मोदी और जिनपिंग का मध्य-एशियाई देशों की अहमियत पर जोर
२८ जनवरी २०२२भारत और पांच मध्य-एशियाई देशों के बीच हुई बातचीत में क्षेत्रीय सहयोग और अफगानिस्तान में बढ़ते मानवीय संकट से निपटने पर सहमति बनी है. भारत की मेजबानी में 27 जनवरी को हुए इस वर्चुअल सम्मेलन में मध्य-एशियाई देश - कजाखस्तान, किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान शामिल थे. भारत और चीन - दोनों मध्य-एशिया तक अपनी पहुंच मजबूत करने में जुटे हैं. चीनी न्यूज एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक, चीनी राष्ट्रपति ने 25 जनवरी को कजाखस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के नेताओं से बात की थी.
भारत के पास फिलहाल जमीन के रास्ते मध्य-एशिया तक पहुंचने का रास्ता नहीं है. पाकिस्तान भारत को अफगानिस्तान और मध्य-एशिया तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग के इस्तेमाल की इजाजत नहीं देता. ऐसे में भारत का इरादा समुद्री रास्ते से मध्य-एशिया तक पहुंच बढ़ाने का है. सम्मेलन में भारत की देखरेख में विकसित किए जा रहे ईरान के चाबहार पोर्ट परियोजना में आपसी सहयोग पर सहमति बनी है. अफगानिस्तान समेत ये पांचों मध्य-एशियाई देश जमीन से घिरे हैं, इसलिए समुद्र तक पहुंच बढ़ाने के लिए चाबहार पोर्ट उनके लिए भी अच्छा मौका है. भारतीय विदेश मंत्रालय ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पांचों नेताओं के बीच चाबहार पोर्ट के लिए एक साझा कार्यकारी समूह बनाने पर सहमति बनी है.
तालिबान के शासन से पहले भारत अफगानिस्तान का बड़ा सहयोगी रहा है. ऐसे में भारत के लिए ईरान के चाबहार पोर्ट को विकसित करने का बड़ा मकसद इस इलाके में व्यापार करना और अपनी मौजूदगी बनाए रखना है. चाबहार से करीब 80 किलोमीटर दूर, पाकिस्तान के ग्वादर में एक बड़ा पोर्ट बनाया जा रहा है. पाकिस्तान इसे चीन के पैसे से विकसित कर रहा है. ये चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी 'वन बेल्ट, वन रोड' परियोजना का हिस्सा है. ऐसे में व्यापार, सामरिक रणनीति और कूटनीति के लिहाज से मध्य-एशिया की खासी अहमियत है. यही वजह है कि भारत और चीन यहां पकड़ मजबूत करने के लिए जोर आजमाइश कर रहे हैं. भारत ने हाल ही में चाबहार पोर्ट के इलाके में रेलवे लाइनों और सड़कों का जाल बिछाने के लिए 50 करोड़ डॉलर खर्च करने का फैसला किया है.
सम्मेलन के बाद जारी साझा बयान में सभी देशों ने अफगानिस्तान का "सही प्रतिनिधित्व करती, समावेशी सरकार बनाने" के लिए प्रतिबद्धता जताई है. तालिबान के नियंत्रण के बाद अफगानिस्तान में महिलाओं, बच्चों और अल्पसंख्यकों समेत देश की बिगड़ती आर्थिक स्थिति एक बड़ी चिंता बनी हुई है. ऐसी आशंका भी है कि तालिबान के राज में अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल पड़ोसी देशों में आतंकवाद फैलाने और नशे की चीजें पहुंचाने के लिए किया जा सकता है. इसके अलावा सम्मेलन में समुद्री परिवहन, सूचना प्रोद्योगिकी, ऊर्जा और स्वास्थ्य क्षेत्रों में सहयोग पर सहमति बनी है.
इस शीर्ष सम्मेलन से पहले दिसंबर 2021 में विदेश मंत्री स्तर के सम्मेलन की मेजबानी भारत ने की थी. भारत के इन पांचों देशों के साथ कूटनीतिक रिश्ते रहे हैं. भारत ने उज्बेकिस्तान को सीवेज सिस्टम, सड़कें और आईटी सेक्टर विकसित करने के लिए 45 करोड़ डॉलर का कर्ज दिया है. इसके अलावा 2020 में इन पांच देशों में ऊर्जा, तकनीक, स्वास्थ्य और परिवहन क्षेत्र में विकास के लिए 1 अरब डॉलर निवेश करने की घोषणा की थी.
आरएस/आरपी (एपी,आईएएनएस)