इमारतों को मौसम की मार से कैसे बचाएगा बैक्टीरिया?
१८ जून २०२१चूना पत्थर दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित इमारतों में से कुछेक के लिए कच्चा माल प्रदान करता है. इन इमारतों में मिस्र के पिरामिड से लेकर नोत्रे डाम और पार्थेनन जैसी इमारतें तक शामिल हैं.
ये महत्वपूर्ण इमारतें समय की कसौटी पर भले ही खरी उतरी हों लेकिन जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण की वजह से आज खुद उनका अस्तित्व खतरे में है. कई शोध से पता चलता है कि औद्योगिक क्रांति के बाद से चूना पत्थर से बनी इमारतों के क्षय की दर में काफी तेजी आई है.
हालांकि वैज्ञानिकों ने इस अंधेरे में भी एक समाधान खोज निकाला है. हाल के शोध से पता चला है कि दुनिया की ऐतिहासिक चूना पत्थर की इमारतों को पर्यावरणीय क्षरण से बचाने के लिए बैक्टीरिया काफी मददगार बन सकते हैं.
ऐतिहासिक इमारतों की सुरक्षा
मुख्य रूप से कैल्शियम कार्बोनेट से बना सॉफ्ट स्टोन, शहरी वातावरण में वायु प्रदूषण के अम्लीय रूपों के प्रति संवेदनशील होता है. उदाहरण के लिए, जब हम जीवाश्म ईंधन जलाते हैं तो नाइट्रस ऑक्साइड और सल्फर डाय ऑक्साइड उत्पन्न होते हैं. बारिश के पानी के साथ मिलकर ये गैसें पत्थर पर काली पपड़ी का निर्माण कर सकती हैं और आगे चलकर पत्थर को नष्ट कर सकती हैं.
जलवायु परिवर्तन भी एक खतरा है. वैज्ञानिकों को डर है कि यूरोप में बेहद गर्म होती जा रही ग्रीष्म ऋतु चूना पत्थर के क्षय को तेज कर रही है. बढ़ते तापमान से वर्षा जल का अधिक वाष्पीकरण हो सकता है, जो नमक के क्रिस्टल को पीछे छोड़ देता है, क्रिस्टल अंदर जमा हो जाते हैं और फिर छिद्रयुक्त पत्थर को तोड़ देते हैं.
ऐसा देखा गया है कि बैक्टीरियल कार्बोनेटोजेनेसिस नामक प्रक्रिया क्षतिग्रस्त चूना पत्थर की सफलतापूर्वक रक्षा करने में सक्षम है और इससे इमारत और पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव भी बहुत कम पड़ता है.
बैक्टीरियल कल्चर - जैसे बैसिलस सेरियस, बैसिलस सबटिलिस और मिक्सोकोकस जैंथस, प्रयोगशाला में उगाए जाते हैं और इन्हें या तो पत्थर में इंजेक्ट करके या फिर स्पैटुला के साथ इमारत की खराब सतह तक पहुंचाया जाता है. उसके बाद बैक्टीरिया के पोषण के लिए कुछ पोषक तत्व मिलाए जाते हैं. इस प्रक्रिया को तब तक दोहराया जाता है, जब तक कि बैक्टीरिया चूना पत्थर को ठीक करने के लिए पर्याप्त कैल्शियम कार्बोनेट का उत्पादन नहीं कर लेते.
हालांकि यह उपचार अपेक्षाकृत काफी नया है लेकिन पृथ्वी का चूना पत्थर आंशिक रूप से कैल्शियम कार्बोनेट उत्पादक बैक्टीरिया के माध्यम से ही बना है और यह प्रक्रिया महासागरों, मिट्टी और झीलों में स्वाभाविक रूप से होती रहती है.
इस तकनीक की शुरुआत 1990 के दशक में फ्रांस के संस्कृति मंत्रालय ने की थी और तब से इसका उपयोग फ्रांस, पुर्तगाल और स्पेन के स्मारकों और इमारतों के संरक्षण के लिए किया जा रहा है. होंडुरास में कोपन के माया सभ्यता स्थल पर भी इस तकनीक के प्रारंभिक परीक्षण किए गए हैं.
स्पेन के ग्रेनाडा विश्वविद्यालय में खनिज विज्ञान और पेट्रोलॉजी विभाग के एक वैज्ञानिक प्रोफेसर कार्लोस रोड्रिग्ज नवारो क्षतिग्रस्त पत्थर की मरम्मत और सुरक्षा के लिए प्राकृतिक रूप चूना पत्थर के मुख्य घटक कैल्शियम कार्बोनेट का उत्पादन करने वाले बैक्टीरिया पर अध्ययन करने वाले एक शोध समूह का नेतृत्व करते हैं. नवारो कहते हैं कि बैक्टीरिया द्वारा कैल्शियम कार्बोनेट का उत्पादन करना यह सुनिश्चित करता है कि चूना पत्थर में पहले से मौजूद पदार्थ के साथ उसकी संगति स्वाभाविक है, "ऐसा अन्य सामग्रियों के मामले में नहीं है, जो चूना पत्थर में मौजूद कैल्शियम कार्बोनेट से बहुत अलग हैं."
पारंपरिक तरीकों की तुलना में कम जहरीला
फ्रांस के संस्कृति मंत्रालय के ऐतिहासिक स्मारक अनुसंधान प्रयोगशाला के सेवानिवृत्त वैज्ञानिक जीन-फ्रांस्वा लुबिएर पश्चिमी फ्रांस के थौअर्स शहर में 1990 के दशक में एक चर्च पर जीवाणु पद्धति का उपयोग करने वाली पहली टीम का हिस्सा थे. वे कहते हैं, "एक प्राकृतिक प्रक्रिया होने के कारण यह पत्थर के लिए ज्यादा सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल भी है. सिंथेटिक तकनीक पत्थर को भी नुकसान पहुंचाती हैं और पर्यावरण में भी जहरीले तत्व छोड़ती हैं."
पॉलीमर्स के इस्तेमाल वाले कुछ पारंपरिक रासायनिक उपचार से वाष्पशील जैविक पदार्थ जैसे जहरीले रसायन उत्पन्न होते हैं जो कि पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य दोनों के लिए ही नुकसानदेह होते हैं.
नवारो के अनुसार सिंथेटिक उत्पादों की वजह से पत्थर के ऊपर एक जलरोधी परत बन जाती है, जिसकी वजह से पानी अंदर नहीं जा पाता और पत्थर की सतह पर नमक का जमाव बढ़ जाता है. चूंकि जीवाणु प्रक्रिया स्वाभाविक रूप से मौजूद कैल्शियम कार्बोनेट में जुड़ जाती है, इसलिए वह उसे 'सांस लेने' की अनुमति देती है.
नवारो का कहना है कि खनिजों का उत्पादन करने वाले बैक्टीरिया यानी जैवखनिजीकरण या बायोमिनरलाइजेशन के और भी कई लाभ हैं. यह पत्थर के रंग को परिवर्तित नहीं करता है और न ही इसे गीला बनाता है या फिर बहुत ज्यादा चमकदार बनाता है, जबकि सिंथेटिक उपचार में इस तरह की दिक्कतें सामान्य रूप से आती हैं.
लुबिएर का मानना है कि यह तकनीक नोत्रे डाम के चूना पत्थर ब्लॉकों की मरम्मत के लिए भी उपयुक्त होगी, जिन्हें अप्रैल 2019 में लगी भीषण आग की गर्मी से नुकसान हुआ था.
सस्ते सिंथेटिक तरीकों से प्रतिस्पर्धा
ऐतिहासिक स्मारक अनुसंधान प्रयोगशाला में एक सूक्ष्मजीव विज्ञानी फैसल बौस्टा कहते हैं कि पेरिस के कैथीड्रल पर फिलहाल इस तकनीक का उपयोग करने की संभावना नहीं है, जिसे अभी भी बहाल किया जा रहा है. हालांकि यह तकनीक पूरे फ्रांस में, खासतौर पर निजी क्षेत्र में उपयोग में लाई जाती है, फिर भी सिंथेटिक तरीकों से प्रतिस्पर्धा के लिए इसे जूझना पड़ा है.
प्रक्रिया में उपयोग किए जाने वाली जैविक सामग्री बनाने वाली और ऐतिहासिक इमारतों की प्रयोगशाला से जुड़ी एक फ्रांसीसी कंपनी एमोनिट के निदेशक विक्टर सोली कहते हैं, "यह अन्य विकल्पों की तुलना में काफी महंगा है और इसके उपयोग की प्रक्रिया भी काफी जटिल है."
इस प्रक्रिया के जरिए उपचार में पर्याप्त परतें जोड़ने में महीनों लग सकते हैं. नवारो का मानना है कि बैक्टीरिया को विकसित करने के लिए एक प्रयोगशाला की आवश्यकता है, जो कि महंगा और जटिल काम है.
हालांकि, ग्रेनाडा विश्वविद्यालय में उनकी टीम ने प्रयोगशाला को दरकिनार करने और पहले से ही पत्थर पर रहने वाले बैक्टीरिया का उपयोग करने का एक तरीके का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया है. इसमें देशी बैक्टीरिया को खिलाने के लिए नियमित रूप से छह दिनों में चूना पत्थर पर एक पोषक घोल का छिड़काव किया जाता है. हाल ही में इस प्रक्रिया का उपयोग पुर्तगाल में स्मारकों पर किया गया है.
दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को तेजी से महसूस किया जा रहा है, स्मारकों और ऐतिहासिक इमारतों की रक्षा करना टीम के लिए समय के खिलाफ एक दौड़ की तरह लगता है. लेकिन नवारो इस पर्यावरण के अनुकूल संरक्षण समाधान के भविष्य के उपयोग के बारे में काफी आशावादी हैं. नवारो कहते हैं, "हम दृढ़ता से मानते हैं कि आने वाले वर्षों में इस प्रकार के उपचार को और अधिक व्यापक रूप से अपनाया जाएगा."
रिपोर्टः टॉमस वेबर