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समाज

भारत में हर पांचवें बच्चे को पौष्टिक खाना नहीं मिलता

११ दिसम्बर २०१९

दुनिया के बच्चों को कुपोषण से बचाने की मुहिम नाकाम हो रही है. बुधवार को जारी संयुक्त राष्ट्र की कुपोषण पर रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब 21 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. इन्हें भरपेट भोजन तक नहीं मिल रहा है.

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Indien Kinderarmut Armut Ernährung
तस्वीर: picture-alliance/dpa

इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत समेत दक्षिण एशिया के करीब 50 करोड़ बच्चे कुपोषण की चपेट में हैं.  सभी को भूखमरी से निकालने के 2030 के लक्ष्य को हासिल करने के लिए जरूरी है लाखों लोगों को हर महीने पोषण से भरा खाना दिया जाए. बुधवार को जारी यूएन की इस रिपोर्ट ने चिंता बढ़ाने वाले आंकड़े दिये हैं, जिसके मुताबिक "विकासशील देश होने के बावजूद भी लाखों, करोड़ों लोग गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं, उनकी आय, अर्थव्यवस्था के अनुरूप नहीं बढ़ी है, इन्हीं असमानताओं की वजह से बच्चों को पोषक भोजन नहीं मिल रहा है."

यूएन के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ), यूनिसेफ, विश्‍व खाद्य कार्यक्रम (डब्‍ल्‍यूएफपी), और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मिलकर यह रिपोर्ट तैयार की है. इस रिपोर्ट में सरकारों की भूमिका का भी जिक्र है. दुनिया के दक्षिण एशिया के बच्चों को कुपोषण से बचाने के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए सरकारों से गरीबी को खत्म करने के साथ ही पोषण, शिक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान देने को कहा गया है.

Indien Mädchen leiden an Hunger Symbolbild
तस्वीर: picture-alliance/dpa

संयुक्त राष्ट्र के एफएओ की क्षेत्रीय प्रतिनिधि कुंधावी कदिरेसन ने कहा "हम सही रास्ते पर नहीं हैं, कुपोषण को कम करने के काम में पिछले कुछ सालों में भारी कमी आयी है." रिपोर्ट के मुताबिक, एशिया प्रशांत क्षेत्र में रहने वाला हर पांचवा व्यक्ति मध्यम से गंभीर स्तर के खाद्य असुरक्षा से जूझ रहा है. इसका मतलब है कि ये लोग या तो साल के कुछ हिस्से में भूखे रह रहे हैं, या ज्यादा गंभीर मामलों में ये लोग कई कई दिन भूखे सो रहे हैं. इस क्षेत्र में करीब 23.5 करोड़ लोग कुपोषण के शिकार हैं. बच्चे सबसे ज्यादा इससे प्रभावित हैं. 

एशिया में जहां लोगों को पर्याप्त मात्रा में खाना नहीं मिल रही है, वहीं प्रशांत सागर से लगे देशों और इलाकों में लोग बिना कैलोरी वाला खूब सारा खाना खा रहे हैं. टोंगा देश के कार्यकारी मुख्य सचिव लुईसा मनुओफिटोआ कहते हैं "इन इलाकों में मोटापा बहुत तेजी से  बढ़ रहा है, क्योंकि पोषण से भरा खाना महंगा है, और लोगों का ध्यान सिर्फ बिना कैलोरी वाली दावतों पर होता है, यही हमें बदलने की जरूरत है."

Indien Slumbewohner in Delhi
तस्वीर: DW/R. Chakraborty

भारत की योजनाओं को धक्का

भारत में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत 2012 में नवजात बच्चों और मांओं के लिए कुछ योजनाएं बनाई गई थीं. जिसका लक्ष्य 2017 तक बच्चों को कुपोषण से निकालना था. लेकिन यह योजना बहुत कारगर नहीं रही.  इसके बाद राजस्थान के झुंझनू में 8 मार्च 2018 को महिला दिवस के मौके पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय पोषण मिशन की शुरुआत की. इसमें 10 करोड़ लोगों तक इसका लाभ पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया. इस योजना के तहत आंगनबाड़ी केन्द्रों में पोष्टिक खाना बनाया जाता है. यह खाना उस इलाके के कुपोषण के शिकार बच्चों और महिलाओंं को खिलाया जाता है. इस खाने का खर्चा सरकार वहन करती है. इसमें 45 खाने पीने की वस्तुएं शामिल हैं. 

सरकार खुद मानती है कि इससे पहले भी कई योजनाओं को लागू किया गया, लेकिन भारत में कुपोषण को मिटाया नहीं जा सका. राष्ट्रीय पोषण मिशन का लक्ष्य 2020 तक बच्चों में कुपोषण को दूर करना था. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट से यह अंदाजा लग रहा है कि लक्ष्य अभी दूर है और अगर इसी रफ्तार से सरकारें चलती रहीं तो 2020 तो क्या 2030 तक भी इसे हासिल नहीं किया जा सकेगा.

एसबी/एनआर(एपी)

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