काम नहीं करने दिया जाता था. महिलाएं बिना किसी पुरुष रिश्तेदार के घर से बाहर नहीं जा सकती थीं.

जो मुसलमान भारत में तालिबान की वापसी पर खुशी मना रहे हैं उन्हें देश में हर तरह की आजादी मिली हुई है, चाहे कपड़े पहनने की हो या फिर दाढ़ी नहीं रखने की. तालिबान अपने राज में उन मुसलमानों को भी सजा देता था जो दाढ़ी नहीं रखते थे और पारंपरिक परिधान सलवार कमीज नहीं पहनते थे.

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