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ऊर्जा क्षेत्र से होने वाला उत्सर्जन रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचा

२० जून २०२४

अक्षय ऊर्जा स्रोतों से उत्पादन में आई बड़ी तेजी के बावजूद जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम नहीं की जा सकी है. पेरिस जलवायु समझौते में तय किए गए लक्ष्य हासिल करने की दिशा में हम काफी धीमे हैं.

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शाम के समय काले धुएं से ढकी आबोहवा में नजर आ रहीं कोयला आधारित बिजलीघर की चिमनियां.
2023 में जर्मनी में हुए नेट इलेक्ट्रिसिटी उत्पादन में अक्षय ऊर्जा स्रोतों की हिस्सेदारी 59 फीसदी से ज्यादा रही. बिजली बनाने में लिगनाइट और कोयले का इस्तेमाल घटा. पिछले साल 139.9 टेरावॉट उत्पादन के साथ पवन ऊर्जा बिजली का सबसे बड़ा स्रोत साबित हुआ. तस्वीर: IMAGO/Pond5 Images

दुनिया में जीवाश्म ईंधनों की खपत और ऊर्जा क्षेत्र से होने वाले ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन 2023 में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया. यह स्थिति तब है, जबकि अक्षय ऊर्जा स्रोतों में हुई वृद्धि के कारण ग्लोबल एनर्जी सेक्टर में जीवाश्म ईंधनों की हिस्सेदारी में मामूली गिरावट आई. 

ग्लोबल प्राइमरी एनर्जी की खपत अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंचकर 620 एक्साजूल पर पहुंच गई. पहली बार कार्बन डाई ऑक्साइड (सीओटू) का उत्सर्जन भी 40 गीगाटन के पार चला गया. प्रकृति और पर्यावरण में हो रहे नुकसान और जलवायु परिवर्तन के गंभीर असर को देखते हुए जानकार इसे वैश्विक रणनीति की कमजोरी के तौर पर देख रहे हैं.  

अमेरिका का पहला ऑफशोर विंड फार्म. यह ब्लॉक आइलैंड के समुद्रतट के पास है.
जानकार जोर देते हैं कि जीवाश्म ईंधनों को फेज-आउट, यानी धीरे-धीरे चरणबद्ध तरीके से उनका इस्तेमाल घटाने के साथ-साथ कम उत्सर्जन वाले स्रोतों से ऊर्जा आपूर्ति बढ़ाने की भी जरूरत है. तस्वीर: David Goldman/AP Photo/picture alliance

हरित ऊर्जा की ओर बढ़ने की रफ्तार बहुत धीमी

यह जानकारी एनर्जी इंस्टिट्यूट की स्टैटिस्टिकल रिव्यू ऑफ वर्ल्ड एनर्जी की रिपोर्ट में सामने आई है. प्राइमरी एनर्जी से आशय उस ऊर्जा तत्व से है, जिसे एनर्जी के किसी प्राकृतिक स्रोत से हासिल किया जा सकता है. यह ऊर्जा की वह मात्रा है, जो परिवर्तित किए बगैर उस स्रोत में मौजूद होती है. प्राइमरी एनर्जी, या प्राकृतिक ऊर्जा, जीवाश्म और अक्षय, दोनों तरह के स्रोतों में होती है.

क्या जर्मनी में परमाणु बिजलीघरों की वापसी मुमकिन है?

अक्षय ऊर्जा के उत्पादन में वृद्धि के बावजूद जीवाश्म ईंधनों की बढ़ती मांग कम चिंता का विषय है. इससे पता चलता है कि स्वच्छ ऊर्जा एनर्जी की बढ़ती मांग का मुकाबला नहीं कर पा रही है. यानी, ग्लोबल वॉर्मिंग को सीमित करने की दिशा में दुनिया को ऊर्जा उत्पादन में जिस बदलाव की जरूरत है, वह अब भी बेहद धीमा है.

जर्मनी में एक समुद्रतट के पास लगे ऑफशोर विंड फार्म में नजर आ रहीं पवनचक्कियां.
2023 में दुनियाभर में सौर और पवन ऊर्जा से जुड़े जितने ढांचे लगे, उनका 63 फीसदी हिस्सा अकेले चीन में लगा. बीते सालों में चीन के प्राइनरी एनर्जी मिक्स में जीवाश्म ईंधनों का अनुपात कम हुआ है. एनर्जी मिक्स से आशय उन सभी स्रोतों से है, जिनका इस्तेमाल ऊर्जा से जुड़ी जरूरतें पूरी करने में किया जाता है. इनमें तेल, गैस, कोयला जैसे जीवाश्म ईंधनों के अलावा परमाणु ऊर्जा, जियोथर्मल, पवन, सौर, पनबिजली शामिल हैं. तस्वीर: Christian Charisius/Pool/REUTERS

अक्षय ऊर्जा उत्पादन में आई तेजी भी काफी नहीं

एनर्जी सेक्टर से होने वाले उत्सर्जन को घटाने के लिए अक्षय ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाना, वैश्विक तापमान वृद्धि को डेढ़ डिग्री तक सीमित रखने की दिशा में अहम माना जाता रहा है. कार्ने कंसल्टेंसी के रोमेन डेबारे ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "हम उम्मीद करते हैं कि यह रिपोर्ट सरकारों, दुनिया के नेताओं और विश्लेषकों को आगे बढ़कर स्पष्ट रूप से यह देखने में मदद करेगी कि सामने कैसी चुनौतियां हैं."

केपीएमजी कंसल्टेंसी के सिमोन विर्ले ने जीवाश्म ईंधनों के इस्तेमाल में गिरावट ना आने पर चिंता जताते हुए बताया, "एक ऐसे साल में, जहां हमने अक्षय ऊर्जा स्रोतों के योगदान को रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ते देखा, दुनिया में एनर्जी की मांग का स्तर भी पहले से कहीं ज्यादा बढ़ा. इसका मतलब है कि जीवाश्म ईंधनों से ऊर्जा का जो हिस्सा मिलता है, उसमें कमोबेश कोई बदलाव नहीं आया है."

भारत के मेघालय राज्य में सड़क किनारे बने एक कोयला डिपो पर टोकरियों में कोयला ढो रहे बाल मजदूर.
भारत के एनर्जी मिक्स में कोयले की हिस्सेदारी करीब 55 फीसदी है. भारत इसे अपने लिए सबसे अहम जीवाश्म ईंधन बताता है क्योंकि देश में कोयले का बड़ा भंडार है. भारत के लिए कोयला एक सस्ता और सुगम संसाधन है. भारत ने सौर और पवन ऊर्जा में काफी विकास किया है, लेकिन ऊर्जा क्षेत्र में इनकी भागीदारी अब भी काफी कम है. तस्वीर: ROBERTO SCHMIDT/AFP

जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल एक सा नहीं

रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि दुनियाभर में जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल एक जैसा नहीं है. मसलन, यूरोप में फॉसिल फ्यूल की खपत का रुझान बदलता दिखा. औद्योगिक क्रांति के बाद से पहली बार यहां जीवाश्म ईंधनों से मिलने वाली ऊर्जा का स्तर 70 फीसदी से नीचे रहा. 

इसकी एक वजह यूक्रेन पर किए गए रूस के हमले के बाद रूसी गैस की खपत में आई कमी भी है. जर्मनी का कार्बन उत्सर्जन सात दशकों में सबसे कम रहा और कोयले की कम खपत ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई. अमेरिका में भी कोयले के इस्तेमाल में 17 फीसदी तक की गिरावट देखी गई.

वहीं, भारत जैसे तेज रफ्तार विकास वाले देशों में जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल बढ़ा है. भारत में कोयले के इस्तेमाल में खासा इजाफा हुआ और जीवाश्म ईंधनों की कुल खपत में आठ फीसदी की वृद्धि हुई. भारत में ऊर्जा की बढ़ी हुई मांग का तकरीबन पूरा हिस्सा जीवाश्म ईंधन आधारित एनर्जी से पूरा हुआ.

चीन में एक ओर जहां सौर और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में काफी काम हुआ, वहीं 2023 में यहां भी जीवाश्म ईंधनों का उपभोग छह फीसदी बढ़ा है. हालांकि, अक्षय ऊर्जा स्रोतों में चीन के बड़े निवेश में जानकार काफी संभावनाएं देखते हैं.

चीनी कंपनियों को कैसे टक्कर दे रहा है जर्मनी का एक सोलर स्टार्टअप

केपीएमजी के सिमोन विर्ले बताते हैं कि बाकी पूरी दुनिया मिलकर अक्षय ऊर्जा का जितना ढांचा खड़ा कर रही है, उससे कहीं ज्यादा चीन अकेला कर रहा है. जानकारों का मानना है कि चीन 2030 से पहले ही स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों से बिजली की बढ़ी मांग को पूरा करने में कामयाब हो सकता है.

सौर ऊर्जा से मेघालय की सेहत बदली

जीवाश्म ईंधनों की हमारे भविष्य में क्या भूमिका और जगह होगी, यह पिछले साल दुबई में हुए कॉप28 जलवायु सम्मेलन में मुख्य मुद्दा रहा था. जानकार जोर देते हैं कि जीवाश्म ईंधनों को फेज-आउट, यानी क्रमिक तौर पर इस्तेमाल घटाने के साथ-साथ कम उत्सर्जन वाले स्रोतों से ऊर्जा आपूर्ति बढ़ाने की भी जरूरत है.

एसएम/सीके (रॉयटर्स)