ट्विटर छोड़ रहे हैं कई पर्यावरण विज्ञानी और कार्यकर्ता
२४ मई २०२३पर्यावरण और जल वैज्ञानिक पीटर ग्लाइक के ट्वटिर पर 99 हजार फॉलोअर थे. 21 मई को उन्होंने ऐलान किया कि अब वह इस सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर सक्रिय नहीं रहेंगे क्योंकि यह नस्लवाद और लैंगिक भेदभाव का मैदान बन गया है.
समाचार एजेंसी एएफपी को एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि वह "निजी और अपमानजनक हमलों व शारीरिक हमलों की धमकियों के आदि हैं लेकिन पिछले कुछ महीनों में, यानी जब से ट्विटर को नये मालिक मिले हैं और उसकी नीतियों में बदलाव हुआ है, हमलों की तादाद और उग्रता बहुत ज्यादा बढ़ गई है.”
ग्लाइक ऐसा महसूस करने वाले अकेले नहीं हैं. एक शोध में पता चला है कि कई इलॉन मस्क के ट्विटर खरीदने के बाद से ट्विटर पर दुष्प्रचार और फर्जी सूचनाओं की बाढ़ आ गई है और जलवायु विज्ञान के बारे में संवाद करना बहुत मुश्किल हो गया है. मस्क ने पिछले साल अक्टूबर में ट्विटर का अधिग्रहण किया था.
वैज्ञानिक जानकारियों की पहुंच कम हुई
शोध कहता है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने वाली नीतियां बढ़ रही हैं, इसलिए इन सुधारों के विरोधी एक संगठित मुहिम चला रहे हैं.
पर्यावरण के लिए काम करने वाली संस्था बर्कली अर्थ के मुख्य वैज्ञानिक और भौतिकीशास्त्री रॉबर्ट रोड ने ऐसे सैकड़ों ट्विटर खातों का विश्लेषण किया है जो जलवायु विशेषज्ञों को फॉलो करते हैं या उनके बारे में सूचनाएं पोस्ट करते हैं.
अपने शोध में रोड ने पाया कि वैज्ञानिकों के ट्वीट अपना असर खो रहे थे. जब से मस्क ने ट्विटर का नियंत्रण अपने हाथ में लिया है तब से इन वैज्ञानिकों के ट्वीट पर आने वाले लाइक्स की संख्या 38 फीसदी घट गई है जबकि रीट्वीट करीब 40 फीसदी कम हो गये हैं.
ट्विटर ने यह नहीं बताया है कि ट्रैफिक या ट्वीट्स को दिखाने संबंधी एल्गोरिदम में क्या बदलाव किये गये हैं. जब उनसे इस बारे में सवाल पूछे गये तो उनके प्रेस विभाग की तरफ से एक ऑटोमेटेड ईमेल मिला, जिसमें ‘पूप ईमोजी' बनी थी.
हालांकि जनवरी में इलॉन मस्क एक ट्वीट किया था जिसमें उन्होंने इस बात का संकेत दिया था कि एल्गोरिदम में कई तरह के बदलाव किये गये हैं. उन्होंने लिखा था, "दक्षिणपंथी लोगों को अब ज्यादा वामपंथी सामग्री दिखाई देगी और वामपंथी लोगों को ज्यादा दक्षिणपंथी सामग्री मिलेगी. लेकिन आप अपने खोल में रहना चाहते हैं तो ब्लॉक कर सकते हैं.”
एक अन्य विश्लेषण में विख्यात जलवायु विज्ञानी कैथरीन हेहो ने एक प्रयोग किया. उन्होंने जलवायु परिवर्तन के बारे में एक ही ट्वीट दो बार पोस्ट किया. यह ट्वीट एक बार मस्क द्वारा अधिग्रहण के पहले पोस्ट किया गया था और एक बार बाद में.
हेहो ने विरोध में की गईं टिप्पणियों की गिनती की और यह जानने की कोशिश की कि कहीं वे बॉट्स द्वारा तो नहीं भेजी गई हैं. ऐसे खातों का पता लगाया जा सकता है जो ऑटोमेटेड होते हैं.
भारत को फेक न्यूज से बचाने के लिए गूगल का अभियान
हेहो ने पाया कि दो महीने के भीतर ही फर्जी खातों से की गईं टिप्पणियां 15 से 30 फीसदी तक बढ़ गई थीं. वह बताती हैं, "अक्तूबर से पहले मेरा खाता कुदरती रूप से बढ़ रहा था और हर महीने कई हजार नये फॉलोअर जुड़ रहे थे. उसके बाद इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है.”
विकल्प खोज रहे हैं लोग
टेक्स ए एंड एम यूनिवर्सिटी में वायुमंडलीय विज्ञान के प्रोफेसर एंड्रयू डेसलेर कहते हैं कि अब वह जलवायु संबंधी संवाद के लिए एक अन्य प्लैटफॉर्म सबस्टैक पर सक्रिय हो रहे हैं.
वह कहते हैं, "ट्विटर पर जलवायु संबंधी संवाद अब कम लाभदायक हो गया है क्योंकि मैं देख सकता हूं कि मेरे ट्वीट्स की एंगेजमेंट लगातार कम हो रही है. मैं देख रहा हूं कि जब भी मैं जलवायु परिवर्तन संबंधी कोई ट्वीट करता हूं तो उस पर वेरिफाइड खातों से भ्रामक और गलत दावे किये जाते हैं.”
क्या ये माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म ट्विटर की जगह ले पाएंगे?
कई वैज्ञानिकों ने तो ट्विटर को पूरी तरह त्याग दिया है. हेहो कहती हैं कि उनके पास 3,000 जलवायु वैज्ञानिकों के खातों की सूची थी जिनमें से 100 अक्तूबर 2022 के बाद लापता हो गये हैं.
हिमखंडों की विशेषज्ञ रुथ मोतरम के ट्विटर पर दस हजार फॉलोअर्स थे लेकिन फरवरी में उन्होंने ट्विटर छोड़ दिया. अब वह क्राउडफंडिंग से 2016 में स्थापित मैस्टोडन पर हैं. वह कहती हैं, "वहां ज्यादा शांति है और ज्यादा विचारशीलता भी. वहां ना तो मुझे किसी ने गाली दी है और ना जलवायु परिवर्तन को लेकर मुझे कठघरे में खड़ा किया है.”
वीके/सीके (एएफपी)