81 विधानसभा सीटों के लिए हो रहे चुनाव में दिलचस्प मुकाबला
२१ नवम्बर २०१९महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा के चुनाव नतीजों के बाद अब झारखंड में चुनाव होने वाले हैं. 81 विधानसभा सीटों के लिए पांच चरणों में मतदान होंगे. छोटे से राज्य झारखंड में सिर्फ विकास का ही मुद्दा नहीं है जो इस बार चर्चा का विषय है. कई अहम मुद्दें हैं जो इस बार चुनावी शोर में सुनाई दे रहे हैं. ये मुद्दे हैं भ्रष्टाचार, किसानों की समस्या, भूमि अधिग्रहण कानून, बेरोजगारी, आदिवासियों के अधिकार, मॉब लिंचिंग, भूख से मौत के कथित मामले और महंगाई. भारतीय जनता पार्टी आत्मविश्वास के साथ नारा दे रही है "अबकी बार 65 पार". झारखंड के गठन को 19 साल पूरे हो गए हैं लेकिन बतौर मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा करने वालों में रघुबर दास अकेले है. झारखंड में इससे पहले कोई भी मुख्यमंत्री अपना 5 साल तक इस पद पर नहीं रह सका.
भ्रष्टाचार मुक्त सरकार का दावा
झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास दावा करते हैं कि उन्होंने पांच साल तक राज्य को विकास के पथ पर चलाया जबकि विपक्ष का आरोप है कि रघुबर दास सरकार में भ्रष्टाचार बढ़ा है. उनका आरोप है कि भूख से मौत हो या मॉब लिंचिंग के मामले इन सब घटनाओं ने राज्य को बदनाम किया है. झारखंड प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता आलोक दुबे कहते हैं, "बीजेपी सरकार ने सिर्फ आंकड़ों और विज्ञापनों के आधार पर राजनीति की है, पिछले 5 सालों में यहां की जनता त्राहिमाम कर रही है. दुष्कर्म और आदिवासियों पर जुल्म के आंकड़ों को देखिए तो पता चलेगा कि राज्य की क्या स्थिति है. हम इन्हीं मुद्दों को लेकर चुनाव मैदान में उतरे हैं."
दिलचस्प मुकाबला
जमशेदपुर पूर्वी से चुनाव लड़ रहे मुख्यमंत्री रघुबर दास को उनके पूर्व सहयोगी सरयू राय चुनौती दे रहे हैं. सरयू राय रघुबर दास कैबिनेट में मंत्री थे और पिछली बार जमशेदपुर पश्चिम से चुनाव लड़े थे. बताया जा रहा है कि सरयू राय ने भ्रष्टाचार को लेकर मामले उजागर किए थे. तीन बार विधायक रहे सरयू राय ने टिकट कटने से नाराज होकर रघुबर दास के खिलाफ ही चुनावी बिगुल फूंक दिया. सरयू राय एक समय में बीजेपी के कद्दावर नेता हुआ करते थे लेकिन जब से उन्होंने सीएम के खिलाफ लड़ाई लड़ने का ऐलान किया है अन्य दल भी इस मामले में मुखर हो गए हैं. झारखंड मुक्ता मोर्चा और आजसू पार्टी ने भी सरयू के समर्थन में बयान दिए हैं.
हेमंत सोरेन का प्रभाव
झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष हेमंत सोरेन राज्य के युवा नेता हैं और वे शिबू सोरेन के बेटे हैं. 2013 में सोरेन महागठबंधन की मदद से राज्य के पांचवें मुख्यमंत्री बने. इस बार कांग्रेस और आरजेडी के साथ मिलकर जेएमएम विधानसभा चुनाव लड़ रही है. महागठबंधन का दावा है कि जनता बीजेपी शासन से परेशान हो गई और उसे विकल्प के तौर पर चुनेगी. महागठबंधन ने हेमंत सोरेन पर भरोसा जताते हुए उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया है.
बीजेपी के साथ वाले दल अब अलग क्यों?
झारखंड चुनाव में इस बार दिलचस्प ये भी है कि बीजेपी के साथ चलने वाले दल अब अलग रास्ते पर चल रहे हैं. ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू), नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यू) और रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी बीजेपी से अलग चुनाव मैदान में उतरी हुई है. दिलचस्प बात ये है कि बीजेपी की सहयोगी पार्टी ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन 19 साल बाद बीजेपी से अलग होकर चुनावी मैदान में है. आजसू के अध्यक्ष सुदेश महतो के खिलाफ बीजेपी ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा है लेकिन हो सकता है कि बीजेपी ने भविष्य के हालातों को देखते हुए ऐसा किया हो. हालांकि ऐसा कहना बहुत जल्दबाजी होगी.
झारखंड में इस बार सत्ता परिवर्तन होता है या रघुबर दास सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए दोबारा सत्ता पर काबिज होते इसका पता तो चुनाव के नतीजों से चलेगा. चुनाव में बीजेपी अनुच्छेद 370, तीन तलाक और राम मंदिर के मुद्दे को जोर शोर उठाकर चुनावी लाभ लेना चाहती है वहीं विपक्ष का दावा है कि इस बार चुनाव स्थानीय मुद्दे पर हो रहे हैं और जनता बीजेपी का साथ नहीं देगी.