दुनिया भर में हिमखंडों पर बुरी पड़ी है इस बार गर्मी की मार
२७ जुलाई २०२२स्विट्जरलैंड के ग्लेशियर पर जिस आसानी से 45 वर्षीय हिमखंड-विज्ञानी आंद्रियास लिंजबावर अपने सामान को धकेल रहे हैं, लगता नहीं है कि उनके पास 10 किलो भारी स्टील के उपकरण हैं. वह जांचने निकले हैं कि ग्लेशियर कितने कम हो गए हैं. आमतौर पर वह इस काम को सितंबर के महीने में शुरू करते हैं जबकि सर्दियां आने वाली होती हैं और गर्मी खत्म होने के साथ पिघलना बंद हो जाता है. लेकिन इस बार यह काम दो महीने पहले शुरू हो रहा है क्योंकि 15 वर्ग किलोमीटर में फैले बर्फ के इस विशाल मैदान को आपातकालीन मरम्मत की जरूरत है. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इस साल बहुत ज्यादा बर्फ पिघल गई है.
यूरोप के आल्प्स पर्वत के ग्लेशियर 60 साल में सबसे ज्यादा बर्फ पिघलने का रिकॉर्ड बनाने की ओर बढ़ रहे हैं. हर साल सर्दियों में जितनी बर्फ गिरती है और गर्मियों में जितनी पिघलती है, उसके अंतर से वैज्ञानिक गणना करते हैं कि ग्लेशियर के भार में कितनी कमी आई. इस साल यह कमी रिकॉर्ड हो सकती है.
पिछली सर्दियों में कमोबेश कम हिमपात हुआ था. और उसके बाद से आल्प्स दो भयंकर ग्रीष्म लहरें झेल चुका है. इनमें हाल ही में गुजरी गर्मी की वह लहर भी शामिल है जिसके दौरान स्विट्जरलैंड के पहाड़ी गांव त्सेरमाट में तापमान 30 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था.
इस ग्रीष्म लहर के दौरान पानी के जमने की जगह लगभग दो हजार मीटर ऊपर चली गई. आमतौर पर यहां 3000-3500 मीटर पर पानी जम जाता है लेकिन इस बार ऐसा 5,184 मीटर पर हो रहा था. लिंजबावर कहते हैं, “जाहिर है कि इस बार मौसम का चरम है.”
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पिछले हिम युग के बचे हुए निशान, दुनिया के अधिकतर पहाड़ी ग्लेशियर जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहे हैं. लेकिन यूरोप के आल्प्स में पाए जाने वाले इन हिमखंडों पर खतरा कुछ ज्यादा है क्योंकि वे अन्य हिमखंडों की तुलना में छोटे हैं और बर्फ की परत भी पतली है. आल्प्स में तापमान में औसत वृद्धि भी 0.3 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक की दर से हो रही है, जो वैश्विक औसत से दोगुना है.
हर जगह सिकुड़ रहे हैं हिमखंड
2019 में जारी हुई यूएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि जारी रहता है तो साल 2100 तक आल्प्स के ग्लेशियर 80 प्रतिशत तक सिकुड़ जाएंगे. और गैसों के उत्सर्जन में जो भी कमी पेशी हो, बहुतों का गायब हो जाना तो तय है. इसकी वजह अब तक हुआ ग्रीनहाउस उत्सर्जन है जो स्थायी नुकसान पहुंचा चुका है.
जहां लिंजबावर काम कर रहे हैं, वह मोर्टेरात्श ग्लेशियर पहले ही सिकुड़ चुका है. कभी बर्फ की सफेद जीभ जो नीचे घाटी को छुआ करती थी अब वह लगभ तीन किलोमीटर छोटी हो चुकी है. बर्फ की गहराई भी करीब 200 मीटर तक कम हो चुकी है. बगल का हिमखंड पेर्स 2017 तक मोर्टेरात्श को छुआ करता था लेकिन अब उन दोनों के बीच एक खाई साफ नजर आती है.
इस साल जो गर्मी पड़ी है, उसके बाद ये चिंताएं और गहरा गई हैं कि आल्प्स के हिमखंड अनुमान से पहले ही खत्म हो सकते हैं. ग्लेशियर मॉनिटरिंग स्विट्जरलैंड के मुखिया मथियास हस कहते हैं कि अगर 2022 जैसी गर्मियों का आना बढ़ता है तो ऐसा जरूर हो जाएगा.
मथियास कहते हैं, “जो नतीजे कुछ दशक बाद मिलने थे, वे हम अभी देख रहे हैं. मैंने सोचा नहीं था कि इतना कठोर साल इस सदी में इतनी जल्दी आ जाएगा.”
हिमालय का नुकसान
जो यूरोप में हो रहा है, वैसा ही कुछ हिमालय में भी हो रहा है. भारत के उत्तर में खड़ा यह विशाल पर्वत अपने हिमखंडों को तेजी से खोता जा रहा है. इस साल हिमालय में बर्फ का रिकॉर्ड नुकसान होना तय है. मिसाल के तौर पर जब कश्मीर में इस साल मानसून आया तो कई हिमखंड पहले ही बहुत सिकड़ चुके थे. मार्च से मई के बीच पड़ी भयंकर गर्मी के कारण तलहटी की बर्फ पिघलकर बह चुकी थी.
हिमाचल प्रदेश में जून में हुए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि छोटी शिगड़ी हिमखंड अपनी काफी बर्फ खो चुका है. आईआईटी इंदौर में हिमखंड विज्ञानी मोहम्मद फारूक आजम कहते हैं, “मार्च से मई के बीच इस सदी का सबसे ज्यादा तापमान रहा, जिसका असर साफ नजर आ रहा है.”
क्यों बुरा है हिमखंडों का जाना?
गायब होते हिमखंड पहले ही लोगों की जान और जीविका के लिए खतरा बन चुके हैं. इस महीने की शुरुआत में इटली के मारमालोडा में एक हिमखंड के टूटने से 11 लोग मारे गए थे. कुछ दिन बाद पूर्वी किरगिस्तान में शान पहाड़ियों पर हिमस्खलन हुआ जिसने सैकड़ों पर्यटकों को मुश्किल में डाल दिया और रास्ते बंद कर दिये.
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स्विट्जरलैंड में तो लोगों को डर सता रहा है कि हिमखंड ना रहे तो उनकी रोजी-रोटी का क्या होगा. आल्प्स में कुछ इलाकों का मुख्य कारोबार ही स्कीइंग जैसे शीतकालीन खेल और उनके जरिए होने वाला पर्यटन है. यह पूरी तरह हिमखंडों पर निर्भर है. अगर बर्फ यूं ही पिघलती रही, तो ना हिमखंड रहेंगे, ना पर्यटक आएंगे. फिर लोग क्या कमाएंगे और क्या खाएंगे!
स्विट्जरलैंड की हसीन सफेद वादियां तो देश की पहचान भी हैं. ये वादियां फिल्मों से लेकर किस्से-कहानियों तक में मौजूद हैं. आल्प्स हिमखंड को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज का दर्जा हासिल है. एक हाइकर बर्नार्डीन शावेलाज कहते हैं, “हिमखंडों को खोना, राष्ट्रीय विरासत को खोना है. यह बात उदास करती है.”
वीके/एए (रॉयटर्स)