कोरोना वायरस के टीके के मामले में आगे रहना चाहता है भारत
२० मई २०२०सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, एसआईआई के सीईओ आदर पूनावाला (तस्वीर में बीच में) इन दिनों बहुत ज्यादा व्यस्त हैं. सीरम इंस्टीट्यूट मात्रा के हिसाब से पूरी दुनिया में वैक्सीन का सबसे बड़ा निर्माता है. संस्थान ने नोवेल कोरोना वायरस के खिलाफ एक कैंडिडेट वैक्सीन का निर्माण शुरु भी कर दिया है. यह कैंडिडेट वैक्सीन लंदन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के जेनर इंस्टीट्यूट ने विकसित किया है.
ऑक्सफोर्ड के रिसर्चरों ने अप्रैल में अपने कैंडिडेट वैक्सीन "ChAdOx1 nCoV-19" का परीक्षण 1,110 लोगों पर शुरु किया. इन लोगों पर हुए ट्रायल के नतीजों से पता चलेगा कि टीका कितना असरदार है और क्या इसके कोई दुष्प्रभाव भी हैं. डीडब्ल्यू के साथ बातचीत में पूनावाला ने उम्मीद जताई कि वैक्सीन के निर्माण में भारत एक निर्णायक भूमिका निभाएगा. ट्रायल सफल रहा तो अक्टूबर तक कंपनी 4 करोड़ टीके तैयार कर लेगी. महाराष्ट्र के पुणे में स्थित सीरम इंस्टीट्यूट हर साल 1.5 अरब वैक्सीन डोज का निर्माण करता है. कंपनी फिलहाल 165 देशों के लिए करीब 20 तरह के टीके बनाती है.
डीडब्ल्यू: ट्रायल पूरा होने से पहले ही सीरम इंस्टीट्यूट ने ऑक्सफोर्ड वैक्सीन कैंडिडेट का निर्माण क्यों शुरु कर दिया?
आदर पूनावाला: यह फैसला इसलिए लिया गया ताकि हम मैनुफैक्चरिंग में आगे रहें और पर्याप्त डोज उपलब्ध कराए जा सकें. इनका वितरण ट्रायल के सफल होने के बाद ही शुरु होगा और जब यह साबित हो चुका होगा कि वैक्सीन असरदार है और इस्तेमाल के लिए सुरक्षित है.
हम इसी महीने (मई से) भारत में खुद भी अपने ह्यूमन ट्रायल करवा रहे हैं. शुरुआती परीक्षणों का फोकस यह सुनिश्चित करने पर है कि क्या वैक्सीन काम करती है, इम्यून सिस्टम को अच्छी प्रतिक्रिया देने के लिए प्रेरित करती है और इसके कोई बड़े साइड इफेक्ट तो नहीं हैं.
आपको ऑक्सफोर्ड वैक्सीन के सफल होने का कितना भरोसा है?
पूरी दुनिया में बायोटेक और रिसर्च टीमें इस समय 100 से भी अधिक संभावित कोविड-19 कैंडिडेट वैक्सीन विकसित करने में लगी हैं. इनमें से कम से कम 6 का प्रारंभिक टेस्ट इंसानों पर शुरु हो चुका है, जिन्हें फेज 1 क्लीनिकल ट्रायल कहा जाता है. वैसे तो "ChAdOx1 nCoV-19" कहे जाने वाले ऑक्सफोर्ड वैक्सीन को अब तक कोविड-19 के संक्रमण से बचाने में प्रभावी साबित नहीं किया गया है, लेकिन प्रीक्लीनिकल ट्रायल फेज में अच्छे नतीजे दिखाने और ह्यूमन ट्रायल फेज में बढ़ने के समय ही सीरम में हमने इसका निर्माण शुरु करने का फैसला लिया. इसके कई संकेत मिले हैं कि ऑक्सफोर्ड द्वारा विकसित टीका अच्छा है. इस वैक्सीन की तकनीक पहले सफल रही है और हमें आशा है कि यह सुरक्षित भी होगी. हमें ज्यादा से ज्यादा लोगों को क्लीनिकल ट्रायल में शामिल करने की जरूरत है ताकि टीके के असर को साबित किया जा सके. लेकिन इतनी जल्दी वैक्सीन के लिए एक संभावित कैंडिडेट मिलना ही अपने आप में खुशी की बात है.
अगर हम जल्दी से जल्दी एक टीका बना भी लेते हैं, क्या आपको लगता है कि उसके अरबों डोज तैयार करना एक चुनौती होगा?
फिलहाल यह कहना जल्दबाजी होगी कि बाकी के निर्माता तब क्या करेंगे लेकिन हम इसकी कीमत कम ही रखेंगे. हमने प्रति माह 40 से 50 लाख डोज के निर्माण का लक्ष्य रखा है. ट्रायल सफल रहे तो इसके बाद हम अपनी क्षमता को बढ़ाकर प्रति माह एक करोड़ डोज के निर्माण तक ले जाना चाहते हैं. सितंबर-अक्टूबर तक हम प्रति माह 2 से 4 करोड़ डोज का निर्माण करने का अनुमान लगा रहे हैं. ट्रायल सफल रहे तो हम अपने उत्पाद भारत के अलावा जितने देशों में संभव हो वहां भेजना चाहेंगे. अपनी वैक्सीन को हम करीब 12 यूरो (13 अमेरिकी डॉलर) प्रति डोज की कीमत पर बेचना चाहेंगे. क्लीनिकल ट्रायल के लिए हम इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च के साथ साझेदारी कर रहे हैं और बायोटेक्नोलॉजी विभाग के साथ भी संपर्क में हैं. यह फैसला मैं भारत सरकार पर ही छोड़ता हूं कि वे किस देश को, कब और कितने टीके उपलब्ध कराएंगे.
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