चीन और फ्रांस का उपग्रह अंतरिक्ष में क्या करने गया है
२३ जून २०२४दोनों देशों के इंजीनियरों ने इस स्पेस वैरिएबल ऑब्जेक्ट्स मॉनिटर यानी एसवीओएम को तैयार किया है, जो गामा किरणों के विस्फोट पर नजर रखेगा. 930 किलोग्राम का यह उपग्रह दो फ्रांसीसी और दो चीनी उपकरणों को अंतरिक्ष में ले कर गया है. इसे चीन के शिचुआन प्रांत में शिचांग के स्पेस बेस से लॉन्ग मार्च 2-C रॉकेट की मदद से अंतरिक्ष में भेजा गया.
पृथ्वी से करीब 625 किलोमीटर दूर अपनी कक्षा में पहुंचने के बाद यह उपग्रह अपने आंकड़े निगरानी केंद्रों को भेजना शुरू कर देगा. असल चुनौती ये है कि गामा किरणों के विस्फोट अत्यधिक कम समय के लिए होते हैं. ऐसे में वैज्ञानिकों को जानकारी जुटाने के लिए समय के साथ रेस लगानी पड़ती है. एसवीओएम को जैसे ही किसी विस्फोट का पता चलता है यह टीम को उसके लिए अलर्ट भेजता है. टीम चौबीसों घंटे यहां तैनात रहती है. पांच मिनट के भीतर ही धरती पर दूरबीनों के नेटवर्क को ऐसे कोणों पर फोकस करना पड़ता है जिससे कि विस्तृत जानकारी हासिल की जा सके.
अंतरिक्ष की सबसे तेज चमक देख कर अभिभूत हैं वैज्ञानिक
गामा किरणों पर रिसर्च
गामा किरणें विशाल तारों के टूटने या फिर छोटे तारे के आपस में जुड़ने पर उत्पन्न होती हैं. इन तारों का आकार सूरज से 20 गुना ज्यादा तक ज्यादा होता है. तारों के टूटने या फिर जुड़ने पर होने वाले विस्फोट से निकली ये बेहद चमकीली किरणें अरबों सूरज के बराबर ऊर्जा पैदा करती हैं. इन किरणों को अंतरिक्ष से पृथ्वी तक पहुंचने में अरबों प्रकाश वर्ष का समय लगता है. न्यू यॉर्क के फ्लेटिरॉन इंस्टीट्यूट के सेंटर फॉर एस्ट्रोफिजिक्स में रिसर्च करने वाले ओर गॉटलिब ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा कि इन किरणों को देखना कुछ ऐसा है, "जैसे गुजरे समय को देखना, क्योंकि इन तारों से प्रकाश को हम तक पहुंचने में बहुत वक्त लगता है."
इन किरणों में उन गैसों के बादलों और आकाशगंगाओं के अंश होते हैं, जिनसे होकर ये अंतरिक्ष में गुजरती हैं. यह ब्रह्मांड की उत्पत्ति और उसके इतिहास को समझने के लिए अहम आंकड़े साबित होते हैं. गॉटलिब का कहना है, "एसवीओएम में गामा किरण विस्फोट के क्षेत्र में कई रहस्यों को सुलझाने की क्षमता है, इनमें ब्रह्मांड की सबसे सुदूर गामा किरणों के विस्फोट का पता लगाना भी शामिल है, यानी जो गामा किरणों के सबसे पहले विस्फोट हैं." अब तक जिस सबसे सुदूर विस्फोट की पहचान हुई है, वह बिग बैंग के 63 करोड़ साल पहले बाद हुई थी. तब ब्रह्मांड अभी प्रारंभिक अवस्था में ही था.
फ्रांस के इंस्टीट्यूट दे एस्ट्रोफिजिक दे पेरिस के रिसर्चर फ्रेदेरिक देन्य का कहना है, "हम गामा किरणों के विस्फोट में दिलचस्पी उन्हीं के लिए रख रहे हैं क्योंकि वे अत्यधिक विराट विस्फोट हैं जो हमें कुछ तारों की मौत को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकते हैं." उनका यह भी कहना है कि ये सारे आंकड़े भौतिकी के कुछ नियमों को परखना संभव कर सकते हैं क्योंकि इन्हें पृथ्वी पर किसी प्रयोगशाला में दोहराया नहीं जा सकता.
विश्लेषण के बाद ये आंकड़े अंतरिक्ष की संरचना को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकते हैं. इसमें गैस के बादलों या फिर दूसरी आकाशगंगाओं के गतिविज्ञान के बारे में जानकारी भी शामिल है.
पश्चिमी देश और एशिया का सहयोग
इस परियोजना के लिए फ्रांस और चीन की स्पेस एजेंसियों और दोनों देशों के दूसरे वैज्ञानिक और तकनीकी समूहों ने काफी सहयोग किया है. अंतरिक्ष के लिए इस तरह के सहयोग की मिसाल पश्चिमी देशों और चीन के बीच सामान्य नहीं है. खासतौर से इसलिए भी क्योंकि अमेरिका ने 2011 में चीन और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के बीच सहयोग पर पाबंदी लगा दी थी.
अमेरिका में हॉर्वर्ड स्मिथसोनियन सेंटर फॉर एस्ट्रोफिजिक्स के अंतरिक्षविज्ञानी जोनाथन मैकडॉवेल का कहना है, "टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर अमेरिका की चिंता ने अमेरिकी सहयोगियों के चीन के साथ सहयोग पर आशंकाएं पैदा कर दी हैं, लेकिन यह कभी कभी होता भी है."
2019 में चीन और फ्रांस ने संयुक्त रूप से सीएफओसैट लॉन्च किया था. यह समुद्र विज्ञान से जुड़ा उपग्रह था जो समुद्री मौसम की छानबीन में इस्तेमाल होता है. इसी तरह से कई यूरोपीय देश चीन के चंद्र अभियानमें भी हिस्सा ले रहे हैं. मैकडॉवेल का कहना है कि भले ही एसवीओएम कोई अनोखी चीज ना हो लेकिन यह चीन और पश्चिमी देशों के सहयोग के लिहाज से काफी अहम है.
एनआर/एडी (एएफपी)