कोरोना काल में बाल विवाह का जोखिम बढ़ा
१४ अगस्त २०२०उत्तर प्रदेश के जौनपुर के एक गांव में पुलिस जब 15 साल की मुस्कान के घर पर पहुंची तो वह तैयार हो कर शादी के लिए मंदिर जाने वाली थी. पुलिस को देख मुस्कान घबरा गई. बीमार पिता और बेरोजगार भाई की हालत देख मुस्कान को लगा था कि अगर वह दूर के रिश्तेदार के बेटे से शादी कर लेगी तो उसके परिवार की आर्थिक परेशानी दूर हो जाएगी और उसका भी भविष्य बेहतर हो जाएगा.
स्थानीय अधिकार कार्यकर्ताओं की सूचना पर मुस्कान की शादी अधिकारियों ने रुकवा दी और उसके माता-पिता पर बाल विवाह अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया. जौनपुर में अपने गांव से मुस्कान (बदला हुआ नाम) फोन पर कहती है, "जब मेरे पिता ने शादी पक्की कर दी तो मैंने हां कह दिया." फिर भी उसने कहा कि अगर संभव हो तो वह स्कूल जाना पसंद करेगी. मुस्कान बताती है, "घर पर खाना नहीं है, हम सब एक कमरे में रहते हैं, मेरे पिता मेरे लिए चिंतित थे और रोते थे. मेरी शादी होती तो सबकुछ ठीक हो जाता. अब कह रहे हैं कि मुझे तीन साल इंतजार करना पड़ेगा." देश में लड़कियों की शादी की वैध उम्र 18 साल है.
कोविड-19 महामारी के कारण कारखाने बंद हो गए और स्कूल तो मार्च से ही बंद हैं. अधिकार कार्यकर्ता और अधिकारियों ने उत्तर भारत से लेकर दक्षिण और पश्चिम तक एक अप्रत्याशित प्रवृत्ति देखी है और वह है बाल विवाह के मामलों में वृद्धि. महामारी के पहले तक कम उम्र में शादी में जश्न में होता था और दुल्हन का परिवार भारी दहेज देता था.
देश में लॉकडाउन के कारण कई लोग बेरोजगार हो गए. जद्दोजहद करता परिवार सस्ते में शादी समारोह का आयोजन कर रहा है और इस तरह से वह अपनी आर्थिक कठिनाई को कम कर रहा है. स्कूल बंद है और शादी चोरी छिपे हो रही है. ऐसे में अधिकारियों को लगता है बच्चे खासकर लड़कियां तक पहुंचना कठिन काम है, जिससे उन्हें शिक्षित किया जा सके और उन्हें शादी से बचाया जा सके, जो उनके भविष्य को सीमित करती है.
कम उम्र में शादी का मतलब है कि लड़कियां स्कूल छोड़ देंगी और अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि इससे गुलामी, घरेलू-यौन हिंसा और प्रसव में मृत्यु बढ़ती है, यूनिसेफ के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 27 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले और सात प्रतिशत लड़कियों की शादी 15 साल की उम्र से पहले हो जाती है. भारत के कुछ राज्यों और समुदायों में बाल विवाह होना अब भी आम है.
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के चेयरमैन प्रियांक कानूंगो के मुताबिक, "बाल विवाह एक संभावित चिंता है. हम इसे तस्करी के तौर पर देखते हैं. जो इसके खतरे में हैं उन्हें उपलब्ध सरकारी योजनाओं से जोड़ने के लिए मैप किया जाना चाहिए."
एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
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