शनि के छल्ले उतने नए नहीं, जितना लगता था
१७ दिसम्बर २०२४जापानी वैज्ञानिकों की टीम ने कहा है कि शनि के छल्लों की उम्र उससे ज्यादा हो सकती है, जितना अब तक सोचा गया. उनका कहना है कि ये छल्ले "मिट्टी" जमा होने के प्रभाव से बचते रहे हैं, इसलिए इतने साफ और चमकीले दिखते हैं.
कई दशकों से वैज्ञानिकों का मानना था कि शनि के छल्ले 10 करोड़ से 40 करोड़ साल पुराने हैं. यह अनुमान अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के कैसिनी मिशन के डेटा पर आधारित था. 2017 में मिशन खत्म होने से पहले कैसिनी ने दिखाया था कि छल्ले बहुत साफ-सुथरे हैं. उन पर अंतरिक्ष की धूल (माइक्रोमिटीऑरॉइड्स) के टकराने से काला असर नहीं पड़ा था, जो आमतौर पर समय के साथ होना चाहिए.
इस साफ-सफाई के कारण वैज्ञानिकों ने सोचा कि ये छल्ले हाल ही में बने होंगे. अनुमान था कि शायद किसी चंद्रमा या धूमकेतु के टूटने से ये छल्ले बने. लेकिन नए अध्ययन ने इस विचार को चुनौती दी है. ‘नेचर जियोसाइंस‘ में प्रकाशित इस शोध के अनुसार, टोक्यो के इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस के वैज्ञानिक रयुकी ह्योडो और उनकी टीम ने कंप्यूटर सिमुलेशन का इस्तेमाल किया. उनका कहना है कि छल्ले नए नहीं हैं बल्कि "धूल से बचने की क्षमता" के कारण साफ दिखते हैं.
कैसे रहते हैं छल्ले साफ?
शोध के मुताबिक, जब माइक्रोमिटीऑरॉइड्स (रेत के कणों से भी छोटे कण) शनि के छल्लों की बर्फ से टकराते हैं, तो वे वाष्प बन जाते हैं. यह वाष्प तेजी से फैलता है और उससे बने चार्ज्ड कण या तो शनि की ग्रैविटी में समा जाते हैं या अंतरिक्ष में उड़ जाते हैं. इसी वजह से गंदगी छल्लों पर टिकती ही नहीं.
ह्योडो ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "हमारे शोध से लगता है कि शनि के छल्ले नए नहीं, बल्कि खुद को साफ रखने के अद्भुत सिस्टम की वजह से साफ दिखते हैं. हो सकता है कि ये छल्ले शनि के बनने के शुरुआती समय में ही बने हों."
वैज्ञानिकों का मानना है कि भले ही छल्ले शनि के जीवनकाल के बीच (करीब 2.25 अरब साल पहले) बने हों, लेकिन सिमुलेशन से यह ज्यादा संभावना लगती है कि ये सौरमंडल के शुरुआती समय में बने थे. उस समय बड़े ग्रह एक-दूसरे के करीब आते-जाते थे और टकराव की घटनाएं ज्यादा होती थीं.
कैसिनी मिशन और नई खोज
कैसिनी मिशन ने शनि और उसके छल्लों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी. मिशन ने दिखाया कि छल्ले लगभग पूरी तरह बर्फ के बने हैं. बर्फ में गैर-बर्फीले पदार्थों की मात्रा बहुत कम है. पहले सोचा गया था कि समय के साथ माइक्रोमिटीऑरॉइड्स की वजह से बर्फ गंदी और काली हो जाती.
लेकिन नए शोध में बताया गया कि गैर-बर्फीला पदार्थ छल्लों पर टिकता ही नहीं. जब ये कण टकराते हैं, तो वाष्प बनकर बिखर जाते हैं. टीम के मॉडल्स के मुताबिक एक फीसदी से भी कम गंदगी छल्लों में समा पाती है. इससे पहले वैज्ञानिक मानते थे कि यह दर 10 फीसदी से ज्यादा है.
शनि के छल्लों का रहस्य
शनि के छल्लों का रहस्य वैज्ञानिकों को आकर्षित करता रहा है. इन छल्लों को पहली बार 1610 में गैलीलियो ने देखा था. तब उन्होंने इसे "कान" जैसी संरचना बताया था. बाद में डच खगोलशास्त्री क्रिस्टियान ह्यूजेंस ने बताया कि ये छल्ले फ्लैट डिस्क की तरह हैं, जो शनि के चारों ओर घूम रहे हैं.
ये छल्ले बर्फ के लाखों-करोड़ों टुकड़ों से बने हैं. इन टुकड़ों का आकार छोटे कणों से लेकर कई मीटर बड़े टुकड़ों तक होता है. छल्ले काफी पतले होते हैं, सिर्फ 10 मीटर मोटे. लेकिन ये 2.8 लाख किलोमीटर दूर तक फैले हुए हैं.
वैज्ञानिकों के लिए इन छल्लों की उम्र और उत्पत्ति हमेशा से एक बड़ा सवाल रहा है. पहले माना जाता था कि शनि के पास किसी चंद्रमा या धूमकेतु के टूटने से ये छल्ले बने होंगे. लेकिन नई खोज बताती है कि शायद ये छल्ले सौरमंडल के शुरुआती समय के गवाह हैं.
क्या मायने रखती है ये खोज?
अगर शनि के छल्ले इतने पुराने हैं, तो वे हमें सौरमंडल के शुरुआती दिनों की झलक दिखाते हैं. इससे पता चल सकता है कि ग्रह और चंद्रमा कैसे बने और उनके चारों ओर की घटनाएं कैसी रहीं.
हालांकि टीम के मॉडल्स में अभी भी कुछ अनिश्चितताएं हैं, जैसे कि छल्लों के कणों की ताकत और संरचना. लेकिन यह खोज एक नया नजरिया देती है कि ये छल्ले कुछ समय के लिए नहीं, बल्कि अरबों सालों से शनि के साथ बने हुए हैं.
ह्योडो ने कहा, "शनि के छल्ले सौरमंडल की सबसे खूबसूरत और अद्भुत चीजों में से हैं. अगर ये शनि के जितने पुराने हैं, तो यह उनकी सुंदरता को और भी खास और स्थायी बना देता है."
वैज्ञानिक अभी भी इस डेटा का विश्लेषण कर रहे हैं. लेकिन इतना तय है कि शनि के छल्ले हमें सौरमंडल के इतिहास की रोमांचक कहानियां सुनाने का मौका देते रहेंगे.