तेजी से फैल रहा है लंपी त्वचा रोग
१० अगस्त २०२२बीते कुछ हफ्तों में कई राज्यों में लंपी त्वचा रोग तेजी से फैला है, जिसकी वजह से हजारों गायों की मौत हो गई है. संक्रमित गायों की संख्या और बड़ी होने का अनुमान है.
कुछ मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक अभी तक कम से कम 8,000 गायों की मौत हो चुकी है और 25,000 से 30,000 गायें संक्रमित हैं. शुरू में सिर्फ राजस्थान और गुजरात में इसके मामले सामने आए थे लेकिन अब पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश से भी संक्रमण की खबरें आ रही हैं.
क्या होता है लंपी त्वचा रोग?
यूरोप के फूड सेफ्टी प्राधिकरण के मुताबिक यह मवेशियों में फैलने वाली एक वायरल बीमारी है. यह खून पीने वाले मक्खियों, मच्छरों जैसे कीड़ों की कुछ खासी प्रजातियों द्वारा फैलाया जाता है. इससे मवेशियों को बुखार होता है, त्वचा पर गांठें निकल आती हैं, दूध की मात्रा कम हो जाती है और कई मामलों में मौत भी हो जाती है.
संक्रमित मवेशियों में कई लक्षण लंबे समय तक या स्थायी रूप से भी मौजूद रह सकते हैं. इससे ठीक होने में भी समय लगता है. यह बीमारी कई अफ्रीकी देशों में और मध्य एशिया में मौजूद है. 2012 में यह मध्य एशिया होते हुए दक्षिण-पूर्वी यूरोप में भी फैल गई थी.
यूरोप में तो अब एक टीकाकरण कार्यक्रम से इसके प्रसार पर काबू पा लिया गया है, लेकिन अब यह पश्चिमी और केंद्रीय एशिया में भी फैल गई है. 2019 से दक्षिण एशिया में भी इसके मामले सामने आए हैं.
यह संक्रमण पॉक्सविरिडे नाम के वायरस से होता है. जेनेटिक रूप से इसे गोट पॉक्स और शीप पॉक्स वायरस परिवार से संबंधित माना जाता है. वर्ल्ड आर्गेनाईजेशन फॉर एनिमल हेल्थ (डब्ल्यूओएएच) के मुताबिक इस बीमारी में एक से लेकर पांच प्रतिशत तक की मृत्यु दर होती है.
क्या यह रोग इंसानों में भी फैलता है?
विशेषज्ञों का कहना है कि यह इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है और सिर्फ टीके से ही इससे बचाव किया जा सकता है. राहत की बात यह है कि डब्ल्यूओएएच के मुताबिक यह एक जूनोटिक बीमारी नहीं है, यानी यह इंसानों में नहीं फैल सकती है.
मवेशियों को इससे बचाने के लिए कई तरह के टीके उपलब्ध हैं. भारत में इस समय इसके लिए गोट पॉक्स टीके का इस्तेमाल किया जा रहा है. कई राज्य मवेशी पालकों के लिए यह टीका निशुल्क उपलब्ध करा रहे हैं.
केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने ट्वीट कर जानकारी दी है कि सरकार ने इस बीमारी की रोकथाम के लिए लंपी प्रो वैक नाम का नया टीका उपलब्ध करना शुरू किया है.
इस टीका का निर्माण राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र, हिसार तथा भारतीय पशु चिकित्सा संस्थान इज्जतनगर ने मिल कर किया है. उम्मीद की जा रही है कि जल्द इस टीके के पूरे देश में प्रसार पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा. साथ ही इस बीमारी से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए विस्तृत दिशानिर्देशों का भी इन्तजार किया जा रहा है.