1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

वैकल्पिक नीतियों से मोदी का विकल्प

मारिया जॉन सांचेज
२९ जनवरी २०१९

न्यूनतम आय गारंटी योजना की बात कर राहुल गांधी ने एक अच्छी चाल चली है. लेकिन क्या आने वाले चुनावों में उन्हें और उनकी पार्टी को इसका फायदा होगा?

https://p.dw.com/p/3CNLf
Indien Gujarat -  Rahul Gandhi
तस्वीर: IANS

अकसर यह कहा जाता है कि कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच कोई विशेष नीतिगत अंतर नहीं है. आर्थिक नीतियां तो दोनों की एक-सी ही हैं, केवल सांप्रदायिकता के मुद्दे पर यह फर्क है कि जहां बीजेपी वैचारिक रूप से हिंदू सांप्रदायिकता की पक्षधर है, वहीं कांग्रेस अवसरवादी ढंग से वक्त पड़ने पर उसका इस्तेमाल कर लेती है. लेकिन पिछले एक साल से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की यह कोशिश रही है कि बीजेपी की आर्थिक नीतियों के बरक्स कांग्रेस की ओर से कुछ अलग किस्म की आर्थिक नीतियां पेश की जाएं ताकि दोनों पार्टियों के बीच के अंतर को आसानी से आम वोटर को समझाया जा सके.

यहां यह याद दिलाना अप्रासंगिक न होगा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पहले कार्यकाल के दौरान अनेक दूरगामी महत्व की नीतियां बनाई गई थीं और कांग्रेस का हर समय तीखा विरोध करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार भी उन नीतियों को छोड़ने का साहस नहीं जुटा पाई, केवल उन पर अमल को कमजोर और बेहद कठिन बना दिया.

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की पहली सरकार को वामपंथी दलों का समर्थन भी प्राप्त था और तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद भी इन नीतियों के निर्माण में भूमिका निभा रही थी. काम का अधिकार देने के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना और सूचना का अधिकार देने के लिए सूचना अधिकार कानून इसी दौर की देन थे.

मोदी सरकार पिछले पौने पांच सालों में आर्थिक क्षेत्र में किए गए अपने वादों में से अधिकांश पूरे नहीं कर पाई है और उसकी लगातार गरीब-विरोधी और पूंजीपति-समर्थक छवि बनती जा रही है. ऐसे में कांग्रेस वैकल्पिक आर्थिक नीतियों और उन पर त्वरित अमल के जरिए आम वोटर को यह विश्वास दिलाना चाहती है कि इंदिरा गांधी के जमाने से चले आ रहे गरीब-परस्त रुख पर वह आज भी जमी है.

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव जीत कर सत्ता में आने के तत्काल बाद कांग्रेस सरकारों ने किसानों के कर्ज माफ करने के अपने चुनावी वादे को पूरा कर दिया. अब राहुल गांधी ने सभी गरीबों को न्यूनतम आय गारंटी देने की बात कही है जो कल्याणकारी राज्य की पुरानी अवधारणा के साथ मेल खाती है.

कितनी तनख्वाह है दुनिया के नेताओं को

यूं भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियन ने दो साल पहले इसी तरह की योजना की चर्चा की थी और कहा था कि यदि अन्य सभी सब्सिडी बंद कर दी जाए, तो सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का साढ़े चार या पांच प्रतिशत खर्च करके ऐसी योजना शुरू की जा सकती है. 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली जीत का एक बहुत बड़ा कारण किसानों को राहत देने वाली योजनाएं थीं. अब उसी प्रयोग को दुहराया जा रहा है और माना जा रहा है कि छोटे किसानों समेत देश की कुल आबादी का चालीस प्रतिशत न्यूनतम आय गारंटी योजना के अन्तर्गत आ जाएगा.

राजनीतिक दृष्टि से भी राहुल गांधी ने एक अच्छी चाल चली है. एक फरवरी को मोदी सरकार अंतरिम बजट पेश कर रही है. उम्मीद की जा रही थी कि उसमें सार्वजनीन प्राथमिक आय योजना पेश की जाएगी, लेकिन अब न्यूनतम आय गारंटी की बात छेड़कर राहुल गांधी ने उसका पहले ही जवाब दे दिया है.

अभी इस योजना का कोई ब्योरा सामने नहीं आया है लेकिन कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र बनाने वाली समिति के अध्यक्ष और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने आश्वासन दिया है कि पार्टी इसके लिए संसाधन जुटाने का काम कारेगी और घोषणापत्र में ब्योरों के साथ सामने आएगी. उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि देश के संसाधनों पर सबसे पहले गरीब का हक है.

इन सब घोषणाओं को देखते हुए यह स्पष्ट है कि यदि कांग्रेस ने केंद्र में सरकार बनाई, तो इस योजना के लागू होने पर हर गरीब के बैंक खाते में कुछ-न-कुछ जरूर आएगा. मनरेगा जैसी योजनाओं पर अमल के दौरान भी कुछ घपलों की खबरें आई थीं और हो सकता है न्यूनतम आय गारंटी योजना के साथ भी कुछ ऐसा ही हो. लेकिन इस तरह की जन कल्याणकारी योजनाओं के सकारात्मक असर से इनकार नहीं किया जा सकता.

कितना कमाती है काम वाली बाई

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें