शुरू हो चुकी है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में हथियारों की दौड़
८ जून २०२१दुनिया में हथियारों की नई दौड़ शुरू हो चुकी है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने हथियारों की दौड़ में बाकी सबको पीछे छोड़ दिया है. ये हथियार सेनाओं को ज्यादा तेज, ज्यादा स्मार्ट और ज्यादा सक्षम बना रहे हैं. लेकिन, बेकाबू होकर ये पूरी दुनिया के लिए खतरनाक भी साबित हो सकती है.
जर्मन विदेश मंत्री हाइको मास ने कहा है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से चलने वाले हथियारों की दौड़ शुरू हो चुकी है. डीडब्ल्यू की नई डॉक्युमेंट्री ‘फ्यूचर वॉर्सः एंड हाउ टु प्रिवेंट देम' में हाइको मास ने कहा, "हम बिल्कुल इसके बीच में हैं. यह सच है जिसका सामना हमें करना ही होगा.”
रेस शुरू हो चुकी है
दुनिया के ताकतवर मुल्कों के बीच आर्टिफिशियल हथियारों की यह होड़ और दौड़ शुरू हो चुकी है. घातक हथियारों के बारे में संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों के समूह के पूर्व अध्यक्ष अमनदीप सिंह गिल कहते हैं यह दौड़ सेनाओं के बीच ही नहीं बल्कि नागरिक जीवन में भी पैठ बना चुकी है. अमेरिका की ‘नैशनल सिक्युरिटी कमीशन ऑन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस' की हालिया रिपोर्ट में भी यह बात काफी उभरकर आई है.
इस रिपोर्ट में युद्ध के नए परिप्रेक्ष्यों पर बात की गई है जहां एक एल्गोरिदम की दूसरे से लड़ाई की संभावना का जिक्र है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि संभावित विरोधी लगातार उन्नत हो रहे हैं इसलिए निवेश बढ़ाना होगा.
चीन की नई पंचवर्षीय योजना में भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को शोध और विकास के केंद्र में जगह दी गई है और उसकी सेना पीपल्स लिबरेशन आर्मी भविष्य के ‘इंटेलिजेंटाइज्ड' युद्ध की तैयारी कर रही है. रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ने तो 2017 में ही कह दिया था कि जो भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में नेतृत्व करेगा, वही दुनिया पर राज करेगा.
लेकिन सिर्फ ताकतवर देश ही इस क्षेत्र में तैयारी कर रहे हों, ऐसा नहीं है.
2020 के दूसरे हिस्से में जब दुनिया महामारी से जूझ रही थी, तब कॉकेशस इलाके में दो देश यद्ध में उलझ गए. अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच नागोर्नो-कराबाख के विवादित इलाके को लेकर हुआ युद्ध भले ही दो पड़ोसियों के बीच पुराना झगड़ा लगता हो, लेकिन जिन लोगों ने ध्यान से देखा, उन्हें परतों के नीचे कई दिलचस्प चीजें भी नजर आईं.
छोटे ड्रोन, बड़ा खतरा
यूरोपियन काउंसिल ऑन फॉरन रिलेशंस में ड्रोन युद्ध के विशेषज्ञ उलरीके फ्रांके कहते हैं, "मेरे विचार से नागोर्नो-कराबाख विवाद का सबसे अहम पहलू था छोटे ड्रोन का इस्तेमाल. ये स्वचालित सिस्टम होते हैं.”
एक बार छोड़ दिए जाने के बाद ये ड्रोन निशाने वाले इलाके के ऊपर उड़ते हैं और स्कैन करते हुए लक्ष्य को खोजते हैं. जब उन्हें लक्ष्य मिल जाता है तो पूरी ताकत से हमला करते हैं. फ्रांके कहते हैं, "इनका इस्तेमाल अलग-अलग तरीकों से पहले भी हुआ है लेकिन इस बार तो उन्होंने खुलकर बताया कि वे कितने फायदेमंद हैं. और यह समझाया कि इस सिस्टम से लड़ना कितना मुश्किल है.”
सेंटर फॉर स्ट्रैटिजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज की एक रिसर्च बताती है कि अजरबैजान को इस्राएली डिजाइन वाले करीब 200 ड्रोन के कारण बड़ा फायदा मिला. अजरबैजान के पास ऐसे चार मॉडल थे जबकि आर्मेनिया के पास सिर्फ एक.
विशेषज्ञ कहते हैं कि यह तो सिर्फ शुरुआत है. बहुत जल्द आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से चलने वाले हथियार सेनाओं के मुख्य हथियार होंगे और वे मौजूदा हथियारों से कहीं ज्यादा घातक होंगे.
रिपोर्टः रिचर्ड वॉलकर