1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

क्या सिर्फ दिखावा है कॉप 26?

सारा स्टेफेन | अजीत निरंजन
५ नवम्बर २०२१

कॉप 26 को कई देश इस सम्मेलन को ग्लोबल वॉर्मिंग रोकने के लिए "सर्वश्रेष्ठ अंतिम मौका" बता रहे हैं, वहीं कुछ पर्यावरणविद इसे ‘सिर्फ दिखावा’ कह रहे हैं. आखिर नाराजगी की वजह क्या है?

https://p.dw.com/p/42bsK
तस्वीर: Andrew Milligan/empics/picture alliance

यूनाइटेड किंगडम के ग्लासगो में 31 अक्टूबर से 12 नवंबर तक संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन शाखा (यूएनएफसीसीसी) के तत्वाधान में 26वां जलवायु सम्मेलन का आयोजन किया गया है. इसे नाम दिया गया है कॉप 26. दूसरे शब्दों में कहें, तो 26वीं कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज. यहां दुनिया के नेता यह तय कर रहे हैं कि धरती के बढ़ते तापमान को धीमा कैसे किया जाए.

आयोजकों द्वारा बीते मंगलवार को प्रकाशित दस्तावेज के मुताबिक, कॉप 26 में शामिल होने के लिए पंजीकरण कराने वाले लोगों की संख्या 2019 में हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन से दोगुनी हो गई है. यह संख्या 40 हजार तक पहुंच गई है. हालांकि, गरीब देशों के प्रतिनिधियों और पर्यवेक्षकों का कहना है कि उनके सहयोगियों ने इस सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए काफी संघर्ष किया है.

कोरोना वायरस संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए यात्रा पर लगे प्रतिबंध, क्वॉरंटीन के नियमों में अंतिम समय में बदलाव, हवाई यात्रा और होटलों की बुकिंग में होने वाले ज्यादा खर्च की वजह से कई प्रतिनिधियों ने वीडियो कॉल के जरिए इस सम्मेलन में भाग लिया.

दुनिया भर में कमजोर लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले पर्यावरण समूहों का कहना है कि उन्हें बैठकों से बाहर कर दिया गया. ऐसा कमरे में लोगों की बैठने की तय संख्या की वजह से किया गया.

इस सम्मेलन को पूर्व-औद्योगिक तापमान से ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए "सर्वश्रेष्ठ अंतिम मौका" बताया जा रहा है. यह दुनिया के नेताओं के लिए उस मुद्दे पर सहमत होने का मौका है जो मौसम में तेजी से हो रहे बदलाव को कम कर देगा.

1,500 सिविल सोसायटी ग्रुप के वैश्विक नेटवर्क, क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क की अंतर्राष्ट्रीय निदेशक तस्नीम एस्सोप ने कहा, "जिन लोगों के लिए वास्तव में तत्काल जलवायु कार्रवाई की आवश्यकता है, उनकी सामूहिक आवाज मायने रखती है. दुर्भाग्य से, यह पहले से ही कम हो गया है."

‘विचारों को नहीं दी जा रही अहमियत'

यूके की सरकार ने मई में दावा किया था कि कॉप 26 ‘अब तक का सबसे समावेशी कोप' होगा. साथ ही, सभी प्रतिनिधियों, पर्यवेक्षकों और मीडिया को टीके की पेशकश की थी. हालांकि, प्रतिभागियों ने कहा कि टीका और वीजा दोनों मिलना काफी मुश्किल था.

वह कहते हैं कि सबसे निराशाजनक यह रहा कि अधिकांश गरीब और मध्यम आय वाले देशों को यूके की कोरोनावायरस रेड लिस्ट में रखा गया. इसके तहत, यूके आने वाले यात्रियों को सम्मेलन से दो सप्ताह पहले 10 दिनों के लिए क्वॉरंटीन में रहने का नियम बनाया गया.

इतने कम समय के नोटिस पर, कुछ प्रतिनिधियों के पास घर पर रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं था जबकि कुछ ऐसे लोग जिन्होंने अंतिम समय में यात्रा टिकट बुक की थी वे केवल पड़ोसी शहर एडिनबरा में ही घर ढ़ूंढ़ पाए.

कैरिकॉम 15 कैरिबियाई देशों का समूह है. इन देशों में से कुछ शुरू में रेड लिस्ट में थे. इस समूह के निदेशक कॉलिंग यंग ने कहा, "अगर आप प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे हैं, तो आपके विचारों को अहमियत नहीं दी जा रही है. आर्थिक हालात की वजह से हमारे प्रतिनिधिमंडल हमेशा से छोटे होते हैं. जब आप इसे और भी छोटा कर देते हैं, तो यह हमारे लिए चिंता का विषय हो जाता है."

निष्पक्षता का सवाल

निष्पक्षता को लेकर विवाद है. तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन में ग्लोबल साउथ के देशों का काफी कम योगदान है, लेकिन सबसे ज्यादा खामियाजा इन्हें ही भुगतना पड़ रहा है. ये देश शिखर सम्मेलन में दो प्रमुख मुद्दों पर समझौतों के लिए लड़ रहे हैं.

पहला यह है कि 2009 में हुए जलवायु परिवर्तन में अमीर देशों ने जो वादा किया था और उसे तोड़ दिया, उस वादे को पूरा किया जाए. अमीर देशों ने वादा किया था कि गरीब देशों को हर साल 100 बिलियन डॉलर दिया जाएगा, ताकि वे जलवायु परिवर्तन के अनुकूल हो सकें और हरित अर्थव्यवस्था बनाया जा सके.

दूसरा, उष्णकटिबंधीय चक्रवातों और जंगल की आग जैसी मौसमी घटनाओं के कारण होने वाले नुकसान और क्षति में उनकी भूमिका को स्वीकार करना है.

दुनिया भर के जंगलों की क्या कीमत है

क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क के एस्सोप कहते हैं, "यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर अमीर देश बिल्कुल भी बात नहीं करना चाहते हैं. गरीब देशों की आवाजें अमीर देशों को नुकसान और नुकसान की भरपाई सुनिश्चित करने के लिए "महत्वपूर्ण" होंगी."

नाइजीरिया के जलवायु परिवर्तन विभाग के पर्यावरण वैज्ञानिक हलीमा बावा-बवारी ने कहा, "अगर विकसित देश प्रतिबद्ध हैं, तो उन्हें अपनी प्रतिबद्धता दिखानी चाहिए." उन्होंने यह भी कहा कि नाइजीरियाई प्रतिनिधिमंडल के कई सदस्य कई बैठकों में शामिल नहीं हो पाए, क्योंकि उन्हें शहर के बाहर से आना पड़ रहा था.

बड़ा प्रतिनिधिमंडल

यूएनएफसीसीसी ने डॉयचे वेले के अनुरोध के बाद पंजीकृत प्रतिभागियों की सूची प्रकाशित की है. इस सूची से यह पता चलता है कि पिछले वर्ष की तुलना में करीब 150 देशों ने अपने प्रतिनिधिमंडल का आकार बढ़ाया है, जबकि 6 ने किसी तरह का बदलाव नहीं किया है. वहीं, 33 देशों का प्रतिनिधिमंडल छोटा हुआ है.

कुल 22,000 प्रतिनिधियों, 14,000 पर्यवेक्षकों और 4,000 पत्रकारों का पंजीकरण हुआ है. हालांकि, ये स्पष्ट नहीं हुआ है कि इनमें से कितने लोग उपस्थित होंगे. यूएनएफसीसीसी ने यह नहीं बताया कि कितने प्रतिभागी वर्चुअल तौर पर शामिल हो रहे हैं.

बुरकीना फासो में सिविल सोसाइटी ग्रुप एसोसिएशन फॉर एजुकेशन ऐंड एनवायरनमेंट के ममौडौ ओएड्राओगो ने कहा, "अगर यह सम्मेलन वर्चुअल तौर पर आयोजित होता, तो अफ्रीका इसमें भाग नहीं ले पाता. वर्चुअल तौर पर शामिल होने वाले प्रतिभागियों को खराब इंटरनेट कनेक्शन से जूझना पड़ता है. कभी-कभी लगातार दो से तीन दिनों तक इंटरनेट कनेक्शन नहीं रहता है."

सिविल सोसायटी

सम्मेलन हॉल कहीं-कहीं प्रतिभागियों को ऐसे सत्र में भाग लेने में कठिनाई हो रही है जिन्हें खुले सत्र के तौर पर बताया गया है. सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने में मदद के लिए कई सेशन का टिकट लिया जा रहा है.

पर्यावरण के लिए काम करने वाले लोगों ने कहा कि पर्यावरण समूह से जुड़े लोगों को दर्जनों कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए महज कुछ ही टिकट दिए गए हैं. ग्लोबल कैम्पेन टु डिमांड क्लाइमेट जस्टिस के नाथन थंकी ने कहा, "मान्यताप्राप्त सभी लोगों को बैठने के लिए आयोजन स्थल पर पर्याप्त जगह नहीं है."

कुल मिलाकर बात यह है कि प्रतिभागियों ने शिकायत की है कि यह ऐसा जलवायु शिखर सम्मेलन है जिसमें जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित देश और लोग अपनी आवाज उठाने में असमर्थ हैं.

थंकी ने कहा, "सिविल सोसायटी, सामाजिक आंदोलन, और सरकारें सभी के लिए यूके तक पहुंचना काफी चुनौतीपूर्ण रहा है. पिछले वर्षों की तुलना में यह सीओपी सिर्फ दिखावा बनकर रह गया है."

रिपोर्ट: 

बायोप्लास्टिक अच्छा प्लास्टिक है?