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फरक्का बैराज संधि को लेकर पश्चिम बंगाल का विरोध

२४ जून २०२४

भारत और बांग्लादेश के बीच नदियों के पानी के इस्तेमाल को लेकर फिर विवाद खड़ा हो गया है. एक बार फिर विवाद के केंद्र में है पश्चिम बंगाल. इस बार समस्या फरक्का समझौते को लेकर है, जिसे 2026 में आगे बढ़ाने पर फैसला लिया जाना है.

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शेख हसीना, नरेंद्र मोदी
भारत और बांग्लादेश एक बार नदियों के पानी को लेकर समझौता करने की कोशिश कर रहे हैंतस्वीर: Manish Swarup/AP/picture alliance

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना दो दिनों की आधिकारिक यात्रा पर भारत आई थीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी मुलाकात के बाद जो बयान जारी किया गया, उसमें दोनों देशों के बीच फरक्का समझौते को आगे बढ़ाने का भी जिक्र है. यह समझौता 2026 में खत्म होने वाला है.

मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि भारत सरकार ने पश्चिम बंगाल सरकार से इस विषय पर बातचीत नहीं की है और इसे लेकर प्रदेश की सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस नाराज है. यह भी दावा किया जा रहा है कि तृणमूल कांग्रेस संसद के मौजूदा सत्र में इस मुद्दे को उठाने की योजना बना रही है.

क्या है फरक्का संधि

बताया जा रहा है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस विषय पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर विरोध जताया है. बनर्जी ने लिखा है कि फरक्का संधि और तीस्ता नदी के पानी के प्रस्तावित बंटवारे को लेकर पश्चिम बंगाल सरकार को शामिल किए बिना बांग्लादेश के साथ कोई बातचीत नहीं होनी चाहिए. केंद्र सरकार का इस विषय पर अभी तक कोई बयान नहीं आया है.

ममता बनर्जी
ममता बनर्जी भारत और बांग्लादेश के बीच की नदियों पर पश्चिम बंगाल के लोगों के अधिकार को जता रही हैंतस्वीर: DIBYANGSHU SARKAR/AFP

गंगा नदी के पानी के इस्तेमाल को लेकर भारत और बांग्लादेश के बीच कई दशकों तक विवाद रहने के बाद दिसंबर 1996 में समाधान के रूप में फरक्का संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे. समझौते की बदौलत दोनों देशों के बीच गंगा के पानी के इस्तेमाल को लेकर 30 सालों की व्यवस्था बनाई गई थी.

2026 में यह समझौता खत्म हो जाएगा और दोनों देश चाह रहे हैं कि समझौते को आगे बढ़ाया जाए या रिन्यू किया जाए. लेकिन पश्चिम बंगाल सरकार का कहना है कि राज्य के लोग गंगा और तीस्ता के पानी के इस्तेमाल से सीधे प्रभावित होते हैं. ऐसे में इस विषय पर किसी भी तरह की बातचीत में राज्य सरकार को शामिल किए बिना आगे नहीं बढ़ना चाहिए.

13 साल पहले भी ऐसा हुआ था

बैराज की वजह से इसके आस-पास के इलाकों में कटाव की समस्या भी बढ़ गई है, जिसे बनर्जी बीते कई सालों से उठा रही हैं. कटाव की वजह से इन इलाकों में जान-माल का गंभीर नुकसान हुआ है, लाखों लोग विस्थापित हो गए हैं और उनकी आजीविका भी नष्ट हो गई है.

ब्रह्मपुत्र पर भिड़ते भारत, चीन और बांग्लादेश

यह पहली बार नहीं है जब पश्चिम बंगाल सरकार को राज्य से गुजरने वाली नदियों के पानी से संबंधित विषयों पर बातचीत में अपने अधिकार को जताने की जरूरत पड़ी है. 2011 में तत्कालीन यूपीए सरकार तीस्ता नदी के पानी को लेकर  बांग्लादेश सरकार के साथ एक संधि करने जा रही थी, लेकिन बनर्जी ने इसमें साथ देने से इंकार कर दिया था.

बांग्लादेश में भारत का प्रभाव

उनका कहना था कि राज्य के किसान तीस्ता के पानी पर निर्भर हैं और यह संधि उनके हित में नहीं होगी. ममता बनर्जी के विरोध की वजह से भारत सरकार को संधि पर हस्ताक्षर करना रद्द करना पड़ा था. देखना होगा कि इस बार फरक्का बैराज को लेकर भारत सरकार क्या रुख अपनाती है.