ये है जुड़वां बच्चे पैदा करने वाला गांव
३ मई २०१८नीले रंग के एक साइनबोर्ड पर लिखा है, "भगवान के अपने जुड़वां गांव, कोडिन्ही में आपका स्वागत है." इस गांव में इतने जुड़वां हैं कि दुनिया भर में इस पर चर्चा चल रही है. यहां हर 1,000 बच्चों में से 42 जुड़वां पैदा होते हैं. यह वैश्विक औसत का सात गुना है. आम तौर पर दुनिया भर में 1,000 में मात्र छह ही जुड़वां बच्चे पैदा होते हैं.
कोच्ची से करीब 150 किलोमीटर दूर स्थित इस गांव में आपको जुड़वां बच्चों की कई कहानियां मिल जाएंगी. 16 साल की सुमायत और अफसायात यहां के मदरास्थल अनवर स्कूल में पढ़ती हैं. दोनों देखने में बिलकुल एक जैसी हैं और इसलिए टीचर कई बार असमंजस में पड़ जाते हैं कि वे सुमायत से बात कर रहे हैं या फिर अफसायात से. सुमायत बताती हैं, "ज्यादातर तो उनकी कोशिश होती है कि दोनों को एक साथ ही पुकार लें. स्कूल में भी मजेदार घटनाएं होती हैं और बाहर भी लेकिन हम इससे परेशान नहीं होते."
स्कूल के प्रिंसिपल नजीब को यह दिलचस्प लगता है. वह बताते हैं, "हमारे स्कूल में 17 जुड़वां बच्चों के जोड़े हैं. कभी कभार हमें उन्हें पहचानने में दिक्कत होती है और ऐसे में उन्हें शैतानी करने का भी मौका मिल जाता है लेकिन यह कोई बड़ी समस्या नहीं है."
एक जुड़वां भाइयों का जोड़ा भी है. अरशद और आसिफ. दोनों को फुटबॉल खेलने का शौक है और दोनों की कोशिश रहती है कि एक ही टीम में खेलें, नहीं तो कहीं टीम वालों को पहचानने में दिक्कत ना हो जाए. आसिफ बताता है, "हम दोनों ही मिडफील्ड खेलते हैं और कई बार दूसरी टीम वालों को समझ नहीं आता कि किसके पीछे भागना है."
70 साल से चल रहा है सिलसिला
इस गांव की 85 फीसदी आबादी मुस्लिम है. लेकिन ऐसा नहीं कि हिन्दू परिवारों में जुड़वां पैदा नहीं होते. स्थानीय लोग बताते हैं कि जुड़वां बच्चों का सिलसिला यहां कुछ 60 से 70 साल पहले शुरू हुआ. गांव के सरपंच बताते हैं, "जुड़वां बहनों का सबसे पुराना जोड़ा 70 साल पुराना है और मैं तो यही कह सकता हूं कि यह अल्लाह की देन है. बहुत सी महिलाएं किसी दूसरे गांव से शादी कर के यहां आती हैं, उनके भी जुड़वां बच्चे पैदा होते हैं."
पथूटी और कुन्ही पथूटी जुड़वां बहनें हैं. इनकी उम्र 70 साल है और वे इसे किसी करिश्मे से कम नहीं मानतीं. पथूटी कहती हैं, "यह तो ईश्वर की मेहर है और कुछ नहीं. विज्ञान कुछ भी साबित नहीं कर सकता. अब तो हम एक साथ तीन-तीन चार-चार बच्चे पैदा होते देख रहे हैं. इस सब का कोई जवाब नहीं है."
इस गुत्थी को समझने के लिए दो साल पहले एक रिसर्च टीम यहां पहुंची. इसमें भारत, जर्मनी और ब्रिटेन के रिसर्चर मौजूद थे. शोध के लिए लोगों की थूक के सैंपल लिए गए ताकि इन लोगों के डीएनए को समझा जा सके. एक अन्य टीम ने लोगों की लंबाई, वजन, चेहरे की बनावट इत्यादि पर ध्यान दिया.
अब तक इस सारे डाटा से किसी भी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सका है. केरल के वैज्ञानिक ई प्रीथम ने डॉयचे वेले को बताया, "वैज्ञानिक दृष्टि से कुछ भी सिद्ध नहीं किया जा सका है. कुछ लोग कहते हैं कि यह जेनेटिक है लेकिन इसका भी कोई प्रमाण नहीं है. अगर हमें किसी नतीजे पर पहुंचना है, तो कुछ और टेस्ट करने होंगे."
क्या यह है केमिकल लोचा?
कुछ लोग ऐसा भी मानते हैं कि यहां की हवा, पानी या फिर मिट्टी में कोई ऐसा रासायन मिला हुआ है, जिससे प्रजनन की प्रक्रिया पर असर पड़ता है. डॉक्टर श्रीबिजू ने 2008 में यहां एक शोध किया. उस समय यहां 264 जुड़वां जोड़े मौजूद थे. इस बीच यह संख्या 450 पार कर गई है. डॉयचे वेले से बातचीत में उन्होंने बताया कि जुड़वां बच्चे पैदा करने वाली महिलाओं ने सामान्य रूप से गर्भ धारण किया और ऐसा अक्सर उनकी पहली गर्भावस्था में देखने को मिला. उन्होंने बताया, "पश्चिमी देशों के विपरीत यहां आईवीएफ जैसी तकनीक का इस्तेमाल नहीं होता है और ना ही महिलाएं गर्भनिरोधक गोलियां लेती हैं."
केरल के कोडिन्ही जैसे दुनिया में दो और गांव हैं, नाइजीरिया का इग्बो ओरा और ब्राजील का कैंडिडो गोडोई. यहां भी वैज्ञानिकों ने जुड़वां बच्चों की प्रक्रिया को समझने की कोशिश की. नाइजीरिया में पाया गया कि वहां मिलने वाली एक सब्जी के छिलके में रासायन की अधिक मात्रा के कारण ऐसा हुआ. वहीं ब्राजील वाले मामले में रिसर्चरों को कहना है कि उस समुदाय में सब आपस में ही शादी करते हैं और वहां शायद इसलिए ऐसा होता है. लेकिन कोडिन्ही का मामला अब भी रिसर्चरों के लिए चुनौती बना हुआ है.
2006 में यहां कोडिन्ही ट्विन्स एंड किन्स नाम की संसथा बनी जिसका मकसद गरीब परिवारों की मदद करना है. ऐसे कई परिवार हैं जो एक साथ दो बच्चों का खर्चा नहीं उठा सकते. ऐसे में यह संसथा उन्हें आर्थिक मदद पहुंचाती है. इस छोटे से गांव में वैज्ञानिक अपने काम में लगे हैं और जनता एक दूसरे की मदद में.