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विज्ञानदक्षिण अफ्रीका

ऑस्ट्रेलोपिथेकस भी नहीं खाते थे मांस तो फिर किसने शुरू किया

१७ जनवरी २०२५

भोजन में मांस का शामिल होना मानव की उत्पत्ति और विकास के लिए काफी अहम साबित हुआ. दिमाग के विकास के लिए में उसने उत्प्रेरक की भूमिका निभाई. वैज्ञानिक ये नहीं पता कर पा रहे कि मांस भोजन में शामिल कब हुआ और यह किसने किया.

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जर्मनी के ह्यूमन इवॉल्यूशन म्यूजियम में 'लूसी' की तस्वीर
ऑस्ट्रेलोपिथेकस का दिमाग चिंपैंजी से बड़ा और आधुनिक मानव यानी होमो सेपिएंस से छोटा होता हैतस्वीर: Martin Meissner/AP Photo/picture alliance

एक नई रिसर्च ने पहली बार इस बात के सीधे सबूत दिए हैं कि ऑस्ट्रेलोपिथेकस मांस बहुत कम या फिर बिल्कुल नहीं खाता था और शाकाहार से ही काम चलाता था. विज्ञान ऑस्ट्रेलोपिथेकस को मानव के विकास की अहम कड़ी माना जाता है. इंसान का यह पूर्वज कपियों और इंसानों के मिले जुले गुणों वाला था. रिसर्च के दौरान सात ऑस्ट्रेलोपिथेकस की जांच से नतीजे निकाले गए हैं. दक्षिण अफ्रीका के इन आदिमानवों का जीवाश्म करीब 37 से 33 लाख वर्ष पुराना है. इनके दांतों के एनामेल के रसायनों की जांच से अहम सुराग मिले हैं. 

दिमाग के विकास में मांसाहार की भूमिका

जर्मनी के माक्स प्लांक इंस्टिट्यूट फॉर केमिस्ट्री की भूरसायनशास्त्री  टीना ल्यूडेके का कहना है, "मानव के विकास के दौरान मांस ने बड़े दिमाग के विकास में अहम भूमिका निभाई होगी. जीव संसाधन कैलोरी और जरूरी पोषक तत्वों, खनिजों और विटामिनों का एक संघनित स्रोत है जो बड़े आकार के दिमाग के लिए जरूरी होते हैं." ल्यूडेके दक्षिण अफ्रीका की विटवाटर्सरैंड यूनिवर्सिटी से भी जुड़ी हैं और इस रिसर्च रिपोर्ट की प्रमुख लेखक हैं. यह रिपोर्ट गुरुवार को साइंस जर्नल में छपी है.

दक्षिण अफ्रीका का वह इलागा जहां ऑस्ट्रेलोपिथेकस के जीवाश्म मिले
दक्षिण अफ्रीका में मिले जीवाश्म 37 से 33 लाख साल पुराने हैंतस्वीर: Dominic Stratford/University of the Witwatersrand/REUTERS

ल्यूडेके ने यह भी बताया, "हमारे आंकड़े इस अनुमान को चुनौती देते हैं कि मांस ऑस्ट्रेलोपिथेकस के भोजन का एक जरूरी हिस्सा था, भले ही इनसे जुड़े पत्थर के कुछ औजारों और काटने के निशाने वाले हड्डियों के नमूने मिले हैं."

रिसर्च के नतीजे बताते हैं कि मांस का उपभोग बाद में शुरू हुआ या तो ऑस्ट्रेलोपिथेकस की बाद में आई अलग प्रजातियों में या फिर मानव विकास की दूसरी प्रजातियों के वंश में. इन सब प्रजातियों को सामूहिक रूप से होमिनिन कहा जाता है.

ऑस्ट्रेलोपिथेकस पूर्वी और दक्षिण अफ्रीका में करीब 42 लाख से लेकर 19 लाख साल पहले तक रहे थे. आधुनिक मानव यानी होमो सेपियंस का उद्भव करीब 3 लाख साल पहले हुआ था.

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सातों जीवाश्म शाकाहारी निकले

जिन सात आदिमानवों पर अध्ययन किया गया है वो सभी शाकाहारी थे. ल्यूडेके का कहना है, "आधुनिक गैर मानव प्राइमेट जैसे कि चिंपैंजी और बबून की तरह कभी कभार मांस का उपभोग संभव हो सकता है लेकिन हमारे आंकड़े दिखाते हैं कि खाना मुख्य रूप से पेड़ पौधों से मिलने वाली चीजों का ही था." इसमें फल, पेड़ों की पत्तियां और सवाना के कुछ फूल वाले पौधे शामिल हो सकते हैं.

ऑस्ट्रेलोपिथेकस का चेहरा कपि जैसा था और हमारी प्रजाति की तुलना में इसके दिमाग का आकार एक तिहाई था. इसके हाथ तुलनात्मक रूप से लंबे और घुमावदार ऊंगलियां थीं, जो पेड़ों पर चढ़ने के लिए अच्छे थे. यह दो पैरों पर खड़ा हो कर सीधा चलता था.

दक्षिण अफ्रीका में मिले जीवाश्मों के दांत का डाइग्राम
दांतों के इनेमल के रसायनों की जांच से वैज्ञानिकों को ऑस्ट्रेलोपिथेकस के शाकाहारी होने का सबूत मिला हैतस्वीर: Dominic Jack/Max Planck Institute for Chemistry/REUTERS

ल्यूडेके का कहना है, "ऑस्ट्रेलोपिथेकस दो पैरों पर चलना शुरू होने के और शुरुआती औजारों के इस्तेमाल के बारे में अहम जानकारी देते हैं. उनका दिमाग हमसे छोटा था लेकिन यह आधुनिक चिंपैंजियों की तुलना में थोड़ा बड़ा था."

सबसे विख्यात ऑस्ट्रेलोपिथेकस के जीवाश्म को लूसी नाम दिया गया था. यह इथियोपिया में साल 1974 में मिला था. इसकी उम्र करीब 32 लाख साल थी. लूसी संभवतया महिला थी और उसकी लंबाई करीब 3.5 फीट थी. नर इसकी तुलना मे ज्यादा लंबे थे.

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भोजन का रसायन

कोई भी जीव जो खाता है, उसके रसायन उसके ऊतकों मे समाहित हो जाते हैं, यहां तक कि दांत के एनामेल जैसे कठोर हिस्से में भी जो जीवाश्म बनने की प्रक्रिया में सहायक हैं. रिसर्चरों ने सात जीवाश्मों के मोलर का परीक्षण किया. ये सभी दक्षिण अफ्रीका में जोहानेसबर्ग के पास स्टर्कफोन्टाइन गुफा से मिले थे. यह वो इलाका है जो होमिनिन के जीवाश्मों के लिए जाना जाता है.

ऑस्ट्रेलोपिथेकस के दांतों में नाइट्रोजन के दो आइसोटोप बिल्कुल उसी तरह समाहित हैं जैसा कि उस दौर के इकोसिस्टम में रहने वाले एंटेलोप जैसे शाकाहारी जीवों में. लकड़बग्घा, तेंदुआ और दूसरे मांसाहारी जीवों के जीवश्मों से यह काफी अलग है.

मांस खाने वाले इंसान के सबसे पुराने सबूत इथियोपिया में ही 34 लाख साल पहले के जीवाश्मों में मिले हैं. इनमें जानवरों की कटने के निशान वाली हड्डियां भी शामिल हैं. हालांकि क्या इन्हें मांस काटने का सबूत माना जाए इसे लेकर अब भी बहस जारी है.

बर्लिन के एक सुपरमार्केट में बेचने के लिए रखा मांस
मनुष्य के विकास का प्रमुख जरिया बना मांस उसके भोजन में कब शामिल हुआ इसका ठीक ठीक पता नहीं हैतस्वीर: Fabrizio Bensch/REUTERS

ऑस्ट्रेलोपिथेकस का दिमाग दूसरे होमिनिन की तुलना में छोटा था. इससे यह मतलब निकालना कि वह स्तनधारियों का मांस ज्यादा नहीं खाता था इस सिद्धांत से मेल खाता है कि भोजन में बदलाव ने इंसानों के दिमाग के विकास में अहम भूमिका निभाई थी. रिसर्च रिपोर्ट के सह लेखक अलफ्रेडो मार्तिनेज गार्सिया का कहना है, "अगर हमें यह पता चला होता कि ऑस्ट्रेलोपिथेकस ज्यादा मांस खाता था तह हम यह नतीजा निकालते कि होमिनिन प्रजातियों में दिमाग का विस्तार मांस खाने की वजह से नहीं था.

मांस खाने की वजह से शरीर के डील डौल में भी काफी बढ़ोतरी हुई, धड़ का आकार छोटा हुआ, इसके अलावा सामाजिक जटिलताएं और औजारों का इस्तेमाल भी शुरू हुआ.

ल्यूडेके का कहना है, "अहम सवाल अब भी बना हुआ है कि सबसे पहले मांस खाना किसने शुरू किया, और कब यह संसाधन इतना अहम हो गया कि शारीरिक अनुकूलनों का संचालन करने लगा?"

एनआर/एसके (रॉयटर्स)