बच्चे जिनसे आईएस ने बचपन छीन लिया
२६ जुलाई २०१७43 साल की हनान मोहम्मद अपने दो साल के बेटे की तरफ मुस्कराते हुए देखती है और कहती है, "देखो, वह फिर से चल रहा है." अपने दो बच्चों के साथ हनान हाल ही में मोसूल शहर के पुराने हिस्से से जान बचाकर भागी, जहां हफ्तों से लड़ाई चल रही थी. इसके चलते वहां खाना, पानी और अन्य जरूरी चीजों की किल्लत हो रही थी.
हनान बताती हैं, "दाएश (आईएस) ने हमें भूखा छोड़ दिया. हम लोग कुछ भी नहीं खरीद सकते थे और जो था वह बहुत महंगा था." इसीलिए वह अपने बच्चों को कुछ नहीं खिला सकती थी और कुपोषण के चलते उनके छह महीने के एक बच्चे की मौत हो गयी. उनके एक बेटे ने फिर से चलना शुरू कर दिया है लेकिन कुपोषण के चलते उसकी हालत अब भी बहुत अच्छी नहीं है.
हनान अपने दो बच्चों के साथ समालिया के एक शिविर में रह रही हैं जिसे मोसुल के आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों के लिए बनाया गया है. यहां मौजूद लोगों का किसी न किसी तरह आईएस से संबंध है. हनान के पति की गोलाबारी में मौत हो गयी. हालांकि हनान ने पहले ही उससे तलाक ले लिया था. शायद पति के आईएस में शामिल होने पर हनान ने उससे रिश्ता तोड़ने का फैसला किया था.
वह अपने माता-माता पिता के घर में अपने बच्चों के साथ रहती थी. आईएस ने मोसुल में लोगों को मानवीय ढाल के तौर पर भी इस्तेमाल किया. हनान का कहना है कि वहां न पानी था, न खाना और ऊपर से लगातार बमबारी होती रहती थी. जो भी लोग वहां से भागने की कोशिश करते थे, आईएस उन्हें मार देता था.
इन हालात की बच्चों पर सबसे ज्यादा मार पड़ी, क्योंकि बड़ों की तरह उनके पास कोई अन्य विकल्प नहीं था. इस शिविर में काम करने वाली एक राहत कर्मी केली नाऊ का कहना है कि वहां सैकड़ों कुपोषित बच्चे रह रहे हैं. वे बच्चों को अत्यधिक पोषक तत्वों वाला खाना दे रही हैं और मांओं को बता रही हैं कि बच्चों को स्तनपान कराना कितना जरूरी है. इराक में बहुत सी महिलाएं सोचती हैं कि बच्चे के जन्म के 40 दिन बाद उसके लिए मां के दूध से बेहतर पाउडर वाला दूध होता है.
इराक में यूनिसेफ की उप प्रतिनिधि हामिदा रामादानी ने बताया कि मोसूल में पिछले तीन सालों के दौरान आईएस के राज में "लगभग 6.5 लाख बच्चों ने भारी कीमत चुकायी है और इस दौरान उन्होंने बहुत खौफनाक हालात देखे हैं."
बच्चों ने शोधकर्ताओं को आईएस के राज में अपनी जिंदगी के बारे में बताया. उनकी बातों में शैतान, सड़कों पर बिखरी लाशें, खून में सने चेहरे और घरों पर गिरते बम बार बार सुनने को मिलते हैं. बहुत से बच्चों को अब भी हमेशा हमला होने का डर सताता रहता है और दिन के उजाले में भी वे डरे सहमे रहते हैं.
बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था सेव द चिल्ड्रन से जुड़ीं आईलीन मैककार्थी का कहना है कि सबसे हैरानी वाली बात यह है कि इनमें से ज्यादातर बच्चे अब बच्चों की तरह व्यवहार करना ही भूल गये हैं और उनका व्यवहार रोबोटिक नजर आता है. उनका कहना है, "वे बेहद शांत और चुपचाप रहते हैं और जब आप उसने पूछते हैं कि उनके लिए क्या सकारात्मक है तो वे कहते हैं कि विनम्र रहिए और कानून का पालन कीजिए."
इनमें से ज्यादा बच्चे अपने परिवार के किसी न किसी सदस्य को खो चुके हैं. उन्हें बुरे सपने आते हैं और कई बार वे बहुत जल्दी आक्रामक हो जाते हैं. हालांकि राहतकर्मी खिलौने और अन्य गेम्स की मदद से उनका दिल बहलाने की कोशिश करते हैं. वे बच्चों के माता पिता की भी मदद कर रहे हैं ताकि वे अपने बच्चों का बेहतर ध्यान रख पायें.
सेव द चिल्ड्रन इस समस्या से निपटने के लिए इराकी सरकार के साथ मिल कर काम कर रहा है. शोधकर्ता कहते हैं कि अगर इराक में संकट के कारणों से निपटने पर ध्यान नहीं दिया गया तो पूरा समाज पीड़ा की संस्कृति का शिकार बन सकता है. ऐसा न हो, इसके लिए जरूरी है कि उन पर जुल्म ढाने वालों को कानून के कठघरे तक लाया जाये.
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