अविवाहित महिलाओं के बच्चों के भी हैं अधिकार: अदालत
२५ जुलाई २०२२केरल हाई कोर्ट ने ये बातें एक याचिका पर फैसला देते समय कहीं. याचिका में जन्म प्रमाण पत्र में से पिता का नाम हटाने और सिर्फ मां के नाम के साथ नया प्रमाण पत्र जारी किए जाने की अपील की गई थी.
याचिका मंजूर करते हुए न्यायमूर्ति पीवी कुन्हीकृष्णन ने कहा कि अविवाहित महिला की संतान भी देश की नागरिक है और उसे संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों को कोई नहीं छीन सकता.
उन्होंने आगे कहा, "अविवाहित महिलाओं और बलात्कार पीड़ितों के बच्चों को भी इस देश में निजता, स्वतंत्रता और इज्जत से जीने के मूलभूत अधिकार प्राप्त हैं. कोई भी उनके निजी जीवन में दखल नहीं दे सकता है और अगर ऐसा होता है तो अदालत उनके अधिकारों की रक्षा करेगी."
कुन्हीकृष्णन ने यह भी कहा कि "बास्टर्ड" या अवैध संतान शब्द को शब्दकोष से तो नहीं निकाला जा सकता लेकिन हमें देश में ऐसे हालात बनाने चाहिए जिनमें हमें इस शब्द का इस्तेमाल करने की जरूरत ना पड़े.
सुप्रीम कोर्ट का भी है आदेश
इस मामले में दो याचिकाकर्ता थे - महिला और उसका बेटा. महिला नाबालिग अवस्था में ही गर्भवती हो गई थी और फिर बच्चे को जन्म भी दिया था. बच्चा जैसे जैसे बड़ा हुआ उसके अलग अलग कागजात में पिता का नाम अलग अलग दर्ज हो गया.
याचिका में उसी बच्चे ने इन कागजात में से पिता का नाम पूरी तरह से हटा कर सिंगल पेरेंट के रूप में सिर्फ माता का नाम लिखने की अपील की थी. मामले की सुनवाई के दौरान 2015 में 'एबीसी बनाम स्टेट' नाम से जाने जाने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला भी दिया गया.
उस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एक अविवाहित महिला अकेले अपने बच्चे की कानूनी अभिभावक बन सकती है. इस फैसले के बाद केंद्र सरकार ने देश में जन्म और मृत्यु के सभी मुख्य रजिस्ट्रारों को निर्देश दिया था कि ऐसे मामलों में सिंगल पेरेंट का नाम ही दर्ज किया जाए.
इस फैसले और दूसरे उदाहरणों का हवाला देते हुए अदालत ने इस मामले में याचिकाकर्ता के पक्ष में आदेश दिया और कहा कि है अगर कोई व्यक्ति अपने प्रमाण पत्रों में सिर्फ अपनी मां का नाम नाम दर्ज करना चाहता है तो यह उसका अधिकार है.