भारत: साइबर अपराधी लूट रहे हैं लोगों की मेहनत की कमाई
२१ जनवरी २०२५भारत में "डिजिटल अरेस्ट" साइबर ठगी का नया तरीका है. हालांकि, "डिजिटल अरेस्ट" जैसी किसी प्रक्रिया का हकीकत में कोई कानूनी वजूद नहीं होता. लेकिन आए दिन मासूम लोग इसके शिकार हो रहे हैं. "डिजिटल अरेस्ट" के रूप में जाना जाने वाला साइबर अपराध जिसमें अपराधी ऑनलाइन कानून प्रवर्तन अधिकारी बनकर लोगों को बड़ी मात्रा में पैसे ट्रांसफर करने को कहते हैं, ये मामले इतने बढ़ गए हैं कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसको लेकर चेतावनी जारी की. मोदी ने मासिक रेडियो कार्यक्रम "मन की बात" में लोगों से सतर्क रहने की अपील की थी.
"डिजिटल अरेस्ट" के शिकार 62 साल के रिटायर्ड प्रोफेसर कामता प्रसाद सिंह कहते हैं, "पिछले कई सालों से मैं बाहर चाय पीने से बचता रहा हूं, पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर खर्च से बचने के लिए पैदल चलता हूं."
उन्होंने कहा, "केवल मैं ही जानता हूं कि मैंने अपना पैसा कैसे बचाया."
पुलिस का कहना है कि साइबर अपराधियों ने देश में निजी डिटेल्स से लेकर ऑनलाइन बैंकिंग तक, तेजी से डिजिटल होते डेटा और बुनियादी इंटरनेट सुरक्षा के बारे में लोगों में जागरूकता की कमी के बीच के विशाल अंतर का फायदा उठाया है.
डर का फायदा उठा रहे हैं साइबर अपराधी
जालसाज डेटा चोरी के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रहे हैं, पीड़ितों को ऐसी जानकारी से निशाना बना रहे हैं, जिसके बारे में उनका मानना है कि वह केवल सरकारी अधिकारियों के पास ही उपलब्ध है.
पिछले साल अक्टूबर के महीने में पीएम मोदी ने "मन की बात" में कहा था, "डिजिटल अरेस्ट" के शिकार होने वालों में हर वर्ग और हर उम्र के लोग हैं और वे डर की वजह से अपनी मेहनत से कमाए हुए लाखों रुपये गंवा देते हैं. उन्होंने कहा, "इस तरह की कोई कॉल आए तो आपको डरना नहीं है. आपको पता होना चाहिए कि कोई भी जांच एजेंसी फोन कॉल या वीडियो कॉल पर इस तरह पूछताछ कभी नहीं करती."
घर के भीतर साइबर अपराधी
मोबाइल फोन और खासकर वीडियो कॉलिंग के जरिए धोखेबाजों को सीधे लोगों के घरों तक पहुंचने का मौका मिल गया है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा बायोमेट्रिक डिजिटल पहचान प्रोग्राम चलाता है - जिसका नाम "आधार" है- यह भारत के एक अरब से अधिक लोगों को जारी किया गया एक अनूठा पहचान पत्र है. वित्तीय लेनदेन के लिए इसकी जरूरत बढ़ती जा रही है.
साइबर अपराधी अक्सर दावा करते हैं कि वे संदिग्ध पेमेंट्स की जांच करने वाली पुलिस हैं और अपने शिकार का आधार नंबर बताकर खुद को असली बताते हैं.
डर और भय का माहौल बनाते हैं साइबर अपराधी
बिहार के रहने वाले रिटायर्ड प्रोफेसर सिंह कहते हैं कि झूठ का जाल तब शुरू हुआ जब पिछले साल दिसंबर में उन्हें एक कॉल आई. उन्हें लगा कि यह कॉल दूरसंचार नियामक प्राधिकरण से थी. सिंह ने बताया, "उन्होंने कहा, पुलिस मुझे गिरफ्तार करने आ रही है."
अपराधियों ने सिंह से कहा कि उनका आधार नंबर का इस्तेमाल अवैध पेमेंट्स के लिए किया जा रहा है. इस कॉल के बाद सिंह बेहद डर गए और उन्होंने यह साबित करने के लिए सहमति जताई कि उनके बैंक खाते पर उनका नियंत्रण है और लगातार धमकियों के बाद उन्होंने 13 लाख रुपये से ज्यादा की रकम ट्रांसफर कर दी. उन्होंने कहा, "मेरी नींद उड़ गई है, खाने का मन नहीं कर रहा है. मैं बर्बाद हो गया हूं."
साइबर अपराधों से निपटने में आधे दशक तक लगे पुलिस अधिकारी सुशील कुमार ने कहा कि ऑनलाइन स्कैम में वृद्धि चिंताजनक है, क्योंकि "वे इसे कितना वैध दिखाते हैं और बताते हैं." साइबर अपराध को अंजाम देने वालों में स्कूल छोड़ चुके छात्र से लेकर पढ़े लिखे लोग तक शामिल हैं.
कुमार ने कहा, "वे जानते हैं कि सरकारी एजेंसियों के काम करने के तरीके के बारे में बुनियादी जानकारी प्राप्त करने के लिए इंटरनेट पर क्या खोजना है." ताजा सरकारी आंकड़ों के अनुसार, देश में 2022 में 17,470 साइबर अपराध दर्ज किए गए, जिनमें ऑनलाइन बैंक धोखाधड़ी के 6,491 मामले शामिल हैं.
अलग-अलग तरीके से धोखाधड़ी
साइबर अपराधी अपने शिकार को निशाना बनाने के लिए अलग-अलग तरीका अपनाते हैं. 71 साल की कावेरी (बदला हुआ नाम) ने बताया कि धोखेबाजों ने खुद को अमेरिकी कूरियर कंपनी फेडएक्स का अधिकारी बताते हुए दावा किया कि उन्होंने एक पैकेट भेजा है जिसमें ड्रग्स, पासपोर्ट और क्रेडिट कार्ड हैं.
अपराधियों ने सबूत के तौर पर उनका पूरा नाम और आधार कार्ड डिटेल्स तक बता डाले, जिसके बाद रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और जांच एजेंसी सीबीआई के जाली पत्र भी पेश किए. कावेरी ने कहा, "वे चाहते थे कि मैं पैसा भेजूं, जो 30 मिनट में वापस आ जाएगा." कावेरी ने आगे कहा कि जब उन्होंने "एक हस्ताक्षर किया हुआ पत्र" भेजा तो उन्हें विश्वास हो गया.
कावेरी ने अपने मकान की बिक्री से मिले पैसे जो कि करीब 10 करोड़ रुपये थे, चार किस्तों में साइबर ठगों को ट्रांसफर कर दिए. इसके बाद अपराधी गायब हो गए.
बेंगलुरू की रहने वाली 35 साल की मीता (बदला हुआ नाम) को भी वीडियो कॉल के जरिए फर्जी पुलिस ने ठगा. उन्होंने कहा, "वह असली जैसा पुलिस थाना लग रहा था, वहां वायरलेस पर बातचीत की आवाजें आ रही थीं."
साइबर अपराधियों ने उनसे कहा कि वे अपने बैंक के फोन ऐप के जरिए दो लाख रुपये का कर्ज लेकर यह साबित करें कि उनके बैंक खाते पर उनका ही कंट्रोल है और उसके बाद उनसे "अस्थायी" ट्रांसफर करने की मांग की गई.
मीता कहती हैं कि बैंक को यह बताने के बावजूद कि उसके साथ धोखाधड़ी हुई है, बैंक ने मीता को कर्ज चुकाने के लिए कहा. उन्होंने कहा, "बैंकों पर मेरा भरोसा लगभग खत्म हो चुका है." साइबर अपराधियों को कोसते हुए उन्होंने कहा, "मुझे उम्मीद है कि वे नरक में सड़ेंगे."
एए/आरआर (एएफपी)