1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

स्विट्जरलैंड में पिघलते ग्लेशियरों से 180 नई झीलें बनी

२६ जुलाई २०२१

हाल के सालों में स्विट्जरलैंड में ग्लेशियरों के पिघलने के कारण 180 नई झीलें बनी हैं.

https://p.dw.com/p/3y2yH
तस्वीर: Getty Images/AFP/J. Ordonez

स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ एक्वाटिक साइंस एंड टेक्नोलॉजी का कहना है कि आल्पस में जलवायु परिवर्तन के स्पष्ट प्रमाण हैं.  स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ एक्वाटिक साइंस एंड टेक्नोलॉजी की रिपोर्ट के मुताबिक 2006 से 2016 तक इस क्षेत्र में सालाना आधार पर 15 लाख वर्ग मीटर का क्षेत्र पानी में डूब गया. ताजा रिपोर्ट के मुताबिक जिस दर से ग्लेशियर पिघल रहे हैं वह असामान्य है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि आल्प्स क्षेत्र में केवल दस सालों में एक 180 नई झीलें बन गई हैं.

तेजी से बन रही हैं झीलें

समाचार एजेंसी डीपीए के मुताबिक 19वीं सदी के बाद यह पहला मौका है जब किसी एजेंसी ने इलाके की झीलों का विस्तृत ब्योरा और अनुमान मुहैया कराया है. रिपोर्ट के सह-लेखक निको म्यूलग के मुताबिक 1850 और 2006 के बीच वार्षिक आधार पर 40 हजार वर्ग मीटर क्षेत्र में पानी बढ़ा है. म्यूलग के मुताबिक 2006 और 2016 के बीच ग्लेशियरों के पिघलने की दर में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई थी.

संस्थान का कहना है कि इस क्षेत्र में ग्लेशियरों के पिघलने के कारण 2016 में बाढ़ का क्षेत्र 620 हेक्टेयर था. परियोजना के प्रमुख डैनियल ओडरमैट के मुताबिक, "हम इतनी बड़ी संख्या में झीलों के साथ-साथ उनकी तेजी से वृद्धि को देखकर चकित थे."

शोधकर्ताओं ने इस शोध के लिए 19वीं सदी के मध्य से इस क्षेत्र के डेटा का इस्तेमाल किया है.

क्या होती हैं ग्लेशियर झीलें

ग्लेशियर बर्फ के बड़े-बड़े टुकड़े होते हैं जो अक्सर नदियों के उद्गम स्थल पर होते हैं. इन्हें हिमनदी या बर्फ की नदी भी कहा जाता है, लेकिन ये बनते हैं जमीन पर. इनका आकार बदलता रहता है और इनकी बर्फ भी पिघलती रहती है. ग्लेशियर बनते समय जमीन को काट कर उसमें गड्ढे बन जाते हैं और पिघलती हुई बर्फ जब इन गड्ढों में गिरती है तो उससे ग्लेशियल झीलें बनती हैं.

धरती के भूभाग का दस प्रतिशत हिस्सा ग्लेशियर, आइस कैप और आइस शीट से बनता है और इनमें से ज्यादातर निर्जन स्थानों पर हैं लेकिन इनके बहुत तेजी से टूटने के और भी बहुत बड़े और व्यापक दुष्प्रभाव हो सकते हैं.

ग्लेशियर खत्म होने का संकट

पिघली हुई के रूप में जो अतिरिक्त साफ पानी है, वह महासागरों में मिलकर नमक के स्तर को डाइल्यूट कर रहा है. समंदर कम खारे हो रहे हैं और इसकी वजह से दुनिया के सबसे महत्त्वपूर्ण महासागरीय वायु प्रवाहों में से एक- गल्फ स्ट्रीम के संतुलन में गड़बड़ी पैदा होती है. इसका नतीजा होता है जलवायु की अत्यधिकताएं, खासकर मेक्सिको की खाड़ी जैसी जगहों पर ट्रॉपिकल तूफान और चक्रवातों की दर बढ़ जाती है. और अटलान्टिक के दोनों तरफ बाढ़ और सूखे की फ्रिक्वेंसी भी. बहुत से लोगों के लिए यह बहुत परेशान करने वाली स्थिति है.

इस पिघलाव के संदर्भ में देखें तो आइस शीट की सिकुड़ने की दर में 1990 के दशकों से 60 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. 1994 और 2017 के बीच 28 खरब बर्फ का नेट नुकसान हुआ है. इस नुकसान का आधा, दुनिया में सबसे बड़ी, अंटार्कटिका की विशाल बर्फीली चादर और दुनिया के पहाड़ी ग्लेशियरों ने भुगता है.

एए/वीके (डीपीए,रॉयटर्स)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें