नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे को लेकर चीन ने दी धमकी
२० जुलाई २०२२अमेरिकी नेता नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे की खबरें आने के बाद चीन ने लगभग धमकी देते हुए कहा है कि ऐसा हुआ तो वह कड़े कदम उठाएगा. अमेरिकी राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के बाद पेलोसी अमेरिका के तीसरे सबसे बड़े पद हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स की स्पीकर हैं. वह ताइवान के दौरे पर जाने वाली हैं, जिसे चीन अपना हिस्सा बताता है. ताइवान में लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार है जो उसे एक स्वतंत्र देश मानती है.
फाइनैंशल टाइम्स अखबार ने खबर छापी है कि पेलोसी को अप्रैल में ही ताइवान का दौरा करना था लेकिन उनके कोविड से ग्रस्त होने के कारण तब वह यात्रा नहीं हो पाई थी. अब उनकी अगस्त में ताइवान जाने की योजना है.
अगर पेलोसी ताइवान जाती हैं तो 25 वर्ष में वहां की यात्रा करने वालीं वह अमेरिका की सबसे उच्च पद पर बैठी अधिकारी होंगी. 25 साल पहले उन्हीं के पूर्ववर्ती न्यूट गिंगरिच ने ताइवान का दौरा किया था.
चीन कह चुका है कि जरूरत पड़ी तो ताइवान को अपने नियंत्रण में लेने के लिए वह बल प्रयोग से भी नहीं झिझकेगा. वह कई बार ताइवानी वायु क्षेत्र में लड़ाकू विमानों को उड़ाकर अपनी मंशाओं का मुजाहिरा कर चुका है. इन गतिविधियों के बारे में उसकी सफाई है कि द्विपीय देश की स्वतंत्रता की हिमायत करने वालों को संदेश देने के लिए ये कार्रवाइयां की गईं.
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जाओ लीजियांग ने मीडिया से बातचीत में कहा कि पेलोसी का दौरा "चीन की संप्रभुता और क्षेत्रीय एकता का गंभीर अपमान होगा. इससे चीन-अमेरिका रिश्तों की नींव पर गहरा असर पड़ेगा और ताइवान की आजादी चाहने वाली ताकतों को बहुत गलत संकेत भेजेगा."
जाओ ने अमेरिका को स्पष्ट शब्दों में ऐसा करने के खिलाफ आगाह किया. उन्होंने कहा, "अगर अमेरिका गलत रास्ते पर चलने पर अड़ा रहा तो चीन अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय एकता की सुरक्षा के लिए दृढ़ और सख्त कदम उठाएगा."
अमेरिका की प्रतिक्रिया
अमेरिका में व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरीन ज्याँ-पिएरे ने इस मुद्दे पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि ताइवान को अमेरिका का मजबूत समर्थन बना रहेगा. साथ ही उन्होंने अमेरिका की 'वन चाइना' नीति पर प्रतिबद्धता भी दोहराई. इस नीति के तहत अमेरिका बीजिंग स्थित सरकार को ही चीन की असली सरकार मानता है लेकिन ताइवान के साथ अनौपचारिक और रक्षा संबंध बनाए रखता है.
हाल के दिनों में ताइवान को अमेरिकी हथियारों की बिक्री पर चीन कई बार आपत्ति जता चुका है. ताइवान और अमेरिका के बीच करीब 10.8 करोड़ डॉलर का हथियारों का समझौता हुआ था. दुनिया की सबसे बड़ी सेना वाले देश चीन को इस समझौते पर आपत्ति है. हालांकि इन हथियारों के साथ भी ताइवान चीन का मुकाबला कर पाएगा, इस पर बहुत से विशेषज्ञों को संदेह है. चीन के पास दुनिया के कुछ सबसे आधुनिकतम हथियार हैं जिनमें खतरनाक मिसाइलें भी हैं जो ताइवान की ओर मुंह करके तैनात की गई हैं.
कितना बड़ा है खतरा?
चीनी रक्षा मंत्रालय ने एक बयान में कहा, "चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी अलगाववादियों द्वारा ताइवान की आजादी की किसी भी कोशिश और बाहरी ताकतों द्वारा किसी भी दखलअंदाजी का पूरी ताकत से जवाब देगी."
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ताइवान को लेकर अमेरिका की नीति में एक तरह की रणनीतिक अस्पष्टता रही है. उसका कानून कहता है कि ताइवान को अपनी रक्षा के लिए हथियार और अन्य साजो-सामान उपलब्ध करवाया जाएगा. वह ताइवान के साथ अनाधिकारिक रिश्ते कायम रखे हुए है लेकिन उसे लगातार राजनीतिक और सैन्य मदद देता रहता है.
यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद कई विशेषज्ञों ने यह आशंका जाहिर की है कि चीन भी ताइवान पर ऐसी ही कार्रवाई कर सकता है. अब तक चीन ने द्विपीय देश के खिलाफ सेना का प्रयोग नहीं किया है. उसकी सबसे कड़ी कार्रवाई 1995-96 में हुई थी जब उसके तत्कालीन राष्ट्रपति ली तेंग-हुई ने अमेरिका का दौरा किया था. तब चीन ने ताइवान के उत्तर में समुद्री सीमा के पास सैन्य अभ्यास किया और मिसाइलें दागी थीं.
वीके/एए (रॉयटर्स, एपी)