जर्मनी में आ सकती है समय से पहले चुनाव कराने की नौबत
५ नवम्बर २०२४जर्मन वित्त मंत्री क्रिस्टियान लिंडनर द्वारा लिखे गए 18 पन्नों के पेपर ने ऐसा विवाद खड़ा कर दिया है, जिसे लेकर पर्यवेक्षकों का मानना है कि यह मौजूदा सरकार गिरने का कारण बन सकता है.
लिंडनर, मौजूदा गठबंधन में फ्री डेमोक्रेट्स (एफडीपी) पार्टी के अध्यक्ष हैं. अपने प्रस्ताव में उन्होंने कुछ प्रमुख राजनीतिक फैसलों को आंशिक रूप से संशोधित करके आर्थिक बदलाव की वकालत की है. इसके तहत कंपनियों के लिए करों में कटौती, जलवायु से जुड़े नियमों की वापसी और कल्याणकारी योजनाओं से जुड़े लाभों को कम करने की बात कही गई है.
ये प्रस्ताव गठबंधन के बाकी सहयोगियों, सोशल डेमोक्रेट्स (एसपीडी) और ग्रीन्स पार्टी के प्रस्तावों के साथ मेल नहीं खाते हैं. लिंडनर की इस पहल को उकसावे के रूप में देखा जा रहा है और इसकी तीखी आलोचना की जा रही है.
लिंडनर ने इस मामले पर अपना पक्ष रखते हुए यह दावा किया है कि यह पेपर सार्वजनिक किए जाने के लिए तैयार नहीं किया गया था.
यह मामला तब तूल पकड़ रहा है जब 2025 के बजट को पेश किए जाने में महज एक हफ्ते बचे हैं. विपक्ष इस मामले की वजह से जल्द से जल्द चुनाव कराने की मांग कर रहा है.
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जर्मनी में हर चार साल में आम चुनाव होते हैं. सितंबर 2025 में यहां अगले आम चुनाव होने हैं.
हालांकि, सरकार के प्रमुख चांसलर अगर संसद में समर्थन खो देते हैं तो ऐसी राजनीतिक संकट की स्थिति में तुरंत चुनाव कराए जा सकते हैं.
जर्मनी में समय से पहले चुनाव कराए जाने के मामले बहुत कम ही हुए हैं, लेकिन ये लोकतंत्र का अहम हिस्सा है. जर्मन संविधान में इसका जिक्र मिलता है और इसके लिए कई संवैधानिक निकायों, खासकर राज्य के प्रमुख यानी राष्ट्रपति की मंजूरी लेनी पड़ती है.
कब हो सकते हैं समय से पहले चुनाव
जर्मन संविधान के अनुसार, समय से पहले आम चुनाव कराने का फैसला संसद के निचले सदन बुंडस्टाग के सदस्यों या चांसलर द्वारा नहीं लिया जा सकता है. ऐसा सिर्फ दो मामलों में किया जा सकता है.
पहले मामले के तहत, अगर 733 सीटों वाले बुंडेस्टाग (संसद का निचला सदन) में कोई उम्मीदवार पूर्ण बहुमत के लिए 367 वोट नहीं हासिल कर पाता है तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति संसद को भंग कर सकते हैं. हालांकि जर्मनी के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ है.
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दूसरे मामले के तहत, अगर चांसलर बुंडेस्टाग में संसदीय समर्थन की पुष्टि के लिए विश्वास मत की मांग करता है और बहुमत हासिल नहीं कर पाता है तो वह 21 दिनों के भीतर राष्ट्रपति से लोकसभा भंग करने की मांग कर सकता है.
संसद भंग होने के 60 दिन के भीतर नए चुनाव कराने जरूरी होते हैं. नए चुनावों का आयोजन आम चुनावों की तरह ही किया जाता है. चुनाव कराने की जिम्मेदारी रिटर्निंग अधिकारी और संघीय आंतरिक मंत्रालय की होती है.
जर्मनी में अब तक तीन बार 1972, 1983 और 2005 में समय से पहले आम चुनाव कराए गए हैं.
विली ब्रांट
विली ब्रांट, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसपीडी) से सेंटर-लेफ्ट के पहले चांसलर थे. उन्होंने 1969 में फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी (एफडीपी) के साथ गठबंधन में सरकार बनाई थी. उनकी "ओस्टपोलिटिक" (पूर्व की ओर वाली राजनीति) वाली नीति ने 1972 में विश्वास मत हासिल किया. ब्रांट ने शीत युद्ध के दौरान समाजवादी पूर्वी यूरोपीय ब्लॉक के साथ संबंध सुधारने के लिए सौहार्द की नीति को आगे बढ़ाया था. पश्चिमी जर्मनी में इसे लेकर काफी विवाद हुआ था. जिसकी वजह से सरकार के भीतर रोष देखने को मिला और एसपीडी और एफडीपी के कई सांसदों ने इस्तीफा दे दिया. इस वजह से सरकार अल्पमत में आ गई और ब्रांट सरकार की सीटें घटकर विपक्षी, क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) और क्षेत्रीय बवेरियन क्रिश्चियन सोशलिस्ट यूनियन (सीएसयू) के बराबर 248 पर पहुंच गई.
गतिरोध की वजह से सरकार चला पाना मुश्किल हो गया, इसलिए ब्रांट ने एक समाधान निकाला. 24 जून 1972 को उन्होंने कहा कि "नागरिकों" को "यह सुनिश्चित करने का अधिकार है कि विधायिका अपना काम करती रहे". उन्होंने यह भी कहा कि ऐसी उम्मीद है कि "विपक्ष मौलिक रूप से सहयोग करने से इनकार कर देगा. इसलिए, मैं घोषणा करता हूं कि जल्द से जल्द नए चुनाव कराए जाएं."
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ब्रांट ने इस उम्मीद में सदन की बैठक बुलाई ताकि वे विश्वास मत न हासिल कर पाएं और नए चुनावों में जीत हासिल कर दोबारा चांसलर बन जाएं. इस कदम की काफी आलोचना हुई. संविधान के जानकारों ने जानबूझकर विश्वास मत खोने की उनकी इस रणनीति को संविधान की भावना और कानून के खिलाफ माना.
अपनी रणनीति के हिसाब से 20 सितंबर 1972 को उन्होंने विश्वास मत हासिल करने के लिए सदन की बैठक बुलाई और योजना के अनुरूप वो हार गए. लोकसभा स्थगित होने के साथ ही नए चुनाव के दरवाजे खुल गए. 19 नवंबर 1972 को हुए अगले चुनाव के बाद ब्रांट दोबारा चांसलर चुने गए. एसपीडी को 45.8 प्रतिशत वोट मिले जो उसका अब तक का सबसे बढ़िया प्रदर्शन है. वहीं बुंडस्टाग में 91.1 फीसदी मतदान हुए, जो अब तक का सर्वाधिक है.
हेल्मुट कोल
सीडीयू पार्टी के हेल्मुट कोल, 1983 में हुए दूसरे शुरुआती चुनावों के जिम्मेदार थे. कोल ने अक्टूबर 1982 में तत्कालीन चांसलर हेल्मुट श्मिट (एसपीडी) के बाद सत्ता संभाली थी. श्मिट सरकार के कई सांसदों ने आर्थिक और सुरक्षा नीतियों पर मतभेद के चलते समर्थन वापस ले लिया था.
कोल की सीडीयू/सीएसयू और एफडीपी गठबंधन वाली सरकार अविश्वास प्रस्ताव के जरिए सत्ता में आयी थी, न कि आम चुनाव जीतकर. इसलिए कोल आम चुनाव जीतकर सत्ता की दावेदारी और पुख्ता करना चाहते थे. विश्वास मत हासिल करने के लिए उन्होंने भी 17 दिसंबर 1982 को सदन बुलाया और जानबूझकर हार गए और लोकसभा भंग हो गई. कोल ने उस दौरान कहा, "मैंने सरकार को स्थिर करने और बुंडस्टाग में स्पष्ट बहुमत हासिल करने के लिए नए चुनावों का रास्ता खोल दिया है."
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बुंडस्टाग के कुछ सदस्यों ने इस फैसले को स्वीकार नहीं किया और जर्मनी के संवैधानिक न्यायालय में शिकायत दर्ज कराई. 41 दिनों तक चली सुनवाई के बाद, कार्ल्सरूहे के जजों ने कोल के पक्ष में फैसला सुनाते हुए नए चुनावों की मंजूरी दे दी. हालांकि, अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि विश्वास मत की इजाजत केवल "वास्तविक" संकट के दौरान ही दी जा सकती है. 6 मार्च, 1983 को हुए नए चुनावों में कोल स्पष्ट बहुमत से चुनाव जीते और चांसलर बने.
गेरहार्ड श्रोयडर
2005 में जर्मनी में तीसरी बार समय से पहले चुनाव कराए जाने की पहल एसपीडी पार्टी के गेरहार्ड श्रोयडर ने की थी. उन दिनों वो ग्रीन पार्टी के साथ गठबंधन में सरकार का नेतृत्व कर रहे थे. एसपीडी उन दिनों संघर्ष कर रही थी क्योंकि पार्टी राज्यों में लगातार चुनाव हार रही थी और बुंडस्टाग में समर्थन खो रही थी. निचले सदन में समर्थन खोने की वजह बना श्रोयडर का 2010 के लिए तैयार किया गया विवादास्पद एजेंडा, जिसने सामाजिक व्यवस्था और श्रम बाजार में भारी बदलाव किए. श्रोयडर ने विश्वास मत हासिल करने के लिए बैठक बुलाई और 1 जुलाई 2005 को जानबूझकर हार गए जिससे नए चुनावों का रास्ता खुला.
श्रोयडर ने कहा, मुझे पूरा यकीन है कि जर्मनी के लोग चाहते हैं कि मैं इसी रास्ते पर आगे बढूं. लेकिन मैं केवल नए चुनावों के जरिए ही जरूरी बहुमत हासिल कर सकता हूं.
लेकिन नतीजे उनकी उम्मीद के मुताबिक नहीं रहे. 18 सितंबर 2005 को हुए प्रारंभिक चुनावों में अंगेला मैर्केल की सीडीयू/सीएसयू ने मामूली बहुमत के साथ एसपीडी के समर्थन से सरकार बनाई और इसी के साथ मैर्केल के 16 सालों के लंबे कार्यकाल की शुरुआत हुई.