भारत में आज भी जारी है तीन तलाक, सरकार ने माना
२७ अप्रैल २०२३भारतीय संसद ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम 2019 बनाया है. इसके तहत एक बार में तीन तलाक देना जु्र्म है. सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में केंद्र सरकार ने तीन तलाक देने वाले पुरुषों को तीन साल की सजा के प्रावधान को सही बताया है, साथ ही कहा है कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 2017 में फैसला सुनाया कि यह प्रथा असंवैधानिक थी, केंद्र ने कहा यह अब भी बेरोकटोक बनी हुई है. केंद्र की दलील है कि इसलिए इस प्रथा को रोकने के लिए एक निवारक कानून बनाना आवश्यक है.
केंद्र सरकार का 177 पन्नों का हलफनामा हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में दायर किया गया है. यह उन याचिकाओं के जवाब में दाखिल किया गया है जिसमें मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम 2019 की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है. इस अधिनियम के तहत तीन तलाक दंडनीय अपराध है और इसमें अधिकतम तीन साल कैद की सजा का प्रावधान है.
तीन तलाक कानून को दी गई चुनौती
तीन तलाक कानून को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गईं हैं. सरकार ने इन याचिकाओं पर की जाने वाली सुनवाई का विरोध करते हुए दायर हलफनामे में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिए जाने के बावजूद रिपोर्टें बताती हैं कि तीन तलाक की प्रथा अब भी मौजूद है.
हलफनामे में कहा गया है शायरा बानो मामले में फैसले से तीन तलाक की घटनाओं में कमी नहीं आई है. ऐसे तलाक के पीड़ितों की मदद के लिए राज्य के हस्तक्षेप की जरूरत है.
हलफनामे में तर्क दिया गया कि "अकेले विधायिका, वर्तमान सरकार की अध्यक्षता में यह निर्धारित कर सकती है कि देश के लोगों के लिए क्या अच्छा है और क्या नहीं."
तीन तलाक के मामले जारी-केंद्र
केंद्र का कहना है कि भले ही शायरा बानो मामले में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तीन तलाक की प्रथा को नियंत्रित करने के लिए दिशानिर्देश निर्धारित करने पर सहमत हो गया था, लेकिन मीडिया में आ रही रिपोर्टों से पता चलता है कि यह अब भी जारी है.
सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त 2017 को शायरा बानो बनाम भारत संघ व अन्य के अपने फैसले में तलाक ए बिद्दत या एक मुस्लिम पति द्वारा घोषित ट्रिपल तलाक और अपरिवर्तनीय तलाक के किसी अन्य समान रूप को असंवैधानिक घोषित किया था.
इसके बाद केंद्र सरकार ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम 2019 बनाया था और इस तरह के तलाक को अपराध घोषित कर दिया था.
इस कानून को चुनौती देते हुए संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 के उल्लंघन के लिए अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए कई याचिकाएं दायर की गईं हैं.
2019 अधिनियम के खिलाफ याचिकाओं में जमीयत उलेमा-ए-हिंद की एक याचिका भी शामिल है. जिसमें तर्क दिया गया है कि एक मुस्लिम पति को तीन तलाक देने पर सजा भुगतना होगा, वहीं एक अन्य धर्म का व्यक्ति सजा के डर के बिना अपनी पत्नी को छोड़ सकता है.
केरल के सुन्नी मुस्लिम विद्वानों और मौलवियों के सबसे बड़े धार्मिक संगठनों में से एक समस्त केरल जमीयतुल की एक अन्य याचिका में दावा किया गया है कि नए कानून का एकमात्र उद्देश्य "मुस्लिम पतियों को दंडित करना" है.
अधिनियम को असंवैधानिक बताकर दाखिल की गईं याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया है. कोर्ट इस मुद्दे पर नवंबर में सुनवाई करेगा.