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भीषण है जलवायु संकट, पर बच्चों को कैसे समझाएं

हॉली यंग
१६ फ़रवरी २०२४

साल 2019 में इटली जलवायु परिवर्तन को पाठ्यक्रम में अनिवार्य विषय बनाने वाला दुनिया का पहला देश बना. लेकिन एक बड़ा सवाल है कि क्या दुनिया भर के बच्चों को स्कूल में ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण पर जरूरी शिक्षा मिल रही है?

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नॉर्वे में प्री-स्कूल के 11,000 से ज्यादा बच्चों को हाइकिंग पर ले जाया गया, ताकि वो आउटडोर गतिविधियों में दिलचस्पी लें.
कई शिक्षक मानते हैं कि अगर स्कूली बच्चों को प्रकृति के बीच जाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए, तो इसका काफी सकारात्मक असर पड़ेगा. वो प्रकृति के साथ ज्यादा बेहतर तरीके से जुड़ पाएंगे. तस्वीर: Emilie Holtet/NTR/AP/picture alliance

नाखूनों में गंदगी भरी उंगलियों से आंखों की पुतलियां साफ करना मोनिका कैपो को पसंद है. उनका प्राथमिक विद्यालय इटली के नेपल्स में है. इसके बगीचे में वह छात्रों को फूल लगाने और सब्जियां तोड़ने का तरीका बताती हैं. चूंकि बच्चों के लिए जलवायु परिवर्तन एक कठिन और जटिल विषय हो सकता है, इसलिए वह इसे सरल और व्यावहारिक तरीके से समझाने की कोशिश करती हैं.

वह कहती हैं, "मैं चाहती हूं कि ये बच्चे प्रकृति से प्यार करें, उससे घिरे रहें.” कैपो का मानना है कि यह तरीका उस चीज को समझने का प्रवेश द्वार है, जो दांव पर लगा है. साल 2019 में इटली ने घोषणा की कि वह जलवायु परिवर्तन को राष्ट्रीय पाठ्यक्रम में अनिवार्य विषय बनाने वाला दुनिया का पहला देश बन जाएगा. स्कूलों से कहा गया गया कि अब 6-19 आयु वर्ग के बच्चों को हर साल 33 घंटे जलवायु परिवर्तन की शिक्षा देनी होगी.

कैपो इन घंटों का उपयोग विषय को ठोस उदाहरणों के जरिए समझाने में कम करती हैं. जैसे कि पेड़ कैसे उगाएं, रीसाइक्लिंग करें, पानी बचाएं, ऊर्जा की खपत कम करें या हमें फास्ट फैशन से क्यों बचना चाहिए, वगैरह. कैपो कहती हैं, "मैं उन्हें डराने की कोशिश नहीं करती, लेकिन जितनी जल्दी वे सीखना शुरू करेंगे उतना बेहतर होगा क्योंकि अभी मेरे छात्रों की उम्र 6 से 11 साल के बीच है.”

इटली समेत कई देशों में चरम मौसमी गतिविधियों की नियमितता बढ़ गई है.
बीते साल इटली को खतरनाक बाढ़ और चरम तापमान से जूझना पड़ा. तस्वीर: Andreas Solaro/AFP

आज के बच्चों का अनिश्चित भविष्य

कैपो को अच्छी तरह पता है कि बढ़ता तापमान उनके छात्रों के भविष्य को बदल देगा. उनकी उम्र के बच्चे अपने जीवनकाल में पूर्व-औद्योगिक युग के बाद से अब तक 1.5 डिग्री सेल्सियस की तापमान वृद्धि से उपजे ग्लोबल वार्मिंग के कारण चरम मौसमी स्थितियों का अनुभव कर रहे हैं. यानी सूखा, जंगल की आग और बाढ़ जैसी मौसम की चरम घटनाओं में करीब चार गुना वृद्धि का अनुभव कर रहे हैं.

करीब एक अरब बच्चे पहले से ही जलवायु-संबंधी दिक्कतों जैसे जल की कमी, बीमारी और विस्थापन के खतरे झेल रहे हैं. उनके आगे बढ़ने और जीवित रहने की क्षमता पर खतरा इतना ज्यादा है कि संयुक्त राष्ट्र, जलवायु परिवर्तन को बाल अधिकार संकट के रूप में देखता है. फिर भी, जब बदलती दुनिया को समझने और मार्गदर्शन करने के लिए के लिए युवाओं को उपकरणों से लैस करने की बात आती है, तो सभी स्कूल सामंजस्य नहीं बिठा पा रहे हैं.

एक मिश्रित स्कोरकार्ड

पेरिस समझौते में जलवायु संकट से निपटने में शिक्षा को एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में मान्यता देने के बावजूद, समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले एक तिहाई से भी कम देशों ने वास्तव में अपनी राष्ट्रीय जलवायु प्रतिबद्धताओं में स्कूली शिक्षा का उल्लेख किया है.

ये प्रतिबद्धताएं देशों से होते हुए कक्षाओं तक पहुंच चुकी हैं. साल 2021 में यूनेस्को ने 100 देशों के राष्ट्रीय पाठ्यक्रमों का विश्लेषण किया, तो महज आधे में ही जलवायु परिवर्तन का उल्लेख मिला. संयुक्त राष्ट्र द्वारा सर्वेक्षण में शामिल करीब 70 फीसद युवाओं ने कहा कि उनके पास जलवायु परिवर्तन को समझने या समझाने का ज्ञान नहीं है. ब्रिटेन में साल 2020-2021 के बीच चलाए गए एक सर्वेक्षण में एक तिहाई से ज्यादा विद्यार्थियों ने बताया कि उन्होंने स्कूल में पर्यावरण के बारे में बहुत कम या कुछ भी नहीं सीखा है.

स्टेफानिया गियानी, यूनेस्को में असिस्टेंट डायरेक्टर जनरल फॉर एजूकेशन हैं. वह बताती हैं कि इन सबके बावजूद रिकॉर्ड तापमान और चरम मौसमी घटनाओं के माध्यम से जलवायु संकट की बढ़ती वास्तविकता ने इस मुद्दे पर वैश्विक सहमति बनाने में मदद की है कि ‘बच्चों को संवेदनशील बनाना होगा और समाधान का हिस्सा बनने के लिए सही उपकरण प्रदान करने होंगे.'

नाइजीरिया में एक अभियान शुरू किया गया, जिसमें अभिभावक अपने बच्चे की स्कूल फीस के बदले इस्तेमाल हो चुकीं प्लास्टिक की बोतलें दे सकते हैं.
कई बच्चे और किशोर बताते हैं कि उन्हें स्कूल में जलवायु परिवर्तन पर पर्याप्त शिक्षा नहीं मिल रही है. तस्वीर: DW

शीर्ष पर आने वाले देश

हालांकि इटली के पाठ्यक्रम में बदलाव के प्रभाव को मापने के लिए कोई आधिकारिक आंकड़े नहीं हैं, लेकिन एसोसिएशन ऑफ इटालियन स्कूल टीचर्स एंड मैनेजर्स के मुताबिक, इसने कक्षाओं में हलचल तो पैदा कर ही दी है. शिक्षकों से सकारात्मक प्रतिक्रियाएं भी मिली हैं. कैपो का कहना है कि पाठ्यपुस्तकों में बदलाव किए गए हैं और शिक्षकों और स्कूलों को अधिक संसाधन दिए गए हैं.

एक बात और है कि जलवायु शिक्षा के मामले में सबसे पहले ध्यान आकर्षित करने वाले देशों में इटली ही एकमात्र देश नहीं है. न्यूजीलैंड ने भी इस दिशा में काफी काम किया है. वहां के स्कूली पाठ्यक्रमों में हालांकि यह एक अनिवार्य विषय तो नहीं है, लेकिन सभी माध्यमिक विद्यालयों में साल 2020 से ही जलवायु परिवर्तन पर प्रमुख वैज्ञानिक संस्थाओं की ओर से लिखित और प्रकाशित सामग्री उपलब्ध कराई जा रही है.

इनमें जलवायु परिवर्तन से जुड़े कार्यकर्ताओं की कहानियां और पर्यावरण से जुड़े खतरों के बारे में छात्रों से कैसे बात करें, जैसे विषय शामिल हैं. साल 2019 में मेक्सिको ने भी देश की शिक्षा प्रणाली में पर्यावरण की समझ और सुरक्षा को मान्यता देने के लिए संविधान में बदलाव किया.

जलवायु शिक्षा का कोई ऐसा प्रारूप नहीं है, जो सभी जगहों पर लागू हो. अलग-अलग इलाकों की चुनौतियां अलग-अलग हैं.
मेक्सिको उन चुनिंदा देशों में है, जो जलवायु शिक्षा को बढ़ावा दे रहे हैं. तस्वीर: Keith Dannemiller/ZPress/dpa/picture-alliance

कोई सार्वभौमिक दृष्टिकोण नहीं है

स्टेफानिया गियानी का मानना ​​है कि जलवायु शिक्षा के लिए कोई एक ऐसा मॉडल नहीं है, जो सभी जगह फिट हो सके. उनके मुताबिक, यह नाइजीरिया के एक छोटे से गांव की तुलना में बर्लिन या रोम में अलग दिखेगा और स्कूलों के पास इसे अपनी खास जरूरतों के मुताबिक आकार देने की शक्ति होनी चाहिए.

गियानी का कहना है कि पाठ्यक्रम को इस तरह से अपडेट करना जो बेहद धीमी गति से हो और राजनीतिक रूप से संवेदनशील हों, बदलाव का एकमात्र साधन नहीं है. उनका तर्क है कि शिक्षा प्रणालियों में बदलाव के लिए अधिक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है. जैसे, जलवायु परिवर्तन शिक्षा में व्यापक स्थानीय समुदाय को शामिल करना, यह सुनिश्चित करना कि स्कूल भवन लगातार बनाए और चलाए जाएं और शिक्षकों के प्रशिक्षण को बढ़ाया जाए.

अध्यापकों को शिक्षित करने की जरूरत

ऑस्ट्रेलिया में एक स्वतंत्र शोध संस्थान, अकैडमी ऑफ दी सोशल साइंसेज की ओर से की गई 2023 की वैश्विक जलवायु शिक्षा समीक्षा के अनुसार, शिक्षकों के लिए इस विषय पर ज्ञान और प्रशिक्षण की कमी की चर्चा करना बहुत जरूरी है. कैपो एक उत्साही जलवायु कार्यकर्ता हैं और 'टीचर्स फॉर फ्यूचर इटली' की संस्थापक हैं. यह संस्था 'फ्राइडेज फॉर फ्यूचर' की एक शाखा है, जो कि जलवायु आंदोलन से जुड़े युवाओं की संस्था है. जब जलवायु परिवर्तन सिखाने के संबंध में आत्मविश्वास की बात आती है, तो कैपो उत्साह से भर जाती हैं.

शिक्षकों को भी जलवायु परिवर्तन और इसके समाधानों के बारे में ज्यादा प्रशिक्षित बनाना होगा.
रोम में 'फ्राइडे फॉर फ्यूचर' के एक प्रदर्शन में हिस्सा लेती किशोर कार्यकर्ता. तस्वीर: Christian Minelli/NurPhoto/picture alliance

यूनेस्को के 100 देशों के सर्वेक्षण में सिर्फ 40 फीसद शिक्षक ही जलवायु परिवर्तन की गंभीरता को समझाने में आत्मविश्वास दिखा सके. यूरोप में शिक्षकों के साल 2020 में किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि उनमें इस विषय से जुड़ी विशेषज्ञता की कमी का प्रमुख कारण यही है कि उनके पाठ्यक्रमों में जलवायु शिक्षा को शामिल नहीं किया गया था.

छात्रों को सशक्त करना

कैपो के मुताबिक, जलवायु संकट से निपटने के लिए क्लासरूम सबसे शक्तिशाली उपकरणों में से एक है. यह युवाओं के लिए एक सीधी रेखा है, जहां उनके जैसे शिक्षक तथ्य प्रस्तुत कर सकते हैं और गलत सूचना को दूर कर छात्रों की जिज्ञासा और भ्रम का समाधान कर सकते हैं. उनके छात्रों ने बहुत सी बातें ऑनलाइन पढ़ी हैं या फिर इटली की उस सरकार की ओर से कही गई बातें सुनी हैं, जो जलवायु परिवर्तन से जुड़े मसलों को संदेह की दृष्टि से देखती है.

कैपो कहती हैं, "टिकटॉक पर, जलवायु परिवर्तन के बारे में बहुत सारी गलत सूचनाएं हैं और छात्रों को फर्जी खबरों से दूर रखते हुए सच्चाई बताकर उन्हें शिक्षित करना जरूरी है.” उनका यह भी कहना है कि ज्यादातर लोग रुचि रखते हैं, लेकिन थोड़ा डरे हुए हैं. वह ऐसे लोगों को यह दिखाने की कोशिश करती हैं कि जानकारी और कार्रवाई से ही डर को संतुलित किया जा सकता है. कैपो कहती हैं, "मैं चाहती हूं कि कक्षा में हर कोई यह जाने कि हम कुछ कर सकते हैं और अभी भी उम्मीद बाकी है. हमें बदलाव लाने के लिए उम्मीद की जरूरत है.”