मोहम्मद यूनुस: बांग्लादेश के 'गरीबों का बैंकर'
मोहम्मद यूनुस बांग्लादेश में अंतरिम सरकार का नेतृत्व करेंगे. बांग्लादेश के इकलौते नोबेल विजेता यूनुस को देश में हीरो माना जाता है, लेकिन शेख हसीना सरकार के कार्यकाल में उन पर 100 से भी ज्यादा मुकदमे थोपे गए.
अमेरिका में पढ़ाई
मोहम्मद यूनुस को "सबसे गरीब लोगों का बैंकर" के रूप में जाना जाता है. उनका जन्म 1940 में चिट्टागोंग के एक समृद्ध परिवार में हुआ. बड़े होकर उन्हें अमेरिका में पढ़ाई करने के लिए फुलब्राइट स्कॉलरशिप मिली. बांग्लादेश की आजादी के तुरंत बाद ही वो वापस आ गए.
अकाल से मिली प्रेरणा
वापस आने पर उन्हें चिट्टागोंग विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया लेकिन एक भयानक अकाल से गुजर रहे उनके देश की हालत उनसे देखी नहीं गई. उन्होंने खुद कहा था कि उन हालात में उन्हें अर्थशास्त्र के सिद्धांत पढ़ना बहुत कठिन लग रहा था और वो कुछ ऐसा करना चाहते थे जिससे लोगों की तुरंत मदद हो सके.
एक अनोखे बैंक की स्थापना
उन्होंने गरीबी की वजह से पारंपरिक लोन के लिए अयोग्य पाए जाने वाले लोगों को लोन दिलाने के कई तरीकों पर प्रयोग करने के बाद 1983 में ग्रामीण बैंक की स्थापना की. आज इस बैंक के 90 लाख से ज्यादा ग्राहक हैं, जिनमें से 97 प्रतिशत महिलाएं हैं.
महिलाओं के जरिए बदलाव
'ग्रामीण बैंक' के जरिए यूनुस ने ग्रामीण महिलाओं को बहुत ही छोटे लोन देने का अभियान शुरू किया. इन महिलाओं को कृषि उपकरण या व्यापार उपकरण खरीदने और अपनी कमाई बढ़ाने के लिए लोन की जरूरत थी.
'गरीबों का बैंकर'
ग्रामीण बैंक की बांग्लादेश में तेजी से हुए आर्थिक विकास को गति देने के लिए दुनियाभर में सराहना की गई. बाद में बैंक के इस काम को बीसियों विकासशील देशों में अपनाया गया. यूनुस और ग्रामीण बैंक को 2006 में गरीबी को कम करने में मदद करने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया.
समझा गया प्रतिद्वंदी
लेकिन बांग्लादेश में उनकी लोकप्रियता की वजह से वो तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना की आंखों में खटकने लगे. हसीना ने उन पर गरीबों का "खून चूसने" का आरोप लगाया. 2007 में यूनुस ने "नागरिक शक्ति" नाम की अपनी राजनीतिक पार्टी बनाने की योजना की घोषणा की. बाद में उन्होंने कुछ ही महीनों में अपनी इस योजना को वापस भी ले लिया, लेकिन उनकी इस योजना को एक चुनौती की तरह लिया गया.
कानूनी चक्रव्यूह में फंसे
यूनुस के खिलाफ 100 से भी ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज किए गए. सरकार की एक इस्लामिक एजेंसी ने उनपर समलैंगिकता को बढ़ावा देने का आरोप भी लगाया और उन्हें बदनाम करने की पूरी कोशिश की. 2011 में सरकार ने उन्हें जबरन ग्रामीण बैंक से भी निकलवा दिया. यूनुस ने इस फैसले को चुनौती दी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को सही ठहराया.
जेल की सजा
जनवरी, 2024 में ढाका की एक श्रम अदालत ने उन्हें और उनके तीन साथियों को उनकी एक कंपनी में श्रमिक कल्याण कोष नहीं बनाने का दोषी ठहराया और छह महीने की जेल की सजा सुनाई. हालांकि उन्हें फैसले को चुनौती देने तक जमानत पर बरी भी कर दिया.
सत्य की जीत
इन चारों ने उन पर लगे आरोपों से इनकार किया. उस समय बांग्लादेश की अदालतों पर हसीना सरकार के फैसलों पर मोहर लगाने के आरोप लग रहे थे. इस मामले की भी इसी आधार पर आलोचना की गई. दुनियाभर में कई लोगों और एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे संस्थानों ने भी इस फैसले की आलोचना की. छह अगस्त को ढाका की एक अदालत ने यूनुस को बरी कर दिया. - सीके/एए (एएफपी)