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राजनीतिनेपाल

नेपाल ने चीनी कंपनी से तोड़ा करार, भारत करेगा काम पूरा

१९ अगस्त २०२२

नेपाल ने भारत की नेशनल हाइड्रोपावर कंपनी के साथ एक समझौता किया है जिसके तहत देश के पश्चिम में एक पनबिजली संयंत्र बनाया जाएगा. नेपाली अधिकारियों ने बताया कि चीनी कंपनी पीछे हट गई.

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नेपाल की नदियां दुनिया के लिए खोल दी गई हैं
नेपाल की नदियां दुनिया के लिए खोल दी गई हैंतस्वीर: Neelima Vallangi & Deej Phillips

नेपाल ने अपनी नदियों को विदेशी कंपनियों के लिए खोल दिया है. विशेषज्ञों का मानना है कि नेपाली नदियों में 42,000 मेगावॉट बिजली पैदा करने की क्षमता है लेकिन फिलहाल यह 1,200 मेगावाट बिजली ही पैदा कर रहा है. उसकी अपनी जरूरत 1,750 मेगावाट है और जरूरत का बाकी का हिस्सा वह भारत से खरीदता है.

इस क्षमता का इस्तेमाल नेपाल अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए करना चाहता है. फिलहाल 13 अरब डॉलर का व्यापार घाटा झेल रहे नेपाल के लिए यह क्षेत्र एक बड़ी उम्मीद है इसलिए उसने विदेशी कंपनियों को अपने यहां काम करने की छूट दी है.

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अधिकारियों ने बताया कि भारत की एनएचपीसी लिमिटेड ने गुरुवार को एक एमओयू (MOU) पर दस्तखत किए जिसके तहत संभावनाओं, पर्यावरण पर प्रभाव, भूमि का अध्ययन और लागत आदि का अध्ययन किया जाएगा. यह समझौता दो परियोजनाओं के लिए हुआ है जिनमें पश्चिमी सेती (750 मेगावाट) और एसआर6 (450 मेगावाट) शामिल हैं. दोनों ही परियोजनाएं पश्चिमी सेती नदी पर स्थित हैं, जो देश के सुदूर पश्चिमी हिस्से में है.

अधिकारियों ने बताया कि चीन की सबसे बड़ी हाइड्रोपावर कंपनी थ्री गोर्जेस इंटरनेशनल कॉर्प इन परियोजनाओं को बनाने वाली थी लेकिन समझौते की शर्तों के कारण 2017 में नेपाल ने यह समझौता रद्द कर दिया. इन्वेस्टमेंट बोर्ड नेपाल के सीईओ सुशील भट्ट ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "दशकों की देरी के बाद हम और ज्यादा अनिश्चितता नहीं झेल सकते थे.”

अप्रैल में नई दिल्ली में शेर बहादुर देउबा और नरेंद्र मोदी
अप्रैल में नई दिल्ली में शेर बहादुर देउबा और नरेंद्र मोदीतस्वीर: Naveen Sharma/ZUMA Wire/IMAGO

भट्ट ने कहा कि भारतीय कंपनी से समझौते के कई फायदे हैं. उन्होंने कहा, "भारत में ऐसे इलाकों में परियोजनाएं विकसित करने के मामले में एनएचपीसी का रिकॉर्ड अच्छा है. साथ ही उसमें भारतीय बाजार में बिजली की बिक्री सुनिश्चित करने की संभावना भी है.” उन्होंने ऐसे और समझौतों की भी उम्मीद जताई है.

एनएचपीसी लिमिटेड के प्रबंध निदेशक अभय कुमार सिंह ने भी ऐसी ही उम्मीदें जाहिर की हैं. उन्होंने कहा, "जब हम किसी परियोजना को हाथ में लेते हैं, तो उसे पूरा करते हैं.”

नेपाल में चीन की मौजूदगी

नेपाल भारत और चीन के बीच स्थित है इसलिए दोनों ही मुल्क उसकी रणनीतिक अहमियत से वाकिफ हैं. लिहाजा दोनों देश नेपाल पर अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश करते रहते हैं. पिछले कुछ सालों में नेपाल ने चीन के साथ बड़े समझौते किए हैं. हालांकि उन समझौतों की संभावनाओं पर सवाल भी उठते रहे हैं.

उदाहरण के लिए चीन की महत्वाकांक्षी बुनियादी ढांचा परियोजना, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का हिस्सा बनाने के लिए नेपाल ने 2017 में चीन से समझौता किया था. मई 2017 में नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल के नेतृत्व में बीआरआई पर समझौते पर दस्तखत हुए थे. दहल को "चीनी समर्थक" माओवादी नेता माना जाता था और उस समय देश इस समझौते को लेकर काफी उत्साहित था.

तब कमल दहल ने कहा था कि नेपाल-चीन संबंधों के लिए यह एक महत्वपूर्ण क्षण है. साथ ही, यह भी कहा गया था कि इससे देश में चीनी निवेश बढ़ने की उम्मीद है. अब इस महत्वाकांक्षी समझौते को पांच साल बीत चुके हैं, लेकिन नेपाल में अब तक भी कोई बीआरआई परियोजना विकसित नहीं हो पाई है.

2019 में नेपाल ने बीआरआई के तहत नौ अलग-अलग परियोजनाओं को आगे बढ़ाने का प्रस्ताव रखा था. इनमें जिलॉन्ग/केरुंग से काठमांडू को जोड़ने वाली ट्रांस-हिमालयी रेलवे लाइन, 400 केवी की बिजली ट्रांसमिशन लाइन का विस्तार, नेपाल में तकनीकी विश्वविद्यालय की स्थापना, नई सड़कों, सुरंगों, और पनबिजली परियोजनाओं का निर्माण शामिल था.

उसके बाद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अक्टूबर 2019 में नेपाल का दौरा भी किया था जिसमें बीआरई परियोजनाओं के विकास में तेजी लाने की बात दोहराई गई थी. इसके बावजूद, अब तक अधिकतर परियोजनाएं अधर में हैं.

भारत का बढ़ता प्रभाव

हाल के सालों में भारत ने इस बात को समझा है कि नेपाल में चीन लगातार अपना दबदबा बढ़ा रहा है. इसके चलते नेपाल को लेकर उसकी नीतियां लचीली हुई हैं और दोनों देशों के नेता लगातार एक दूसरे के यहां आ-जा रहे हैं. बतौर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पांच बार नेपाल जा चुके  हैं.

इसी साल मई में बुद्ध पूर्णिमा के मौके पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेपाल में लुंबिनी गए थे. इस दौरे पर भारत और नेपाल के बीच छह समझौते हुए जिनमें पनबिजली परियोजनाएं प्रमुख रहीं. इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने मिलकर एक पनबिजली परियोजना के निर्माण का ऐलान किया था. 695 मेगावाट का यह हाइड्रोपावर प्लांट नेपाल के पूर्व में अरुण नदी पर बनाया जाएगा, जिससे नेपाल को 152 मेगावाट की मुफ्त बिजली मिलेगी.

नेपाली अधिकारियों ने बताया कि इस परियोजना को अरुण-4 नाम दिया गया है और इसे भारत के सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड व नेपाल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी द्वारा संयुक्त रूप से बनाया जाएगा. अथॉरिटी के प्रवक्ता सुरेश बहादुर भट्टराई ने बताया कि दोनों की साझेदारी 51-49 की होगी.

रिपोर्टः विवेक कुमार (रॉयटर्स)