ऊर्जा क्षेत्र से होने वाला उत्सर्जन रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचा
२० जून २०२४दुनिया में जीवाश्म ईंधनों की खपत और ऊर्जा क्षेत्र से होने वाले ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन 2023 में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया. यह स्थिति तब है, जबकि अक्षय ऊर्जा स्रोतों में हुई वृद्धि के कारण ग्लोबल एनर्जी सेक्टर में जीवाश्म ईंधनों की हिस्सेदारी में मामूली गिरावट आई.
ग्लोबल प्राइमरी एनर्जी की खपत अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंचकर 620 एक्साजूल पर पहुंच गई. पहली बार कार्बन डाई ऑक्साइड (सीओटू) का उत्सर्जन भी 40 गीगाटन के पार चला गया. प्रकृति और पर्यावरण में हो रहे नुकसान और जलवायु परिवर्तन के गंभीर असर को देखते हुए जानकार इसे वैश्विक रणनीति की कमजोरी के तौर पर देख रहे हैं.
हरित ऊर्जा की ओर बढ़ने की रफ्तार बहुत धीमी
यह जानकारी एनर्जी इंस्टिट्यूट की स्टैटिस्टिकल रिव्यू ऑफ वर्ल्ड एनर्जी की रिपोर्ट में सामने आई है. प्राइमरी एनर्जी से आशय उस ऊर्जा तत्व से है, जिसे एनर्जी के किसी प्राकृतिक स्रोत से हासिल किया जा सकता है. यह ऊर्जा की वह मात्रा है, जो परिवर्तित किए बगैर उस स्रोत में मौजूद होती है. प्राइमरी एनर्जी, या प्राकृतिक ऊर्जा, जीवाश्म और अक्षय, दोनों तरह के स्रोतों में होती है.
क्या जर्मनी में परमाणु बिजलीघरों की वापसी मुमकिन है?
अक्षय ऊर्जा के उत्पादन में वृद्धि के बावजूद जीवाश्म ईंधनों की बढ़ती मांग कम चिंता का विषय है. इससे पता चलता है कि स्वच्छ ऊर्जा एनर्जी की बढ़ती मांग का मुकाबला नहीं कर पा रही है. यानी, ग्लोबल वॉर्मिंग को सीमित करने की दिशा में दुनिया को ऊर्जा उत्पादन में जिस बदलाव की जरूरत है, वह अब भी बेहद धीमा है.
अक्षय ऊर्जा उत्पादन में आई तेजी भी काफी नहीं
एनर्जी सेक्टर से होने वाले उत्सर्जन को घटाने के लिए अक्षय ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाना, वैश्विक तापमान वृद्धि को डेढ़ डिग्री तक सीमित रखने की दिशा में अहम माना जाता रहा है. कार्ने कंसल्टेंसी के रोमेन डेबारे ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "हम उम्मीद करते हैं कि यह रिपोर्ट सरकारों, दुनिया के नेताओं और विश्लेषकों को आगे बढ़कर स्पष्ट रूप से यह देखने में मदद करेगी कि सामने कैसी चुनौतियां हैं."
केपीएमजी कंसल्टेंसी के सिमोन विर्ले ने जीवाश्म ईंधनों के इस्तेमाल में गिरावट ना आने पर चिंता जताते हुए बताया, "एक ऐसे साल में, जहां हमने अक्षय ऊर्जा स्रोतों के योगदान को रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ते देखा, दुनिया में एनर्जी की मांग का स्तर भी पहले से कहीं ज्यादा बढ़ा. इसका मतलब है कि जीवाश्म ईंधनों से ऊर्जा का जो हिस्सा मिलता है, उसमें कमोबेश कोई बदलाव नहीं आया है."
जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल एक सा नहीं
रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि दुनियाभर में जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल एक जैसा नहीं है. मसलन, यूरोप में फॉसिल फ्यूल की खपत का रुझान बदलता दिखा. औद्योगिक क्रांति के बाद से पहली बार यहां जीवाश्म ईंधनों से मिलने वाली ऊर्जा का स्तर 70 फीसदी से नीचे रहा.
इसकी एक वजह यूक्रेन पर किए गए रूस के हमले के बाद रूसी गैस की खपत में आई कमी भी है. जर्मनी का कार्बन उत्सर्जन सात दशकों में सबसे कम रहा और कोयले की कम खपत ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई. अमेरिका में भी कोयले के इस्तेमाल में 17 फीसदी तक की गिरावट देखी गई.
वहीं, भारत जैसे तेज रफ्तार विकास वाले देशों में जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल बढ़ा है. भारत में कोयले के इस्तेमाल में खासा इजाफा हुआ और जीवाश्म ईंधनों की कुल खपत में आठ फीसदी की वृद्धि हुई. भारत में ऊर्जा की बढ़ी हुई मांग का तकरीबन पूरा हिस्सा जीवाश्म ईंधन आधारित एनर्जी से पूरा हुआ.
चीन में एक ओर जहां सौर और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में काफी काम हुआ, वहीं 2023 में यहां भी जीवाश्म ईंधनों का उपभोग छह फीसदी बढ़ा है. हालांकि, अक्षय ऊर्जा स्रोतों में चीन के बड़े निवेश में जानकार काफी संभावनाएं देखते हैं.
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केपीएमजी के सिमोन विर्ले बताते हैं कि बाकी पूरी दुनिया मिलकर अक्षय ऊर्जा का जितना ढांचा खड़ा कर रही है, उससे कहीं ज्यादा चीन अकेला कर रहा है. जानकारों का मानना है कि चीन 2030 से पहले ही स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों से बिजली की बढ़ी मांग को पूरा करने में कामयाब हो सकता है.
जीवाश्म ईंधनों की हमारे भविष्य में क्या भूमिका और जगह होगी, यह पिछले साल दुबई में हुए कॉप28 जलवायु सम्मेलन में मुख्य मुद्दा रहा था. जानकार जोर देते हैं कि जीवाश्म ईंधनों को फेज-आउट, यानी क्रमिक तौर पर इस्तेमाल घटाने के साथ-साथ कम उत्सर्जन वाले स्रोतों से ऊर्जा आपूर्ति बढ़ाने की भी जरूरत है.
एसएम/सीके (रॉयटर्स)