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समानतासंयुक्त राज्य अमेरिका

जातिगत भेदभाव के खिलाफ बिल कैलिफॉर्निया में पारित

३० अगस्त २०२३

अमेरिका में कैलिफॉर्निया जातिगत भेदभाव पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला राज्य बनने के और करीब पहुंच गया है. सोमवार को राज्य की विधानसभा में इस कानून से संबंधित एक बिल पारित किया गया.

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कैलिफॉर्निया आयाश वहाब
कैलिफॉर्निया की सेनेटर आयशा वहाब (मध्य)तस्वीर: Ruscal Cayangyang

अमेरिका में नस्लीय भेदभाव विरोधी कानून पहले से ही मौजूद है लेकिन उस नस्ल का आधार वंश है और जाति का उसमें कोई उल्लेख नहीं है. दक्षिण एशियाई देशों के जो लोग अमेरिका में रह रहे हैं, उनमें से बहुत से लोगों ने जातिगत भेदभाव की शिकायत करते हुए ऐसे कानून की मांग की थी. कैलिफॉर्निया ने जो प्रस्तावित कानून तैयार किया है उसमें राज्य के भेदभाव विरोधी आधारों की सूची में जाति को शामिल करने का प्रस्ताव रखा है.

मार्च में राज्य की सेनेटर आयाशा वहाब ने यह बिल पेश किया था. वहाब अफगान मूल की अमेरिकी हैं और डेमोक्रैट पार्टी की सेनेटर हैं. इस बिल का एक प्रारूप राज्य की सेनेट में पास किया जा चुका है लेकिन उसमें सुधारों का प्रस्ताव किया गया था.

सोमवार को राज्य की विधानसभा ने प्रस्तावित बिल को लगभग सर्वसम्मति से प्रस्तावित किया है. नये सुधारों के साथ इस बिल को अब सेनेट को भेजा जाएगा, जहां इसके पारित होने की उम्मीद है. सेनेट से पारित होने के बाद इसे कैलिफॉर्निया के गवर्नर गैविन न्यूसम के पास भेजा जाएगा और उनके दस्तखत के बाद यह कानून बन जाएगा.

मौजूद है जातिगत भेदभाव

इस कानून की मांग करने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि जातिगत भेदभाव अन्य किसी भी तरह के भेदभाव से अलग नहीं है और इसे कानूनन प्रतिबंधित किया जाना चाहिए. हाल के महीनों में अमेरिका में जातिगत भेदभाव को खत्म करने के लिए आंदोलन ने खासा जोर पकड़ा है. इसी साल सिएटल जातिगत भेदभाव के खिलाफ कानून बनाने वाला अमेरिका का पहला शहर बन गया था. सिएटल की काउंसिल ने इस संबंध में एक प्रस्ताव पारित किया था. कनाडा के टोरंटो के स्कूल बोर्ड ने भी ऐसा ही एक नियम बनाया था.

अमेरिका में रहने वाले हिंदू समुदाय के लिए यह एक बहुत बड़ा मुद्दा है. दक्षिण एशिया में जातियों का सामाजिक-आर्थिक ढांचा हजारों साल से चला आ रहा है. इसमें शुद्धता और गंदगी से जुड़े नियम भी हैं. इन नियमों के तहत कुछ समूहों को "अछूत" का दर्जा दिया गया है. इस कारण पीड़ित लोगों को सामाजिक ढांचे में सबसे निचले पायदान पर माना गया है. इन जातीय समूहों "दलित" कहा जाता है.

अमेरिका में काम करने वाले दलितों ने भी जातिगत भेदभाव का सामना किया है. सिएटल और कैलिफॉर्निया अमेरिका में तकनीक का गढ़ हैं जहां बड़ी संख्या में दक्षिण एशियाई लोग काम करते हैं. पिछले सालों में बहुत से दलितों ने भेदभाव की शिकायत की. सिस्को नामक कंपनी पर तो एक मुकदमा भी चला जब उसके एक कर्मचारी ने अपने दो सुपरवाइजरों पर जाति के आधार पर भेदभाव करने का आरोप लगाया. इस मुकदमे ने अमेरिका में जाति को लेकर अनुभवों और पर बहस छेड़ दी और इसे इक्वलिटी लैब्स नाम के एक संगठन ने मुद्दा बनाया.

2018 में इक्वलिटी लैब्स ने अमेरिका में जातियों पर एक रिसर्च रिपोर्ट प्रकाशित की थी. 1,500 लोगों से बातचीत के आधार पर तैयार इस रिपोर्ट में 60 फीसदी लोगों ने कहा कि दलितों को जाति आधारित अपमानजनक मजाक और फब्तियां सहन करनी पड़ती हैं. 2021 में कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस नामक संस्था की एक रिपोर्ट में बताया गया, "करीब आधे भारतीय-अमेरिकी हिंदू" किसी जाति समूह के साथ अपनी पहचान जोड़ते हैं. रिसर्च रिपोर्ट कहती है, "बहुत से आप्रवासी अपने साथ अपनी पहचान लेकर आते हैं जिसकी जड़ें उनके पैतृक जन्मभूमि से जुड़ी है लेकिन बहुत से लोगों ने उसे अमेरिकी पहचान के लिए त्याग भी दिया है. हालांकि इसके बाद भी उन्हें भेदभाव करने वाली ताकतों, ध्रुवीकरण और उनकी पहचान से जुड़े सवालों से मुक्ति नहीं मिल पाई है."

भारत में जाति

भारत में जातिगत भेदभाव के मामले सरेआम सामने आते हैं. हालांकि संविधान में ही इसे निषिद्ध कर दिया गया था लेकिन आज भी दलितों को जाति के कारण प्रताड़ित किये जाने के मामलेसामने आते रहते हैं. उन्हें बड़े पैमाने पर भेदभाव से गुजरना पड़ता है. हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में बताया गया कि अधिक आय वाली नौकरियों में कथित निचली जाति के लोगों का प्रतिनिधित्व ना के बराबर था.

फिर भी, अमेरिका में रहने वाले कुछ हिंदुओं का मानना है कि जाति वहां कोई मुद्दा नहीं है. पहले सिएटल और फिर कैलिफॉर्निया में कानून का विरोध करने वाले कुछ संगठनों का कहना है कि इस तरह का कानून भारत और हिंदुओं के बारे में नकारात्मक छवि बनाएगा.

दलितों की अपनी आवाज, अपना मीडिया

जब कैलिफॉर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी ने जातिगत भेदभाव के खिलाफ नियम बनाया तो हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन की ओर से जारी एक वक्तव्य में कहा गया, "हम मानते हैं कि यह जोड़ बिना किसी सबूत के अत्यधिक गुमराह करने वाला है और भेदभाव को रोकने की बजाय, यह भारतीय और दक्षिण एशियाई मूल के हिंदू संकाय को असंवैधानिक रूप से अलग करके और लक्षित करके और अधिक भेदभाव का कारण बनेगा."

वक्तव्य में यह भी कहा गया है कि भेदभाव दर्शाने वाले शब्द ‘जाति' को यहां से हटाया जाए क्योंकि इससे भारत, हिंदुओं और जाति के बारे में जो नकारात्मक छवि बनी है, वह और सुदृढ़ होगी.

विवेक कुमार (रॉयटर्स)

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