छपी हुईं किताबों को पछाड़ नहीं पाई हैं ई-बुक
२४ अप्रैल २०२४दिल्ली में रहने वाले 34 साल के संकेत शर्मा बताते हैं कि वह महीने की चार-पांच किताबें तो खरीद ही लेते हैं. ए़डवर्टाइजिंग प्रोफेशनल शर्मा ने डीडब्ल्यू से कहा कि कोविड महामारी के दौरान उन्होंने काफी किताबें खरीदीं और महामारी के बाद भी इस संख्या में कमी नहीं आई है. 34 साल के संकेत उस पीढ़ी के पाठक हैं जिन्होंने किंडल पर ई-बुक पढ़ना शुरू किया. लेकिनई-बुकऔर उसके बाद ऑडियो बुक्स आने के बावजूद किताबों का खरीदना कम से कम उनके लिए तो कम नहीं हुआ.
स्टैटिस्टा मार्केट इनसाइट के आंकड़े बताते हैं कि इलेक्ट्रॉनिक किताबें यानी ई-बुक आज भी छपी हुई किताबों से जीत नहीं पाई हैं. अधिकतर देशों में आज भी छपी हुई किताबों की बिक्री ई-बुक से ज्यादा है. उदाहरण के लिए अमेरिका में पिछले साल लगभग 20 फीसदी आबादी ने कम से कम एक ई-बुक खरीदी. हालांकि छपी हुई किताब खरीदने वालों की संख्या 30 फीसदी रही.
इलेक्ट्रॉनिक किताबों की अवधारणा 1970 के दशक से ही मौजूद रही है, लेकिन 1990 और 2000 के दशक में इनकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ी. जो ई-बुक रीडर सबसे पहले बाजार में आए थे, उनमें 1992 में आया सोनी डेटा डिस्कमैन शामिल है. हालांकि इसे बहुत ज्यादा लोकप्रियता नहीं मिली. ई-बुक की लोकप्रियता का नया दौर 2007 में शुरू हुआ जब एमेजॉन ने किंडल बाजार में उतारा.
छपी हुईं किताबें ज्यादा बिकीं
चीन ही एक ऐसा देश है जहां ई-बुक, छपी हुई किताबों से ज्यादा बिक रही हैं. स्टैटिस्टा के मुताबिक वहां पिछले साल 24 फीसदी लोगों ने छपी हुई किताब खरीदी जबकि 27 फीसदी लोगों ने ई-बुक खरीदी.
अपनी रिपोर्ट में स्टैटिस्टा ने लिखा है, "पूरी दुनिया में किताबों के बाजार के विश्लेषण के आधार पर कहा जा सकता है कि भले ही ई-बुक्स की लोकप्रियता बढ़ी है लेकिन वे छपी हुई किताबों को खत्म नहीं कर पाएंगी बल्कि उनके पूरक के रूप में मौजूद रहेंगी, जिससे प्रकाशन उद्योग को लाभ पहुंचेगा.”
छपी हुई किताबें खरीदने के मामले में ब्रिटेन के लोग बाकी दुनिया में आगे हैं. वहां लगभग 50 फीसदी आबादी ने पिछले साल कोई ना कोई किताब खरीदी है. इसके मुकाबले ई-बुक खरीदने वालों की संख्या 15 फीसदी रही. स्पेन और जापान में भी 40 फीसदी से ज्यादा लोगों ने छपी हुई किताब खरीदी जबकि ई-बुक खरीदने वालों की संख्या 20 फीसदी से कम रही.
भारत में किताबों का हाल
भारत में छपी हुई किताबें खरीदने वालों की संख्या 25 फीसदी से कुछ ही ज्यादा रही जबकि 10 फीसदी से कम लोगों ने ई-बुक खरीदी. जानकार कहते हैं कि भारत में पढ़ने की आदत दूसरे समाजों के मुकाबले कम है इसलिए बिक्री बहुत ज्यादा नहीं है.
जाने-माने लेखक सुंधाशु गुप्त कहते हैं, "लोग छपी हुई किताबें खरीदते हैं या ई बुक्स, इससे पहले ये सवाल भी जरूरी है कि क्या लोग किताबें खरीदते हैं, और किस समाज में, किस उम्र के लोग?" डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा कि भारत में आज भी शिक्षित लोगों की संख्या बहुत कम है, बावजूद इसके किताबें तो बिकती ही हैं. प्रकाशकों की प्रगति और पुस्तक मेलों में आने वाली भीड़ उनकी इस बात की गवाह है.
गुप्त का कहना है कि जब हम पूरी तरह से शिक्षित समाज की बात करेंगे, जहां लोग (और खासकर युवा) ई बुक्स का सही अर्थ और उपयोग जानते हैं, वे निश्चित रूप से ई बुक्स के प्रति अधिक आकर्षित होंगे. उन्होंने यह भी कहा, "भारतीय समाज में जहां किताबों के प्रति ही आकर्षण खत्म हो रहा है, वहां ई बुक्स यदि कोई खरीद भी रहा है तो वह युवा पीढ़ी ही है. अधेड़ या वृद्ध आज भी छपी हुई किताब के प्रति ही झुकाव रखते हैं. ई बुक्स और छपी हुई किताबों के बीच की दूरी कम करने का कहीं भी कोई जरिया दिखाई नहीं देता."
पढ़ने का वैज्ञानिक आधार
2023 में एल. एल्टामुरा, सी. वर्गास और एल सैल्मेरोन ने एक शोध पत्र प्रकाशित किया था जिसमें उन्होंने कहा था कि छपी हुई किताब से किसी बात को समझने की दर ई-बुक के मुकाबले छह से आठ फीसदी ज्यादा होती है. हालांकि बहुत से लोगों ने कहा कि वे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस पर ज्यादा तेजी से पढ़ पाते हैं लेकिन उन्होंने यह भी माना कि इस तरह पढ़ते हुए सोशल मीडिया, विज्ञापन, नोटिफिकेशन जैसी चीजों के कारण ध्यान ज्यादा बंटता है.
इस अध्ययन में कहा गया कि छपी हुई किताब को पढ़ना डूब जाने वाला अनुभव होता है जिसके कारण पाठकों को सामग्री ज्यादा समझ आती है और वे ज्यादा प्रभावशाली रूप से उसे याद कर पाते हैं.
किताब उठाकर पढ़ने के फायदों पर पहले भी कई अध्ययन हो चुके हैं. एक शोध के मुताबिक किताब को पकड़ने, उसे पढ़ते वक्त बैठने और पढ़ते हुए सिर व आंखों की गति के रूप में शरीर और मस्तिष्क के लिए पढ़ना एक अलग अनुभव होता है.
2016 में प्रकाशित ‘द इवॉल्यूशन ऑफ रीडिंग' नाम के अपने शोधपत्र में ए. मैंगन और ए. वान डेर वील लिखते हैं, "छपी हुईं किताबें और कागज के कारण पठन सामग्री को एक तरह का ठोस भौतिक स्वरूप मिलता है. ई-बुक को अलग तरह से छुआ जाता है और उन्हें पकड़ने और उनके पन्ने पलटने का अनुभव अलग होता है. टच-स्क्रीन का असर कागज के असर से अलग होता है. न्यूरोसाइंस और मनोवैज्ञानिक शोध कहते हैं कि किसी भी चीज को छूने का अनुभव मस्तिष्क में उसकी छवि बनाने पर असर डालता है."