खत्म हो रहे हैं कीट, धरती पर कैसे बचेगा जीवन?
१३ दिसम्बर २०२२1960 के दशक में एक बच्चे के रूप में डेविड वागनर अपने परिवार के खेतों में कांच का एक जार लेकर आसमान से गिरते जुगनुओं को जमा करते थे. अब कीटविज्ञानी बन चुके वागनर कहते हैं, "हम उन्हें भर कर रात में बिस्तर के बगल में रख सकते थे."
वागनर का बचपन अमेरिका के मिशूरी में बीता है लेकिन इस तरह के अनुभव भारत में भी ग्रामीण और छोटे शहरों से आने वाले बहुत से लोगों के हैं. हालांकि अब यह गुजरे जमाने की बात हो चुकी है. वागनर के पारिवारिक खेत की जगह घर और छोटे छोटे सजे लॉन नजर आते हैं. उनके प्यारे जुगनू तो कब के लापता हो चुके हैं.
वैज्ञानिक दुनिया भर में गायब हो रहे कीटोंकी इस घटना को इंसेक्ट एपोकैलिप्स कहते हैं. इंसानी गतिविधियों से पृथ्वी लगातार बदल रही है. इसके नतीजे में धरती पर से कीट हर साल 2 फीसदी की अभूतपूर्व दर से गायब हो रहे हैं. जंगलों की कटाई, कीटनाशकों का इस्तेमाल, कृत्रिम रोशनी, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन के बीच ये कीट जीवन के लिए कड़ा संघर्ष कर रहे हैं. इनके साथ ही वो सारी फसलें, फूल और दूसरे जानवर भी अस्तित्व का संकट देख रहे हैं जिन पर इन कीटों का जीवन निर्भर है.
कनेक्टिकट यूनिवर्सिटी में काम करने वाले वागनर कहते हैं, "कीट वह भोजन है जिससे सारी चिड़िया बनती हैं, सारी मछलियां बनती हैं. वे वह तंतु हैं जो पूरी पृथ्वी पर ताजे पानी, और धरती के पूरे इकोसिस्टम को जोड़े रखते हैं."
जीवन वृक्ष
यह कहना बहुत आसान है कि कीट आराम से जी रहे हैं. आखिर वे हर जगह नजर आते हैं, कभी वर्षावनों में रेंगते तो कहीं मिट्टी खोदते, ताजे पानी के तालाबों तैरते और निश्चित रूप से हवा में उड़ते हुए भी. जीवविज्ञान का जीवन वृक्ष जीवों को उनकी उत्पत्ति और एक दूसरे से जेनेटिक संबंध के आधार पर उनका वर्गीकरण करता है. इसमें कीट आर्थोपॉड फाइलम या शाखा के अंतर्गत आते हैं. जीव समुदाय में ऐसी कुल 40 शाखाएं हैं.
विविधता के मामले में कीटों की कोई बराबरी नहीं कर सकता. अब तक पहचाने गये 15 लाख से ज्यादा कीट पृथ्वी पर पाये जाने वाले कुल कीटों के दो तिहाई हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी 10 लाख से ज्यादा कीटों की पहचान होनी बाकी है. धरती पर मौजूद दूसरे जीवों से इनकी तुलना करें तो कशेरुकी यानी रीढ़ की हड्डी वाले जीवों की संख्या महज 73,000 है. इसी में इंसान से लेकर चिड़िया, जानवर और मछलियां आ जाते हैं. इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर के मुताबिक यह जीव समुदाय का महज पांच फीसदी हैं.
भोजन चक्र में अहम हैं कीट
ऐसे में वातावरण के लिए उनके महत्व को कम करके नहीं देखा जा सकता. कीट भोजन चक्र में अहम भूमिका निभाते हैं. वे चिड़ियों, सरीसृपों और चमगादड़ जैसे स्तनधारियों का मुख्य भोजन हैं. कुछ जीवों के लिए तो कीट किसी दावत से कम नहीं. शाकाहारी जीव ओरांगउटान को दीमकों को खाने में बहुत मजा आता है. इंसान के भोजन में भी 200 से ज्यादा कीट शामिल हैं.
हालांकि कीट भोजन से ज्यादा भी बहुत कुछ हैं. किसान इन कीटों पर अपनी फसलों के परागण और मिट्टी को स्वस्थ बनाने के लिए निर्भर हैं. कीट दुनिया भर की फसलों के 75 फीसदी से ज्यादा का परागण करते हैं. इस सेवा की कीमत दुनिया भर के लिए हर साल 577 अरब डॉलर से भी ज्यादा है.
क्या तितलियां और चीटियां खत्म होने वाली हैं?
अमेरिका में हर साल कीटों के सेवा की कीमत 2006 में 57 अरब डॉलर आंकी गई थी. अमेरिका के मवेशी उद्योग में केवल गुबरैले ही हर साल 38 करोड़ डॉलर के कीमत की सेवा मुहैया कराते हैं. यह काम खाद को तोड़ने और उन्हें मिट्टी में मिलाने का है.
ससेक्स यूनिवर्सिटी के डेव गोलसन कहते हैं कि कीटों के घटने से, "हमारे पास कम भोजन होगा, हम सारी फसलों के उपज में कमी देखेंगे." प्रकृति में 80 फीसदी से ज्यादा जंगली पौधे परागण के लिए कीटों पर निर्भर हैं. ऐसे में धरती पर उनकी उपयोगिता को चुनौती नहीं दी जा सकती.
खत्म हो रहे हैं कीट
फरवरी 2020 में बायोलॉजिकल कंजर्वेशन जर्नल की एक रिसर्च के मुताबिक पिछले 150 सालों में सभी कीटों की 5 से 10 फीसदी यानी 250,000 से 500,000 प्रजातियां लुप्त हो चुकी हैं. कीटों का खत्म होना लगातार जारी है.हालांकि इनके पूरे आंकड़े नहीं मिल पा रहे हैं. वैज्ञानिकों के लिए यह पता लगाना भी मुश्किल हो रहा है कि फिलहाल कितने कीट बचे हैं. पेन्सिल्वेनिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जानजेन कहते हैं, "ऊष्णकटिबंधीय इलाकों में कीटों की पहचान बहुत मुश्किल है क्योंकि वहां हम जितना जानते हैं उससे बहुत ज्यादा प्रजातियां मौजूद हैं. उत्तर पश्चिमी कोस्टा रिका में 100 किलोमीटर के नेशनल पार्क में जितनी प्रजातियां हैं उतनी पूरे यूरोप में नहीं हैं."
जब यही पता ना हो कि वहां हैं कितने, तो फिर उनकी समस्या का पता लगाना तो और मुश्किल है. अप्रैल 2020 में साइंस जर्नल में छपे एक विश्लेषण में कहा गया कि पृथ्वी हर दशक में 9 फीसदी कीटों की आबादी खो रही है. यह संख्या कितनी ज्यादा है इसे आप इस बात से समझ सकते हैं कि इंसान की आबादी हर साल महज एक फीसदी की दर से बढ़ रही है.
वागनर का कहना है, "अगर हर साल एक फीसदी भी खत्म हो रहे हों तो 40 सालों में करीब एक तिहाई प्रजातियां और एक तिहाई कीट खत्म हो जाएंगे यानी पूरे जीवन वृक्ष का एक तिहाई खत्म हो जाएगा."
दुनिया के लिए खतरा
कीटों के खत्म होने के पीछे कोई एक कारण नहीं है. कीटों की आबादी एक साथ कई तरह के खतरे झेल रही है. इनमें आवास का खत्म होना, औद्योगिक खेती से लेकर जलवायु परिवर्तन तक शामिल हैं. सीवेज और उर्वरकों के कारण नाइट्रोजन की अधिकता ने नम जमीनों को डेड जोन में बदल दिया है. कृत्रिम रोशनी रात के आकाश को दूधिया कर दे रही है और शहरी क्षेत्रों के विकास के साथ कंक्रीट का जंगल बढ़ता जा रहा है. ये सब कीटों के दुश्मन हैं.
बाहरी पौधों का आना नये वातावरण पर गहरे असर डालता है और कीटों को नुकसान पहुंचाता है. बहुत से कीट किसी खास पौधे से अपना भोजन हासिल करते हैं और जब उन्हें वह पौधा नहीं मिलता तो फिर उनका अस्तित्व संकट में घिर जाता है.
कौन जीता कौन हारा
कीटों के लिए कुल मिलाकर स्थिति बहुत डरावनी है लेकिन फिर भी कुछ ऐसे कीट हैं जो खूब फलफूल रहे हैं. ससेक्स गुलसन कहते हैं, "आमतौर पर पीड़क कीट फलफूल रहे हैं क्योंकि ये वो कीट हैं जो तेजी से प्रजनन करते हैं और इंसानी वातावरण इन्हें भाता है. जैसे कि सारा कचरा जो हम पैदा करते हैं ये उसमें अपने अंडे देते हैं."
जलवायु परिवर्तन भी इन परेशान करने वाले कीटों को बढ़ावा दे रहा है. बढ़ता तापमान पहाड़ों में पाइन बार्क बीटल की महामारी का सबसे बड़ा कारण है. बीते दो दशकों में इसने उत्तर अमेरिका के करीब 260,000 वर्ग किलोमीटर जंगलों कों का सफाया कर दिया है.
इसी तरह गर्म और नम मौसम के कारण बीमारी फैलाने वाली मच्छरों की दो प्रजातियां एडिस एजिप्टी और एडिस एल्बोपिक्टस का एशिया, उत्तरी अमेरिका और यूरोप में खूब विस्तार हो रहा है. इनके कारण 2080 तक करीब 2.3 अरब लोगों पर डेंगू का खतरा रहेगा.
कीटों के साथ इन पर भी खतरा
कीटों के खत्म होने से उन्हें खा कर जीने वाले शिकारी भी खत्म हो जाते हैं. अमेरिका में गाने वाली चिड़िया अपने बच्चों को कीट खिला कर पालती है. 1970 के बाद से अमेरिका और कनाडा में इन चिड़ियों की संख्या 29 फीसदी कम हो गई. इसका मतलब है कि लगभग 2.9 अरब पक्षी खत्म हो गए. वैज्ञानिकों ने इसके पीछे कीटों की कमी को सैद्धांतिक रूप से कारण बताया है.
कुछ रिसर्चों में कीटनाशकों के इस्तेमाल को कई और पक्षियों की संख्या में कमी का कारण बताया गया है. वागनर का कहना है, "कीटों के खत्म होने के साथ हम जीवन वृक्ष के अंगों को खो रहे हैं. हम इसके टुकड़े कर रहे हैं और उसके पीछे एक बहुत बदसूरत ठूंठ ही बचेगा."
एनआर/वीके (रॉयटर्स)