भारत-चीन रिश्ते: डोकलाम विवाद तो 'सुलझ' गया लेकिन..
२ अक्टूबर २०१७भूटान के डोकलम क्षेत्र में भारतीय और चीनी सेना के बीच टकराव तो टल गया लेकिन दोनों देशों के बीच तनाव बना हुआ है. चीन के बारे में प्रसिद्ध है कि वह संकेतों के माध्यम से संवाद करता है और अपना संदेश भेजता है. इन संकेतों को पढ़कर समझना कोई आसान काम नहीं है और पूरी दुनिया में चीन विशेषज्ञ दिन-रात इसी चुनौती से जूझते रहते हैं. चीनी समाजवादी गणराज्य की स्थापना की 68वीं वर्षगांठ के अवसर पर चीन ने भारत को दो परस्पर-विरोधी संकेत दिये हैं जिनके निहितार्थों को समझ कर यह निष्कर्ष निकालना कि वास्तव में चीन भारत से कहना क्या चाहता है, एक बड़ी चुनौती है.
हर साल इस अवसर पर भारत-चीन सीमा और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पांच निर्धारित स्थानों पर चीन और भारत के सैनिकों के बीच मुलाकात हुआ करती थी जिसमें इस अवसर पर उत्सव मनाया जाता था और दोनों सेनाओं के बीच संवाद भी होता था. इस बार ऐसी मुलाकातें या बैठकें नहीं हुई हैं क्योंकि चीनी सेना की ओर से निमंत्रण ही नहीं भेजा गया.
दूसरी ओर इसी अवसर पर नई दिल्ली में चीन के राजदूत लू चाओहुई ने कहा कि डोकलम में दो माह तक चले विवाद के बाद भारत और चीन ने द्विपक्षीय स्तर पर ही नहीं बल्कि क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मामलों में भी प्रगति की है, चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार देश है, और दोनों देशों को आगे बढ़ना है.
इन्हीं राजदूत ने डोकलम विवाद के समय यह कहा था कि विवाद को सुलझाने के लिए युद्ध भी एक विकल्प है लेकिन गेंद भारत के पाले में हैं और यह उसके फैसले पर निर्भर करेगा कि कौन-सा विकल्प चुना जाए. जब विवाद "सुलझ” गया, तब भी इस बारे में विवाद रहा कि वह कैसे सुलझा. भारत ने अपनी "जीत” का दावा ठोंकते हुए कहा कि उसने चीनी सेना को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया लेकिन चीन ने कहा कि जब भारत ने अपने सैनिक पीछे हटा लिये, उसके बाद ही उसने वहां सड़क बनाने का काम "अस्थायी तौर पर” स्थगित किया. जिस तरह से मोदी सरकार ने इस विवाद को सुलझाया, उस पर हाल ही में भारत के पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ने भी असंतोष प्रकट किया है.
दरअसल चीन में इस विवाद को लेकर असंतोष बना हुआ है. चीनी जनता को पक्का यकीन है कि चीन का पक्ष सही था. इसलिए उसे इस बात पर हैरानी है कि फिर चीन ने अपना कदम पीछे क्यों हटाया? चीनी लोग यह भी मानते हैं कि उनका देश एशिया की सबसे बड़ी सैन्य शक्ति है. फिर उसने भारत के दबाव में आकर सड़क बनाना बंद क्यों किया? चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी में भी इस मामले पर असंतोष है. इस माह की 18 तारीख को पार्टी की कांग्रेस (महाधिवेशन) होने जा रही है जिसमें यह फैसला लिया जाएगा कि पार्टी महासचिव और देश के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को अगले पांच साल के लिए दूसरा कार्यकाल दिया जाए या नहीं. ऐसे में, भारत के प्रति सख्त रवैया दिखाना चीन की मजबूरी है. भारतीय सेना को इस बार निमंत्रण न भेज कर चीन ने यही दिखाने की कोशिश की है कि उसकी नाराजगी पूरी तरह से दूर नहीं हुई है, भले ही ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के अवसर पर राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच भेंट हो गयी हो.
इसी माह चीन में चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच एक सालाना अभ्यास होने वाला था, लेकिन अब उसका होना भी खटाई में पड़ गया लगता है. हालांकि डोकलम में दोनों देशों के बीच बढ़ी गर्मागर्मी को शांत कर दिया गया है, लेकिन अभी भी उन जगहों के पास जहां सिक्किम-भूटान-तिब्बत सीमाएं एक बिन्दु पर मिल जाती हैं, दोनों देशों के सैनिक सामान्य से बहुत अधिक संख्या और युद्ध के लिए आवश्यक तैयारी के साथ डटे हुए हैं. यानी कुल मिलाकर डोकलम विवाद के तथाकथित रूप से "सुलझने” के बाद भी दोनों देशों की सेनाओं के बीच तनाव लगातार बना हुआ है. इस तनाव को राजनयिकों की गोलमोल भाषा इस्तेमाल करके छिपाया नहीं जा सकता.