75वीं सालगिरह मना रहा इस्राएल इतना विभाजित कभी नहीं था
२५ अप्रैल २०२३हर शनिवार की शाम येहुदित एल्काना हजारों लोगों के साथ दक्षिणपंथी सरकार की न्यायिक सुधारों की योजना का विरोध करने के लिए प्रदर्शन में शामिल होती हैं. रिटायर हो चुकीं फिजिकल केमिस्ट और मानवाधिकार कार्यकर्ता एल्काना का कहना है, "मैं बहुत आशावादी प्रवृत्ति की हूं, लेकिन आजकल मैं निराशावादी हो गई हूं लेकिन हम इसे छोड़ेंगे नहीं."
पिछले चार महीनों से समाज में विवादित योजना के समर्थकों और विरोधियों के बीच खाई गहरी होती जा रही है. विरोध करने वालों का कहना है कि ये सुधार इस्राएल के लोकतंत्र के लिए खतरा हैं जबकि दूसरे लोगों का मानना है कि जरूरत से ज्यादा ताकतवर सुप्रीम कोर्ट पर लगाम कसने के लिए यह जरूरी है.
यरुशलम जैसे पवित्र स्थल को लेकर इतनी शत्रुता क्यों है?
1935 में यरुशलम में पैदा हुईं एल्काना उस पीढ़ी की हैं जिसने इस्राएल का निर्माण किया. उनके मां-बाप ने यहूदी नरसंहार यानी होलोकॉस्ट के पहले ही जर्मनी छोड़ दिया था. पूरी जिंदगी में उन्होंने कई संकटों और युद्धों का सामना किया लेकिन खुशी के उस लम्हे को महसूस किया, जब डेविड बेन गुरियन ने 14 मई, 1948 को तेल अवीव में स्टेट ऑफ इस्राएल की घोषणा की.
एल्काना कहती हैं, "मुझे वो तस्वीरें याद हैं जो मैंने उस वक्त अखबारों और स्डेरोट रोतशिल्ड में देखी थीं, वो खुशी, वो नाच." हालांकि अब 75वीं सालगिरह मना रहे इस्राएल में वह भविष्य को लेकर बहुत चिंतित हैं. उनका कहना है कि यह विवाद, "गृह युद्ध छेड़ सकता है क्योंकि कोई भी पक्ष झुकेगा नहीं, यह बहुत दुखद है."
शालोम हार्टमान इंस्टीट्यूट में रिसर्च फेलो डॉ तोमर पेर्सिको का कहना है कि इस्राएल किसी चौराहे पर खड़ा दिख रहा है और यह सिर्फ इस विवादित सुधार योजना की वजह से नहीं है. पेर्सिको कहते हैं, "लंबे समय तक जिन मुद्दों को दबाया गया या जिनकी अनदेखी की गई वो अब सतह पर आ रहे हैं. इस्राएल का उदार/अनुदार सार्वजनिक वर्ग, धर्म और राज्य के बीच संबंध जो निश्चित रूप से जुड़ा हुआ है और धर्मनिरपेक्ष बहुसंख्यक और सेना के परम रुढ़िवादी अल्पसंख्यक. इन सारी चीजों पर अब बहस हो रही है." पेर्सिको उस सच्चाई की तरफ इशारा कर रहे हैं कि युवा धुर रुढ़िवादियों में से बहुसंख्यक लोग सेना में नहीं हैं.
वामपंथ की धारणा
तेल अवीव-जाफा के एक कैफे में 24 साल की रोनी अमीर अपनी दोस्त 23 साल की दोस्त नीली रोजेन के साथ मौजूदा विरोध प्रदर्शनों और इस्राएल के भविष्य पर चर्चा कर रही हैं. अमीर का कहना है कि न्यायिक सुधारों के खिलाफ हर हफ्ते होने वाले विरोध प्रदर्शनों में जाना उनके लिए जरूरी है लेकिन उनकी प्राथमिकता फलस्तीनी इलाकों पर कब्जा खत्म होना और "सबके लिए समानता" है.
अमीर ने कहा, "मैं विरोध प्रदर्शनों में कब्जाविरोधी ब्लॉक में होती हूं जो फलस्तीनी लोग और सबके लिए आजादी और बराबरी की मांग करते हैं. हमारा ध्यान कब्जे पर है जिसे हम आज जो कुछ हो रहा है उसका आधार मानते हैं, हम हर किसी के लिए सही लोकतंत्र चाहते हैं, हम एक देश चाहते हैं जो सबके लिए आजाद हो, किसी राष्ट्रीयता या धर्म पर आधारित ना हो."
भविष्य में इन्हें 'एक राष्ट्र समाधान' के विचार से उम्मीद है जिसमें फलस्तीनी बराबर के नागरिक होंगे और देश में कहीं भी आ जा सकेंगे. दोनों का कहना है कि इस्राएल आज अपनी सुरक्षा पर जरूरत से ज्यादा ध्यान दे रहा है और शिक्षा या महंगाई जैसे जरूरी मुद्दों की अनदेखी हो रही है.
अमीर का कहना है, "हम हमेशा सुरक्षा को लेकर व्यस्त रहते हैं, हमेशा इस विशाल मध्यपूर्व में खुद को पीड़ित की तरह देखते हैं." मौजूदा स्थिति उनके दिमाग पर भी बोझ डालती है. रोनी का कहना है, "कार्यकर्ता होने के नाते फलस्तीनी लोगों की मदद करने की वजह से आपको अपने देश में गद्दार के तौर पर देखा जाता है. बजाय ये कहने के कि हम दूसरों की मदद करके अच्छा काम कर रहे हैं."
इस्राएल-फलस्तीनी संघर्ष पर रोनी और नीली जैसी राय रखने वाले आपको ज्यादा इस्राएली नहीं मिलेंगे. कम से कम युवा इस्राएली यहूदियों के बीच तो बिल्कुल नहीं, जिन्होंने 1990 की शांति प्रक्रिया को नहीं देखा. तब ओस्लो शांति समझौते ने फलस्तीन और इस्राएल के दो राष्ट्र के रूप में समाधान की राह दिखाई थी.
पेर्सिको का कहना है कि इस्राएल में वामपंथी विचारधारा की ज्यादा पकड़ नहीं है. वो कहते हैं, "निश्चित रूप से कब्जे को खत्म करने का जो संघर्ष एक समय में शालोम अखशाव जैसे समूहों ने चलाया था वह आज बहुत कमजोर है. एक तरह से आज इस्राएल में इस पर सहमति है कि इस पर फिलहाल कुछ नहीं किया जाना है. दूसरी तरफ कोई सच्चा सहयोगी नहीं है."
बहुत से युवा इस्राएली 2000-2005 के उस दौर में पैदा हुए, जब फलस्तीनी इंतिफादा का दूसरा चरण चल रहा था. 2005 में गजा पट्टी से एकतरफा हटने को अकसर उदाहरण के तौर पर पेश किया जाता है कि छोड़े गए इलाके इस्लामी चरमपंथी गुट हमास के कब्जे में चले गए जहां से इस्राएली शहरों पर रॉकेट हमले होते हैं. उस वक्त इस्राएल ने अपनी बस्तियां तोड़ी थीं.
2022 के इस्राएली डेमोक्रैसी इंडेक्स के मुताबिक 18 से 34 साल की उम्र के 75 फीसदी यहूदी दक्षिणपंथी हैं. यह इंडेक्स हर साल इस्राएल डेमोक्रैसी इंस्टीट्यूट जारी करता है जो एक इस्राएली थिंक टैंक है. यह प्रवृत्ति पिछले 20 सालों में मजबूत हुई है. इसके साथ ही युवा बड़ी तेजी से खुद को धार्मिक पहचान से जोड़ रहे हैं या फिर खुद को परम रुढ़िवादी परिवारों में जन्मा बता रहे हैं.
यह प्रवृत्ति इस्राएल की धुर दक्षिणपंथी पार्टी और बेन्यामिन नेतन्याहू की पिछले चुनावों में जीत के दौरान भी दिखी. तब धुर दक्षिणपंथी पार्टी गठबंधन को क्नेसेट की 120 में से 14 सीटों पर जीत मिल गई. धुर दक्षिणपंथी नेता आज प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू की गठबंध सरकार में मंत्री बने बैठे हैं. पेर्सिको का कहना है, "वे लोग वैचारिक रूप से बहुत समर्पित हैं. उन्होंने खुद के लिए बहुत स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित किए हैं. इस तरह की निर्णायक सोच युवाओं को बहुत आकर्षित करती है जो उन्हें और कहीं नहीं मिलती."
दक्षिणपंथी विचारधारा
नाओर मेनिंघर दक्षिणपंथी राजनीति से प्रभावित हैं और प्रदर्शनों को लेकर बहुत निराश हैं. उन्हें उम्मीद है कि न्यायिक सुधार का कम से कम कुछ हिस्सा लागू होगा. तेल अवीव के पास रहने वाले 34 साल के पॉडकास्टर और सोशल कमेंटेटर मेनिंघर कहते हैं, "हमने चार महीने पहले ही चुनाव किया है. चुनाव के नतीजे कोई खारिज नहीं कर सकता. सरकार के पास इस काम के लिए लोगों का पूरा समर्थन है."
मेनिंघर का कहना है कि उनकी पीढ़ी के लिए सबसे बड़ा मुद्दा है "कल्याणकारी राष्ट्र" और "समाजवाद के जो गुजरे सालों के अवशेष आज भी देश में झूल रहे हैं" उन्हें मिटाना.
फलस्तीन-इस्राएल विवाद को लेकर मेनिंघर की राय स्पष्ट है. उनका कहना है, "मेरे ख्याल से सबसे अच्छा होगा कि आज की यथास्थिति को बरकरार रखा जाए, जिसमें हम कम आबादी वाले जितने इलाकों को अपने साथ मिला सकते हैं, मिला लें." मेनिंघर का इशारा पश्चिमी तट के कब्जे वाली जगहों की तरफ है. उनका कहना है, "गजा, जुडेया और समायरा के फलस्तीनी आम तौर पर मेरे दुश्मन हैं. तो उनके संप्रभु राष्ट्र में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है."
उनका कहना है कि इस्राएल अकेला ऐसा देश है जहां यहूदी खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं. वो कहते हैं, "मेरे दादा-दादी रोमानिया से 1970 के दशक में यहां आए थे. वे क्रूर तानाशाही, साम्यावादी तानाशाही से भाग कर यहां आए और शरण ली. मुझे नहीं लगता कि यहूदियों के पास कोई विकल्प है. मेरे लिए तो यह हमेशा के लिए मेरा घर है."
उधर प्रदर्शनों में येहुदित एल्काना उन लोगों के साथ हैं जो "कब्जा विरोधी" हैं. वो याद करती हैं जब यह जगह जॉर्डन के नियंत्रण में थी, "1967 के तुरंत बाद मैं पुराने शहर गई थी लेकिन उससे पहले ही मेरे लिए यह साफ हो गया था कि पूरा पश्चिमी तट लौटाया जाना चाहिए, यह एक जीता हुआ इलाका था जिसे लौटाया जाना चाहिए." इस्राएल ने 1967 में छह दिनों की लड़ाई में जॉर्डन के इलाके पर कब्जा कर लिया था.
अब भले ही लोगों का ध्यान न्यायिक सुधारों पर है लेकिन उन्हें भरोसा है कि युवा पीढ़ी इन चुनौतियों का समाधान निकालेगी. एल्काना कहती हैं, "निराशावाद के बावजूद हमें आशावान रहना होगा. जो कुछ हम कर सकते हैं हमें करना होगा."