बच्चों के लिए कब्रिस्तान बनता कोटा
३ अक्टूबर २०२३शाकिब खान (पहचान छुपाने के लिए बदला हुआ नाम) की हर सुबह, असफलता के बार-बार आने वाले बुरे सपनों की यादों से शुरू होती है. वह हर वक्त चिंता और भय का अनुभव करता है. 20 वर्षीय इस छात्र का सपना है कि वो भारत के सबसे प्रतिष्ठित कॉलेजों में से एक, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) में प्रवेश पा जाए. उनके माता-पिता लंबे समय से चाहते थे कि वह एक सफल इंजीनियर बने.
कोटा : ऊंची उड़ान की बजाय आत्महत्या क्यों कर रहे हैं बच्चे
तीन साल पहले, शाकिब भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश से कोटा चला गया, जो राजस्थान में निजी कोचिंग संस्थानों का एक बड़ा केंद्र है. इस शहर में देश के कुछ सबसे प्रतिष्ठित मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश की उम्मीद कर रहे युवाओं को कोचिंग संस्थानों के जरिए मार्गदर्शन मिलता है.
यहां रहना काफी खर्चीला है और शाकिब के माता-पिता को भी कोटा में उसके निजी कोचिंग का खर्च उठाने के लिए रिश्तेदारों से पैसे उधार लेने पड़े.
छात्रों की आत्महत्याएं क्यों बढ़ रही हैं?
शाकिब आईआईटी की प्रवेश परीक्षा के अपने पहले प्रयास में सफल नहीं हो पाया जिसके बाद से रातों की नींद हराम है. कमजोर मनोबल के कारण वो अपने जीवन को समाप्त करने के बारे में भी सोचता है. लेकिन नियमित दवा लेने के बाद अब वो थोड़ा बेहतर तरीके से इन परिस्थितियों का सामना करने लगा है.
आईआईटी में जगह पक्की करने के लिए अब वह दूसरी कोशिश कर रहा है. एक बार फिर प्रवेश परीक्षा पास करने के लिए भारी दबाव है. डीडब्ल्यू से बातचीत में शाकिब कहता है, "जब आप उदास महसूस करते हैं तो उन क्षणों में आपके पास कोई भावनात्मक समर्थन नहीं होता. मैं दिन-रात रोता रहता था. माता-पिता की ओर से प्रदर्शन करने का अत्यधिक दबाव और अपेक्षाएं होती हैं और यह आपको अंदर से मार देती है. कभी-कभी आप इसे और अधिक नहीं झेल सकते और आप टूट जाते हैं.”
कोटा शहर में यहएक चिंताजनक प्रवृत्ति देखी जा रही है क्योंकि छात्र अत्यधिक दबाव, भयंकर प्रतिस्पर्धा और उस सहानुभूति की कमी से जूझ रहे हैं जो विफलता को मनोवैज्ञानिक हताशा में बदल देती है. कोटा में इस साल अब तक कम से कम 23 छात्रों ने आत्महत्या की है. पिछले महीने तो दो बच्चों ने एक ही दिन आत्महत्या की.
आत्महत्या को कैसे रोका जाए
आगे की आत्महत्याओं को रोकने के लिए, राजस्थान पुलिस ने एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी चंद्रासिल ठाकुर की अध्यक्षता में एक छात्र इकाई स्थापित करने के लिए 11 अधिकारियों की एक विशेष टीम बनाई है. वे और उनकी टीम उन छात्रों की मदद करने के लिए हॉस्टल और कोचिंग सेंटरों का दौरा करते हैं जो अतिसंवेदनशील होते हैं.
डीडब्ल्यू से बातचीत में ठाकुर ने बताया, "हमने ऐसे कई मामलों को रोका है जहां छात्रों ने अपने दरवाजे बंद कर लिए हैं. हम तुरंत उनके छात्रावासों में जाते हैं, उनके माता-पिता को सूचित करते हैं और उनकी काउंसिलिंग शुरू करते हैं.” टीम ने एक हेल्पलाइन भी खोली है जहां छात्र पहुंच सकते हैं और लोगों से बात कर सकते हैं.
ठाकुर बताते हैं कि उनके पास मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से परेशान छात्रों के हर दिन कम से कम 10 कॉल्स आते हैं. कई कोचिंग सेंटरों ने मानसिक स्वास्थ्य संकट को दूर करने के प्रयास में योग कक्षाएं और संगीत समारोह जैसी आकर्षक और आरामदायक गतिविधियां भी शुरू की हैं.
शिक्षक, छात्रावास मालिक और डॉक्टर भी संकट महसूस कर रहे ऐसे छात्रों की मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
जानलेवा दबाव
भारत में दुनिया की सबसे अधिक युवा आत्महत्या दर है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक, साल 2020 में हर 42 मिनट में एक छात्र ने आत्महत्या की. उसी साल, पूरे भारत में 18 वर्ष से कम उम्र के छात्रों की 11,396 आत्महत्याएं दर्ज की गईं.
कोटा में सुनहरे सपनों के बीच दम तोड़ती जिंदगियां
कोटा मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर विनोद दरिया कोचिंग संस्थानों में प्रशिक्षित काउंसलर की कमी से चिंतित हैं. वो कहते हैं कि छात्र साथियों और माता-पिता के दबाव से पीड़ित होते हैं. डॉक्टर दरिया कहते हैं, "बड़ी संख्या में छात्र कम आय वाले परिवारों से आते हैं, जिन पर माता-पिता की उम्मीदों का बोझ होता है कि वे डॉक्टर या इंजीनियर बनेंगे. यह उन पर भारी पड़ता है और उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालता है.”
डॉक्टर दरिया अपने अस्पताल में, नियमित रूप से उन छात्रों से मिलते हैं जो तीव्र तनाव और अवसाद यानी डिप्रेशन से पीड़ित हैं. वो कहते हैं, "मैं हर दिन दर्जनों छात्रों को देखता हूं और उनमें से 4 फीसद अवसाद से पीड़ित पाए जाते हैं. और दुखद बात यह है कि मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता की कमी के कारण कुछ लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं. ऐसे कुछ मामले हैं जहां छात्रों को मनोचिकित्सकों से गंभीर मदद की जरूरत होती है.”
डरे हुए मां-बाप कोटा चले गए
हाल ही में छात्रों की आत्महत्याओं की घटनाओं के कारण, चिंतित कई माता-पिता अपने बच्चों की मदद के लिए खुद भी कोटा चले गए हैं. लेकिन शाकिब की मां, शाहजहां खान और कई अन्य माता-पिता, कोटा जाने का जोखिम नहीं उठा सकते. हाल ही में आत्महत्या के बढ़ते मामलों के बीच शाहजहां खान भी अपने बेटे के लिए चिंतित हैं और शाकिब की स्थिति को जांचने के लिए वो दिन में पांच बार उसे फोन करती हैं.
डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहती हैं, "मेरे दिमाग में एक अजीब और लगातार डर बना रहता है. मैं उससे कहती रहती हूं कि वो अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करे और नतीजों की चिंता न करे.”