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मानव तस्करी से निपटने के लिए नया कानून

३१ मई २०१६

भारत में बढ़ती मानव तस्करी की घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए एक नया कानून तैयार किया गया है. नई दिल्ली में इस विधेयक के मसौदे को महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने सार्वजनिक परामर्श के लिए पेश किया.

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Symbolbild Human Trafficking
तस्वीर: AFP/Getty Images

इस मौके पर मेनका गांधी का कहना था कि मानव तस्करी से निपटने के लिए मौजूदा कानून पर्याप्त नहीं हैं. इसके चलते इस कानून को खासतौर पर मानव तस्करी से निपटने के लिए तैयार किया गया है. उनका कहना था, ''कई बार तस्करों और पीड़ितों दोनों को जल भेज दिया जाता है. लेकिन यह विधेयक इससे काफी अलग है और इन दोनों के बीच में अंतर करता है.'' मेनका गांधी ने बताया कि देश में सालाना लाखों लोगों की तस्करी हो रही है जिनमें से अधिकतर बच्चे हैं.

इस साल के अंत में मानव तस्करी (रोकथाम, संरक्षण और पुनर्वास) विधेयक-2016 को संसद में रखा जाना है. इसके मुताबिक मानव तस्करी के अपराधियों की सजा को दोगुना करने का प्रावधान है और ऐसे मामलों की तेज सुनवाई के लिए विशेष अदालतों के गठन का भी प्रावधान है. इस कानून के मुताबिक पीड़ितों की पहचान को सार्वजनिक नहीं किया जा सकेगा.

मेनका गांधी का कहना था कि मौजूदा कानूनों में मानव तस्करी के साथ ही होने वाले कई दूसरे अपराधों की अनदेखी होती है. उनका कहना था, ''प्रस्तावित विधेयक में भारतीय दंड संहिता की उन कमियों को पाटने की कोशिश ​की गई जिससे इससे जुड़े कई और भी अपराधों को पहचाना जा सके.''

इस कानून के मुताबिक ऐसे तस्करों को जेल की सजा होगी जो पीड़ितों के शोषण के लिए ड्रग और शराब का इस्तेमाल करते हैं या बच्चों की यौन परिपक्वता को बढ़ाने के लिए रसायनों या हारमोन्स का इस्तेमाल करते हैं.

अमेरिकी विदेश मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2013 में तकरीबन साढ़े छह करोड़ लोगों की तस्करी की गई. इनमें से ​अधिकतर बच्चे हैं जिन्हें देह व्यापार, बंधुआ मजदूरी या भीख मांगने के काम में लगाया गया.

वॉक फ्री फाउंडेशन के 2014 के ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स के मुताबिक भारत में एक करोड़ चार लाख से अधिक लोग आधुनिक गुलामी में जकड़े हुए हैं. यह संख्या दुनिया भर में सबसे अधिक है. प्रस्तावित कानून में पड़ोसी देशों, मसलन नेपाल या बांग्लादेश के साथ मानव तस्करी की रोकथाम के लिए साझे तौर पर काम करने का प्रावधान भी शामिल है. हालांकि भारत के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मानव तस्करी की समस्या को बेहद कम करके आंका गया है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ​ब्यूरो में 2014 में महज 5,466 मामले ही दर्ज हुए हैं.

आरजे/वीके (एएफपी, टीआरएफ)