मलबे में तब्दील हो चुके अपने 'घर' लौट रहे गजा के लोग
रविवार सुबह शुरू हुए संघर्षविराम के बाद, गजा में युद्ध के दौरान विस्थापित हुए हजारों लोग धीरे धीरे अपने घरों को लौट रहे हैं. ज्यादातर लोगों के घर अब मलबे में तब्दील हो चुके हैं, बचा है तो सिर्फ घर के होने का अहसास.
संघर्षविराम के एलान से पहले घर लौटने की तैयारी
माजीदा अबु जराद ने घर लौटने की तैयारी संघर्षविराम के एलान से पहले ही कर दी थी. उनका घर गजा के बेत हनून में है. युद्ध शुरू हुआ तो जान बचाने के लिए अपने परिवार के साथ मुवासी के एक अस्थायी कैंप में आ गई थीं. माजीदा को सात बार अपने परिवार के साथ एक जगह से दूसरी जगह भागना पड़ा. अब वह अपने घर लौट रही हैं. उन्हें नहीं पता कि वहां क्या बचा है लेकिन जो भी बचा है, वही उनके लिए उनका घर है.
युद्ध ने 19 लाख लोगों को किया विस्थापित
सात अक्टूबर 2023 को हमास और इस्राएल के बीच शुरू हुए युद्ध के बाद गजा के 19 लाख लोग विस्थापित हुए थे. ज्यादातर विस्थापित लोग राहत शिविरों और अस्थायी टेंटों में रहने को मजबूर थे. संघर्षविराम की घोषणा के बाद अब वे इन कैंपों से अपने घर की ओर लौट रहे हैं.
जो विस्थापित हुए क्या उनका घर बचा है?
संघर्षविराम के बाद आईं तस्वीरें दिखा रही हैं कि गजा के अलग अलग इलाकों में लोग अपने शहर लौट रहे हैं. लेकिन वे शहर, जिसे वे घर कहते थे अब मलबे में तब्दील हो चुके हैं. फिर भी लोगों में अपने घर लौटने का उत्साह नजर आ रहा है. किसी ने गधा गाड़ी पर अपने सामान लादे तो जिन्हें गाड़ी नहीं मिली वे पैदल ही अपने घरों की ओर निकल पड़े.
मलबे में शायद अपने मिल जाएं
मोहम्मद महदी का अल-जायतून में तीन मंजिला मकान था. वह भी युद्ध शुरू होने के बाद अपने परिवार के साथ कैंप में जीवन गुजार रहे थे. महदी कहते हैं कि लोग मलबों के बीच अपनों को खोजने लौट रहे हैं. तबाह हो चुके शहरों के बीच से होते हुए बीते रविवार को वह भी अपने घर लौटे.
आते ही मलबों को साफ कर घर जोड़ने लगे लोग
15 महीने के इंतजार के बाद गजा के कैंपों में रह रहे लोगों के चेहरों पर घर लौटने की खुशी साफ नजर आ रही है. लोग अपने घरों और सड़कों से मलबे को साफ कर रहे हैं. शायद इस उम्मीद में कि वे वहां दोबारा अपना घर बना पाएंगे.
लाशों के बीच से सफर तय कर रहे लोग
घर तक पहुंचने के रास्ते में ना सिर्फ मलबे बल्कि लावारिस पड़ी लाशों से भी लोगों का सामना हो रहा है. 48 साल की उम सबर बताती हैं कि उनके परिवार को रास्ते में कई लाशें दिखीं. उनमें से कई तो शायद हफ्तों से वहीं पड़ी थीं. बेत लाहिया में मौजूद उनका घर भी मलबे में तब्दील हो चुका है. लेकिन वहां आते ही, उनका परिवार मलबे को साफ करने में जुट गया. इस उम्मीद में कि कहीं मलबे में उनको कोई अपना ना दबा हो.
राफा में चारों तरफ सिर्फ तबाही के बचे हुए अवशेष
राफा के निवासी मोहम्मद अबु ताहा कहते हैं कि जब वह घर लौटे तो उन्हें वहां का मंजर किसी डरावनी हॉलीवुड फिल्म जैसा लगा. उन्हें अपने आस पास के मलबे और सड़कों पर सिर्फ तबाह हो चुके घर, लाशें, शरीर के अंग और खोपड़ियां ही नजर आ रही थीं. लेकिन अबु जानना चाहते हैं कि उनका घर कैसे तबाह हुआ.
अनिश्चितताओं के बीच हो रही घर वापसी
गजा के वे लोग जो अपने घर लौट आए हैं या रास्ते में हैं उन्हें नहीं पता कि संघर्षविराम कब तक टिकेगा, वे रहेंगे कहां और उनकी जिंदगियां वापस पटरी पर कब आएंगी. मलबे के बीच लोग अस्थायी टेंट लगा रहे हैं ताकि रहने की जगह बने. देखा जाए तो विस्थापित हुए लोग जो टेंटों में रह रहे थे, दोबारा टेंटों में ही रहने को मजबूर हैं. फर्क बस इतना है कि इस बार टेंट वे अपने घरों के मलबे के पास लगा रहे हैं.
घर बनाने में लगेंगे 350 साल
संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि गजा में जो घर तबाह हुए हैं, उन सभी घरों को वापस बनाने में करीब 350 साल लग सकते हैं, अगर गजा इसी तरह इस्राएल के प्रतिबंधों के बीच रहा तो. सैटेलाइट डेटा की मदद से संयुक्त राष्ट्र ने बताया कि गजा की 69 फीसदी इमारतें तबाह हो चुकी हैं. इसमें 2,45,000 घर भी शामिल हैं. रास्ते में जो मलबा पड़ा है उसे हटाने के लिए अगले 15 साल तक करीब 100 ट्रकों को हर दिन काम करना पड़ेगा.