दक्षिण अफ्रीका को बांट रही है एक छोटी सी नदी
२३ अक्टूबर २०२३लीजबीक नदी दक्षिण अफ्रीका की मशहूर टेबल माउंटेन से बहती है, सिर्फ 9 किलोमीटर. लेकिन पानी की यह छोटी सी सर्पीली धारा बड़े विवाद का केंद्र बन गयी है, जिसमें एमेजॉन जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनी, स्थानीय आदिवासी समूह, पर्यावरणविद और जमीन पर हक के लिए लड़ रहे स्थानीय लोग शामिल हैं.
दक्षिण अफ्रीका में जमीन एक बेहद जज्बाती मुद्दा है. 400 साल के डच और ब्रिटिश साम्राज्यवादी शासन और फिर चार दशक की अश्वेत विरोधी सरकार के दौरान स्थानीय अश्वेत लोगों के अलावा, भारतीय मूल के लोगों और मिश्रित नस्ल के लोगों की खूब जमीनें छीनी गईं, ताकि श्वेत लोगों के लिए विशेष इलाके बनाये जा सकें.
देशभर में समाजसेवी संस्थाएं अब इन जमीनों को वापस पाने के लिए संघर्ष कर रही हैं. लेकिन लीजबीक नदी पर संघर्ष कई तरफा है. इस वजह से कानूनी और जमीनी लड़ाइयां लगातार बढ़ रही हैं और यह नदी देशभर में जारी संघर्षों का प्रतीक बन गयी है.
संघर्षों का प्रतीक बनी लीजबीक
दक्षिण अफ्रीका में जमीन के हकों पर शोध करने वाले निक बडलेंडर बताते हैं, "यह नदी एक धागा है जो देश के बहुत बड़े और नजरअंदाज कर दिये गये मुद्दों को जोड़ता है, जैसे कि पर्यावरण की सुरक्षा, आदिवासियों के अधिकार और जमीन के अधिकार.”
दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीति को खत्म हुए तीन दशक हो चुके हैं. आज देश बड़े पैमाने पर बेरोजगारी, असमानता, भ्रष्टाचार और कुपोषण जैसी समस्याओं से जूझ रहा है. इसलिए उसे बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश की चाह है ताकि आर्थिक समस्याएं सुलझ सकें. लिहाजा, एमेजॉन जैसी कंपनियां बेहद अहम हो गयी हैं.
एमेजॉन नदी पर अधिकार को लेकर इसी बात को दलील बनाती है. कंपनी की ओर से जवाब में लीजबीक लीजर प्रोपर्टीज ट्रस्ट का कहना है कि रिवर क्लब का विकास सिर्फ कंपनी के लिए नहीं है. एक बयान में उन्होंने कहा, "यह क्लब बड़ी संख्या में कॉरपोरेट घरानों, दुकानों और आम लोगों के रहने की जगह होगा. इसमें सस्ते घर उपलब्ध कराये जाएंगे. एक हरियाला गलियारा बनेगा, जिसमें 10 लाख से ज्यादा पौधे लगाये जाएंगे. एक विरासत केंद्र बनाया जाएगा जिसे आदिवासी समूह चलाएंगे.”
आदिवासियों में मतभेद
कुछ आदिवासी समूहों जैसे खोई कबीले ने इस परियोजना का समर्थन किया है लेकिन बाकी समूह इसका तीखा विरोध कर रहे हैं. गोरिंगईकोना खोई खोइन इंडिजनस ट्रडिशनल काउंसिल (जीकेकेआईटीसी) इन विरोधी संस्थाओं में से एक है. संस्था के तौरीक जेनकिन्स कहते हैं, "यह नदी इतिहास और पर्यावरण से हमारा रिश्ता है. अब इतिहास खुद को दोहरा रहा है.”
एमेजॉन इस नदी के किनारे 12 एकड़ में एक परियोजना विकसित करना चाहती है. यह वही जगह है जहां खोई और सान आदिवासियों ने पुर्तगालियों के खिलाफ 1510 में जंग लड़ी थी.
1659 में डच और खोई लोगों के बीच जंग हुई और खोई हार गये. उसके बाद डच शासक खेती के लिए मलयेशिया, मेडागास्कर और भारत से गुलाम लेकर आये. उन गुलामों के वंशज अब इसी जमीन पर रहते हैं. नदी से कुछ दूर की जमीन पर हक पाने के लिए ये लोग कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं. 1960 के दशक में टेबल पहाड़ी की तलहटी में 69 एकड़ में बसे प्रोटी गांव से इन लोगों को जबरन हटा दिया गया था.
प्रोटी गांव के लोगों के समुदाय प्रोटी विलेज कम्यूनिल प्रॉपर्टी एसोसिएशन के अध्यक्ष बैरी एलमान कहते हैं, "इस पूरे इलाके में हमारी विरासत की जड़े हैं.”
इन परिवारों ने 2006 में 5 एकड़ जमीन पर हक का मुकदमा जीता था लेकिन अन्य कानूनी लड़ाइयां जारी रहीं, इस कारण वे कब्जा नहीं पा सके. पहले पड़ोस के एक धनी इलाके के लोगों ने और फिर एक पर्यावरण समूह फ्रेंड्स ऑफ द लीजबीक (एफओएल) ने इस कब्जे का विरोध कर दिया. एफओएल का कहना है कि अगर यहां निर्माण कार्य होता है तो नदी को नुकसान होगा.
रिवर क्लब की जीत
इस बीच नदी के निचले हिस्से में एमेजॉन अफ्रीका द्वारा बनाये जा रहे 24.3 करोड़ डॉलर के रिवर क्लब के खिलाफ पर्यावरणीय समूहों की अपील को इसी मई में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया. जेनकिन्स कहते हैं कि खोई समूह ने इस परियोजना का समर्थन आदिवासियों को बांटने की साजिश है.
केपटाउन शहर ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया. प्रशासन का कहना है कि रिवर क्लब "स्थानीय निवासियों के लिए धरोहर, पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और विकास परियोजनाओं के अलावा भी बहुत से लाभ लेकर आएगा.” उसके मुताबिक शहर में निर्माण क्षेत्र में 5,000 से ज्यादा और अन्य क्षेत्रों में 19,000 से ज्यादा नौकरियां पैदा होंगी.
हालांकि जेनकिन्स कहते हैं कि ये आंकड़े बढ़ा-चढ़ाकर पेश किये जा रहे हैं और फैसले के खिलाफ अपील की जाएगी. वह कहते हैं, "हमारी विरासत बिकाऊ नहीं है.”
वीके/एए (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)