जर्मनी के स्कूलों में शिक्षकों के खिलाफ बढ़ती हिंसा
४ सितम्बर २०२३जर्मनी में स्कूलों की छुट्टियों का वक्त खत्म हो चुका है. लेकिन स्कूलों में छात्र-छात्राओं की वापसी का एक मतलब है हिंसा की वापसी. देश में टीचरों की दूसरी सबसे बड़ी यूनियन वीबीई ने इससे जुड़ा एक सर्वे किया है जिसके नतीजे डराते हैं. वीबीई के प्रमुख गेरहार्ड ब्रांड कहते हैं, इनकी संख्या खतरे की घंटी है, स्थिति बहुत ही डरावनी है.
इस सर्वे में हिस्सा लेने वालों में से दो-तिहाई टीचरों ने कहा कि पिछले पांच सालों में उन्होंने अपने स्कूल में शिक्षकों के साथ हिंसक वारदातें देखी हैं. इसमें अध्यापकों की बेइज्जती करने से लेकर शारीरिक हिंसा भी शामिल है. साल 2022 में लोअर सैक्सनी राज्य में पुलिस ने टीचरों के खिलाफ हिंसा के मामलों में 2021 के मुकाबले 30 फीसदी बढ़त दर्ज की. वहीं देश के पूर्व में सैक्सनी-आन्हाल्ट में टीचरों पर हमले के 104 मामले सामने आए जिनमें 43 शारीरिक हिंसा के केस थे.
हिंसात्मक माहौल
डीडब्ल्यू से बातचीत में एक टीचर ने हिंसा की एक घटना का जिक्र करते हुए बताया कि कैसे क्लासरूम में छोटी बातें बड़ी बन जाती हैं. टीचर ने अपनी क्लास में देखा कि एक बच्चा दूसरे को कागज के चाकू से मारने के धमकी दे रहा है. जब टीचर ने स्थिति को संभालना चाहा तो छात्र शांत होने के बजाए टीचर को ही धमकाने लगा. "वह इतना गुस्से में था कि बस किसी को चाकू से मारना ही चाहता था. वह इतना छोटा नहीं था, स्थिति वाकई गंभीर थी."
इस तरह की घटनाएंजर्मनी जर्मनी के स्कूलों रोज नहीं होती लेकिन ब्रांड कहते हैं कि यह एक बेहद गंभीर स्थिति का छोटा सा नमूना है. हिंसा की वास्तविक घटनाएं रिपोर्ट हो रही घटनाओं से कहीं ज्यादा हैं.
समस्या का एक और पहलू यह भी है कि जर्मनी में जितने टीचरों की जरूरत है,संख्या उससे कहीं कम है. जर्मनी के 16 राज्यों के शिक्षा विभागों की प्रतिनिधि- कॉंफ्रेस ऑफ द मिनिस्टर्स ऑफ एजुकेशन ऐंड कल्चरल अफेयर्स के मुताबिक साल 2025 तक जर्मनी में 25000 की कमी होगी. एक तरफ टीचर कम होंगे तो दूसरी तरफ हिंसा के इस माहौल को कम करने के लिए उन्हें ज्यादा वक्त देना होगा ताकि स्कूलों का माहौल बेहतर हो सके.
कोविड 19 का असर
साल 2020 से 2023 के बीच कोविड 19 के दौरान वीबीई को भयंकर दिक्कतें दिखाई दीं. उस वक्त, बच्चे और उनके माता-पिता बहुत दबाव में थे. एक-दूसरे से मिलना-जुलना मना था, खेलों की जगहें बंद थी, छात्र परेशान थे जिसकी वजह से स्कूली जिंदगी पर गहरा असर हुआ. छात्रों का ज्यादा वक्त कंप्यूटर के सामने गुजरता था. उनका दिन किसी भी तरह के नियमित ढांचे से बाहर गुजरता था. इन बातों की वजह से ही छात्रों के नजरिए और व्यवहार में फर्क आया है. अब माहौल में उग्रता ज्यादा है.
इसका नजारा सिर्फ छात्रों में नहीं बल्कि माता-पिता के व्यवहार में भी दिखता है. जर्मनी के थुरिंजिया राज्य में टीचरों पर मौखिक हिंसा के 56 फीसदी मामलों में माता-पिता शामिल थे. यही नहीं सोशल मीडिया पर टीचरों की मानहानि करने वाले 70 फीसदी केस में भी माता-पिता ही आगे रहे. थुरिंजिया में कोविड नकारने वालों की संख्या काफी ज्यादा थी. जिन टीचरों ने कोविड से जुड़ी पाबंदियों को लागू किया, उन पर सबसे ज्यादा हमले हुए. उन पर तानाशाही रवैये का आरोप लगा. एक गुस्साए अभिभावक ने तो एक टीचर को बेदर्दी से पीटा.