श्रीलंका ने कैसे दी कोरोना को मात
२१ मई २०२०करीब दो महीने के लॉकडाउन के बाद श्रीलंका में भी सामान्य जनजीवन और निजी कारोबार और सरकारी कार्यालयों को फिर से खोला जा चुका है. प्रशासन के कहा है कि कोविड-19 पर नियंत्रण पा लिया गया है. करीब 2.15 करोड़ की आबादी वाले देश में कोरोना के केवल 960 मामलों की पुष्टि हुई और नौ लोगों की जान गई. महामारी से निपटने में इस सफलता के पीछे कई कारण गिनाए रहे हैं, जिनमें बड़े पैमाने पर हुई टेस्टिंग को सबसे पहले रखा जा सकता है. 30 अप्रैल तक देश के प्रति 10 लाख लोगों में से 930 लोगों का टेस्ट हो रहा था. तुलना करें तो यह संख्या अन्य पड़ोसी देशों जैसे पाकिस्तान (703), भारत (602) और बांग्लादेश (393) से कहीं ज्यादा रही.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, काफी जल्दी लॉकडाउन लागू किए जाने के कारण भी श्रीलंका में कोरोना संकट हल्का रहा. संगठन की श्रीलंका प्रतिनिधि रजिया पेंडसे ने डीडब्ल्यू को बताया, "श्रीलंका में कोविड-19 के आधे से ज्यादा मामले 20 से 60 आयु वर्ग के लोगों में मिले. ये थोड़ा युवा लोग हैं जिनमें बीमारी के बहुत गंभीर लक्षण दिखने की संभावना कम होती है. श्रीलंका में लॉकडाउन बहुत पहले शुरू हो गया था. इसलिए ज्यादातर मामलों में हल्के लक्षण दिखने का यह भी कारण हो सकता है."
श्रीलंका से सीखने लायक सबक
1980 के दशक से ही दुनिया भर के स्वास्थ्य विशेषज्ञ श्रीलंका की स्वास्थ्य व्यवस्था को केस स्टडी के रूप में इस्तेमाल करते आए हैं. सन 1985 में अमेरिका के रॉकेफेलर फाउंडेशन ने ‘गुड हेल्थ ऐट लो कॉस्ट' नाम की अपनी रिपोर्ट में बताया था कि श्रीलंका उन देशों में शामिल है जहां कम कीमत पर अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं मिलती हैं. देश में कई दशकों से स्वास्थ्य व्यवस्था में निवेश करने और बीमारियों पर खर्च को कम रखने की परंपरा रही है. श्रीलंका के ज्यादातर निवासियों के घर के तीन किलोमीटर के दायरे में कोई सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा केंद्र मिलेगा. सन 2000 से देश के प्रति 1000 निवासियों पर औसतन तीन हॉस्पिटल बेड का इंतजाम है, जो कि इससे अमीर देशों से कहीं बेहतर है.
पहले से स्थापित निगरानी की व्यवस्था
देश ने संक्रामक और गैरसंक्रामक बीमारियों के साथ अपने पुराने अनुभव से काफी सीखा है. बीमारों की निगरानी की पहले से स्थापित सार्वजनिक व्यवस्था कोरोना काल में भी काफी काम आई. पहला मामला सामने आने के समय से ही देश में किसी भी संभावित पीड़ित की ट्रैकिंग शुरू हो गई थी. पेंडसे बताती हैं, "जनवरी के आखिरी हफ्ते में श्रीलंका में पहला मामला सामने आया था. तब से लेकर मार्च के मध्य तक कोई मामला नहीं आया. इस अंतराल में सरकार ने सुनिश्चित किया कि सार्वजनिक निगरानी तंत्र सक्रिय रहे और सांस से जुड़ी हर तरह की बीमारी के मामलों का पता चले. जैसे ही ऐसे किसी मामले की पहचान होती थी, उस पर हम अपने तरीके से जांच करके यह पुष्टि करते थे कि मामला कोविड-19 का तो नहीं है."
श्रीलंका में 2020 की शुरुआत में ही ओपन सोर्स DHIS2 प्लेटफॉर्म विकसित कर लिया गया था जो आगे चलकर विश्व भर में प्रचलित DHIS2 कोविड-19 रिस्पॉन्स पैकेज का आधार बना. एक मोबाइल ऐप कोविड शील्ड भी लॉन्च किया गया जिससे सेल्फ आइसोलेशन और क्वारंटीन के दौरान निगरानी में मदद मिली. अब इस ऐप का इस्तेमाल मालदीव जैसे देश भी कर रहे हैं.
श्रीलंका की तुलना में भारत
एक भारतीय थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में स्वास्थ्य अभियानों के प्रमुख ओमेन सी कूरियन बताते हैं कि श्रीलंका जैसे छोटे से देश की सीधी तुलना इतने विशाल और बड़ी जनसंख्या वाले पड़ोसी देश भारत से नहीं की जा सकती है. एक और बड़े अंतर के बारे में कूरियन बताते हैं, "श्रीलंका इस मामले में भारत से अधिक भाग्यशाली रहा कि उसके कोरोना वायरस के मामले क्लसटर में थे. उनमें से 40 फीसदी तो केवल नौसेना केन्द्रों से आए थे. इसके कारण भी श्रीलंका को इनसे लक्ष्यित तरीके से निपटने में मदद मिली."
दक्षिण भारतीय राज्य केरल में भी श्रीलंका जैसी प्रतिक्रिया देखने को मिली. वहां भी बाकी देश से काफी पहले लॉकडाउन लागू कर दिया गया था. इसके अलावा केरल में भी कोविड-19 जैसे सांस की बीमारी के लक्षण वाले मरीजों की प्रभावी ट्रैकिंग की गई और उन्हें फौरन स्वस्थ आबादी से अलग कर दिया गया. यही कारण है कि केरल भी कोरोना संकट को बहुत प्रभावी तरीके से काबू करने में सफल रहा है.
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