मूसलाधार बारिश और स्मार्ट सिटी बेंगुलरू बेहाल
५ सितम्बर २०२२कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू में सड़क पर इतना पानी भर गया कि सोमवार सुबह वह लोगों के चलने के लायक नहीं रही और नगर निगम के कर्मचारियों को सड़कों पर नाव उतारनी पड़ी. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के मुताबिक बेंगलुरु में 131.6 मिलीमीटर बारिश हुई, जो आठ साल पुराने रिकॉर्ड से थोड़ी ही कम है. 26 सितंबर 2014 को शहर में 132.3 मिलीमीटर बारिश हुई थी.
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सोमवार सुबह जब लोग जगे तो उन्होंने भारी बारिश के बाद जलभराव देखा, कई इमारतों के बेसमेंट में पानी भर गया. शहर के कई मुख्य सड़कों पर पानी इतना भर गया कि लोगों को सड़क पर गाड़ी चलाना मुश्किल हो गया. इसके बाद प्रशासन ने लोगों से बेवजह घर से बाहर ना निकालने की सलाह दी.
स्मार्ट शहर, लेकिन नाली नहीं
बेंगलुरू को भारत का सिलिकन शहर भी कहा जाता है. लेकिन शहर की प्लानिंग को लेकर सवाल उठते रहते हैं, खासकर तब जब भारी बारिश के बाद पानी सड़कों, घरों और इमारतों के बेसमेंट में भर जाता है.
अंतरराष्ट्रीय आईटी कंपनी में सॉफ्टवेयर डेवलेपर का काम करने वाले रमेश बी कुमार ने डीडब्ल्यू से कहा कि वह जब सप्ताह के पहले कामकाजी दिन दफ्तर जाने की तैयारी कर रहे थे तो उनके घर के बाहर काफी पानी था जिस वजह से वो दफ्तर नहीं जा सके. कुमार ने कहा, "यह हर साल की समस्या है, बारिश अगर थोड़ी भी ज्यादा होती है तो नालियां जाम हो जाती हैं और बारिश का पानी घर के भीतर तक आने लगता है. हमें नहीं समझ में आता है कि नगर निगम इस तरह की समस्या का पूर्ण समाधान क्यों नहीं निकालता."
कुमार जहां रहते हैं वह आउटर रिंग रोड इलाके में पड़ता है, उन्होंने बताया कि सोशल मीडिया पर वीडियो और तस्वीरें देखने के बाद उन्होंने घर से काम करने का फैसला किया.
बीती रात जब भारी बारिश हुई तो बेंगलुरू एयरपोर्ट जाने के रास्ते पर भी पानी लग गया. सोशल मीडिया पर डाले गए वीडियो में लोग बेबस खड़े नजर आए. केंपेगौड़ा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर खराब मौसम के कारण कई उड़ान सेवाएं बाधित हुईं. हवाई अड्डे पर रात 11.30 बजे से सुबह 4 बजे के बीच 109 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई.
अर्बन प्लानिंग की कमी
जानकारों का कहना है कि बेंगलुरू में जो हालात बने वह पटना, कोलकाता या गोवाहाटी जैसे शहरों में बीते महीने में देखा जा चुका है. वर्षों पहले चेन्नई और मुंबई जैसे महानगरों में भारी बारिश और बाढ़ में तो लोगों की जान तक भी जा चुकी है.
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साउथ एशियन फोरम फॉर एनवायरनमेंट (SAFE) के डॉ. दीपायन डे कहते हैं हर एक जगह पर पानी के बहाव की क्षमता रहती है और उसको अर्बानाइजेशन के जरिए हम लोग बर्बाद कर देते हैं. डॉ. डे ने डीडब्ल्यूसे कहा, "जब हम लोग शहरों में बिल्डिंग और सड़कों का निर्माण करते हैं तो हमारी प्लानिंग में नालियों को ध्यान में नहीं रखा जाता है. दूसरी बात यह है कि जहां पर ढांचा बन रहा है वहां पर मिट्टी का स्तर शोषित हो जाता है, जिसके चलते ढाल जो है वह बदलती रहती है और वहां पानी इकट्ठा होने का डर रहता है."
डॉ. डे मुंबई में मीठी नदी का उदाहरण देते हैं जहां हर साल भारी मानसून की बारिश के कारण बाढ़ की समस्या पैदा हो जाती है. उनका कहना है कि शहरों के भीतर तालाब और झील बंद होने (या सिकुड़ जाने से) से पानी का बहाव ठप्प हो जाता है और शहरों में बाढ़ जैसी स्थिति हो जाती है.
जानकारों का कहना है कि जिस तेजी से महानगरों का विस्तार हो रहा है वह अनियंत्रित है और बिखरा हुआ है. खासकर बेंगलुरू शहर का विस्तार अन्य शहरों के मुकाबले अधिक तेजी से हो रहा है.
अचानक बारिश ना केवल लोगों को नुकसान पहुंचाती बल्कि इससे कंपनियों को भी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता है. कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने आईटी कंपनियों को बेंगलुरु में बारिश और जलभराव के कारण 225 करोड़ रुपये के अनुमानित नुकसान पर चर्चा का आश्वासन दिया है. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक बोम्मई ने कहा है कि वह आईटी कंपनियों से चर्चा कर मुआवजे की व्यवस्था करेंगे. इससे पहले जुलाई के महीने में भी बेंगलुरू में भारी बारिश के बाद बाढ़ आ गई थी और राज्य सरकार ने केंद्र से वित्तीय मदद की मांग की थी.
इसी साल कोलकाता, पटना और चेन्नई में भी बारिश ने लोगों का बुरा हाल किया. मध्य अगस्त में मध्य प्रदेश के कई जिलों में भारी बारिश हुई थी और राजधानी भोपाल के पॉश इलाकों में बारिश के कारण सड़कों पर पानी भर गया था और कई मकान और दुकान पानी से लबालब हो गए थे.
डॉ. डे एक और चीज की ओर ध्यान दिलाते हैं. वह कहते हैं कि शहर के बीचोबीच अर्बन फॉरेस्ट (शहरी जंगल) होने चाहिए. उनका कहना है कि ऐसे जंगल पानी के ठहराव के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं और पानी के बहाव के लिए रास्ता बनाते हैं.