रफाह हमले पर दुनियाभर में इस्राएल की निंदा
२८ मई २०२४26 मई को रफाह पर हुए इस्राएल के हवाई हमले की वैश्विक निंदा और सख्त प्रतिक्रियाओं के बावजूद मंगलवार, 28 मई को भी इस्राएल ने रफाह पर बमबारी की है. इस्राएली सैनिकों ने अल-मावासी इलाके के एक शिविर को निशाना बनाया है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने गाजा में स्वास्थ्य अधिकारियों के हवाले से बताया कि ताजा हमले में कम-से-कम 21 लोग मारे गए हैं. अल-मवासी, रफाह के पश्चिम में एक तटीय इलाका है. इस्राएल ने रफाह में लोगों को सुरक्षा के लिए यहां चले जाने की सलाह दी थी.
पिछले तीन हफ्ते से रफाह में जारी इस्राएली हमले के कारण करीब 10 लाख फलिस्तीनी यहां से भागने पर मजबूर हुए हैं. यह संख्या फलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था "यूनाइटेड नेशन्स रिलीफ एंड वर्क्स एजेंसी फॉर फलिस्तीन रिफ्यूजीस इन द नियर ईस्ट" (यूएनआरडब्ल्यूए) ने दी है.
यूएनआरडब्ल्यूए ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि बमबारी के बीच विस्थापित लोगों के पास कोई सुरक्षित जगह नहीं है. संस्था ने यह भी बताया है कि उनकी मदद कर पाना और सुरक्षा मुहैया कराना तकरीबन नामुमकिन है.
आईसीजे के फैसले के बाद हुआ हमला
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रही निंदा और आलोचना के बावजूद रफाह में इस्राएली सेना की गतिविधियां जारी हैं. समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने चश्मदीदों के हवाले से बताया कि रफाह में अल-अवदा मस्जिद के नजदीक इस्राएल के टैंक नजर आए हैं. समाचार एजेंसी डीपीए ने इस्राएल की एक वेबसाइट के हवाले से बताया है कि जिस तल अल-सुल्तान इलाके में 26 मई को हमला हुआ, वहां इस्राएली आर्मी ने टैंक तैनात किए हैं. हालांकि, इस्राएली सेना ने इन खबरों की पुष्टि नहीं की है.
26 मई को तल अल-सुल्तान में इस्राएल के एक हवाई हमले के दौरान विस्थापित फलिस्तीनियों के लिए बनाए गए एक शिविर में आग लगी. फलिस्तीन के स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि इस हमले में कम-से-कम 45 लोग मारे गए और दर्जनों लोग घायल हुए. गाजा में हमास के स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों ने घायलों की संख्या 249 बताई है. बयान के मुताबिक, मृतकों में 23 महिलाओं समेत कई बच्चे और बुजुर्ग शामिल हैं.
बड़े स्तर पर निंदा
यह हमला 24 मई को दिए गए अंतरराष्ट्रीय अदालत (आईसीजे) के फैसले के बाद हुआ. इसमें आईसीजे ने इस्राएल को तत्काल रफाह में अपनी सैन्य कार्यवाही बंद करने का आदेश दिया था. इस्राएल इस आदेश को मानने से इनकार कर रहा है. इस्राएल का दावा है कि रफाह हमले में उसके निशाने पर हमास अधिकारी थे. इस्राएली प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू ने इसे "दुखद घटना" बताया है. नेतन्याहू ने यह भी कहा कि घटना की जांच की जा रही है.
रफाह में हुए हमले पर सख्त प्रतिक्रियाओं के बीच 28 मई को आयरलैंड, नॉर्वे और स्पेन ने आधिकारिक तौर पर फलिस्तीन स्टेट को मान्यता दे दी. स्पेन के प्रधानमंत्री पेद्रो सांचेज ने टीवी पर अपने संबोधन में कहा, "फलिस्तीन स्टेट को मान्यता देना ना केवल ऐतिहासिक न्याय का मुद्दा है, बल्कि अगर हम सब शांति हासिल करना चाहते हैं तो यह एक अहम जरूरत भी है."
हमले पर प्रतिक्रिया देते हुए जर्मन सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि "इस्राएल को अंतरराष्ट्रीय कानूनों की रूपरेखा के भीतर अपनी रक्षा का अधिकार है." यह पूछे जाने पर कि क्या गाजा में इस्राएल की गतिविधियां युद्ध अपराध के दायरे में आती हैं, प्रवक्ता ने जवाब दिया कि जांच पूरी होने तक जर्मनी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचेगा. उधर फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने एक्स पर लिखा कि रफाह में हुए हमले से वह बेहद नाराज हैं. माक्रों ने लिखा, "रफाह में फलिस्तीनी नागरिकों के लिए कोई सुरक्षित हिस्सा नहीं है." दक्षिण अफ्रीका के विदेश मंत्रालय ने भी इस संबंध में बयान जारी कर इसे "निर्दोष नागरिकों पर निंदनीय और क्रूर हमले" बताया.
यूरोपीय संघ (ईयू) के सदस्य देशों के विदेश मंत्री ईयू-इस्राएल एसोसिएशन काउंसिल की बैठक बुलाने पर सहमत हो गए हैं. इसमें समीक्षा की जाएगी कि इस्राएल, ईयू के मानवाधिकार दायित्वों का पालन कर रहा है कि नहीं. चीन ने भी रफाह में इस्राएली सेना की कार्यवाही पर गंभीर चिंता जताई है.
"भयंकर स्थिति है"
30 साल की फातेन जाउदा तल अल-सुल्तान में रहती हैं. उन्होंने एएफपी को बताया, "बहुत खतरनाक स्थिति है. हम पूरी रात नहीं सोए. हर दिशा से बमबारी हो रही है. हमने देखा कि लोग फिर से भाग रहे हैं. हम भी अब निकल जाएंगे और अल-मवासी की ओर बढ़ेंगे क्योंकि हमें अपनी जान का खतरा है."
स्कूल टीचर मुहम्मद अबू रदवान भी रफाह में रहते थे. 6 मई को रफाह पर इस्राएल की बमबारी शुरू होने के बाद उन्हें भागना पड़ा. उनके साथ दो और परिवारों ने करीब 1,000 डॉलर के बराबर रकम देकर गधागाड़ी किराये पर ली और छह किलोमीटर दूर खान युनूस के बाहरी हिस्से में पहुंचे. अब वह यहां एक टेंट में अपनी पत्नी, छह बच्चों और परिवार के बाकी सदस्यों के साथ रह रहे हैं.
उन्होंने अपने तंबू के पास एक गड्ढा खोदा और ओट के लिए चारों तरफ से कंबल और कपड़े टांग दिए. यही गड्ढा अभी उनके परिवार का शौचालय है. मुहम्मद ने एपी को बताया, "भयंकर स्थिति है. तंबू में 20 लोग हैं, साफ पानी नहीं है, ना ही बिजली है. हमारे पास कुछ भी नहीं है." वह कहते हैं, "मैं नहीं बता सकता कि लगातार विस्थापित होते रहने, अपनों को खोने से कैसा महसूस होता है."
मानवाधिकार समूह मर्सी कोर ने समाचार एजेंसी एपी को बताया कि टेंट बनाने के लिए लकड़ी और तारपोलिन का खर्च 500 डॉलर तक पहुंच गया है. रस्सी, कील और माल ढुलाई का खर्च अलग है. गाजा में पहले ही खाद्य आपूर्ति, ईंधन और बाकी जरूरी सामानों की कमी के कारण हालत काफी खराब है. सहायता सामग्री की कमी के कारण संयुक्त राष्ट्र और बाकी मानवाधिकार संगठनों के लिए राहत और बचाव कर पाना बेहद मुश्किल हो रहा है. बेघर हो चुके ज्यादातर फलिस्तीनयों के लिए भी बुनियादी चीजों का खर्च उठा पाना मुश्किल है. गाजा में कई लोगों को महीनों से वेतन नहीं मिला है और उनकी बचत खत्म होती जा रहा है. जिनके बैंक खातों में पैसे हैं भी, वो भी नकदी की किल्लत के कारण पैसे निकाल नहीं पा रहे हैं.
एसएम/एनआर (एपी, एएफपी, डीपीए, रॉयटर्स)