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समलैंगिक जोड़े को केरल हाई कोर्ट ने मिलाया

१ जून २०२२

आदिला और फातिमा के माता-पिता ने दोनों को जबरन एक दूसरे से अलग कर दिया था, लेकिन एक हेबियस कोर्पस याचिका पर सुनवाई करने के बाद केरल हाई कोर्ट ने उन्हें मिलवा दिया.

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तस्वीर: ZUMA Wire/imago

22 साल की आदिला नाजरीन और फातिमा नूरा पहले सऊदी अरब में रहती थीं और पांच साल पहले वहीं दोनों को एक दूसरे से प्रेम हो गया था. दोनों के परिवार उनके संबंध के खिलाफ थे. 2019 में दोनों लड़कियां अपने अपने परिवार को सऊदी में ही छोड़ कर केरल आ गईं.

इसके बावजूद दोनों के परिवारों का विरोध जारी रहा. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक परिवारों द्वारा प्रताड़ित किए जाने के बाद दोनों ने एलजीबीटीक्यूआई समुदाय के लोगों की मदद करने वाली कोझिकोड स्थित संस्था 'वान्या कलेक्टिव' की शरण ली.

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परिवार ने किया प्रताड़ित

उसके बाद नूरा के परिवार वालों ने उसे वहां से जबरदस्ती ले जाने की कोशिश की लेकिन पुलिस की मदद से इस कोशिश को विफल कर दिया गया. लेकिन परिवारों ने दोनों को अलग करने की कोशिशें जारी रखीं.

समलैंगिकता
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में ही फैसला दे दिया था कि समलैंगिकता कोई अपराध नहीं हैतस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/N. Kachroo

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक आदिला के माता पिता ने उसके और फातिमा के प्रेम को स्वीकार करने का झूठ बोल कर दोनों को बहला फुसला कर अलुवा स्थित अपने घर पर बुला लिया. लेकिन वहां से फातिमा का परिवार उसे जबरदस्ती अपने साथ ले गया. आदिला का आरोप है कि उसके माता पिता ने उसके साथ मारपीट भी की.

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शनिवार 28 मई को फातिमा ने फेसबुक पर एक वीडियो डाल कर मदद की गुहार लगाई, जिसमें उसने यह भी बताया कि फातिमा के माता पिता उसे अवैध कन्वर्जन थेरेपी कराने के लिए मजबूर कर रहे हैं.

कानूनी लड़ाई जारी है

इसके बाद आदिला ने पुलिस से शिकायत की और फिर केरल हाई कोर्ट में एक हेबियस कोर्पस याचिका दायर की. अदालत में याचिका को मंजूर कर लिया और फिर उसके आदेश पर पुलिस फातिमा को अदालत के सामने ले आई.

समलैंगिक विवाह
भारत में अभी भी समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता नहीं मिली हैतस्वीर: Zoonar/picture alliance

फातिमा ने जस्टिस के विनोद चंद्रन और सी जयचंद्रन की एक डिवीजन बेंच को बताया कि वह आदिला के साथ रहना चाहती है, जिसके बाद बेंच ने उसे आदिला के साथ भेज दिया. पीठ ने कहा कि दोनों लड़कियां वयस्क हैं और दो वयस्कों के एक साथ रहने में कोई कानूनी बाधा नहीं है.

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यह मामला एलजीबीटीक्यूआई समुदाय के लोगों के साथ पेश आने वाली मुश्किलों को रेखांकित करता है. सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में ही फैसला दे दिया था कि समलैंगिकता कोई अपराध नहीं है, लेकिन इसके बावजूद समलैंगिक जोड़ों को निरंतर परिवार और समाज के विरोध का सामना करना पड़ता है.

कानून की तरफ से भी अभी समलैंगिकता को पूरी तरह से स्वीकारा जाना बाकी है. भारत में अभी भी समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता नहीं मिली है. इसके लिए कई अदालतों में याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है.

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