आखिर बिहार में पुलिस-पब्लिक क्यों है आमने-सामने
२९ मार्च २०२२राज्य में पुलिस और जनता के बीच विश्वास का संकट इतना गहरा गया है कि अपने पिता की हत्या के मामले में कोई कार्रवाई न होता देख पूर्वी चंपारण जिले के हरसिद्धि में 14 साल के एक बच्चे ने खुदकुशी कर ली. वहीं पश्चिमी चंपारण जिले के बलथर थाने में हिरासत में युवक की मौत से उग्र लोगों ने थाना फूंक दिया. इस घटना में एक पुलिसकर्मी की भी मौत हो गई. बीते एक हफ्ते की घटनाओं पर ही नजर डालें तो स्थिति की भयावहता का सहज ही आकलन किया जा सकता है.
इन दोनों घटनाओं के अलावा खगड़िया जिले के बेलदौर प्रखंड के दिघौन गांव में शराब की सूचना पर स्थानीय पुलिस के साथ पहुंची उत्पाद विभाग की टीम पर लोगों ने हमला बोल दिया. हाथापाई कर राइफल छीनने की कोशिश की गई. दरभंगा जिले के कुशेश्वरस्थान में एक व्यक्ति की दो पत्नियों के बीच जमीन को लेकर हुए विवाद के दर्ज कराए गए मुकदमे के आधार पर पुलिस जब कार्रवाई को पहुंची तो गांव वालों के साथ झड़प हो गई. लोगों ने पुलिसवालों को बंधक बना लिया. बाद में पहुंची पुलिस ने लाठीचार्ज कर उन्हें छुड़ाया. इसी तरह मुजफ्फरपुर के सुस्ता में कार्रवाई करने पहुंची महिला दारोगा को अन्य पुलिसकर्मियों सहित बंधक बना उनसे दुर्व्यवहार किया गया. शिवहर जिले के पुरनहिया में अमृतसर में एक मजदूर की हत्या के विरोध में नाराज लोगों ने थाने पर हमला बोल दिया. पथराव में छह पुलिसकर्मी घायल हो गए. बाद में पुलिस ने लाठीचार्ज कर स्थिति को संभाला.
पूर्वी चंपारण जिले के पिपरा थाना क्षेत्र के बिन टोली गांव में एक महिला को डायन होने के आरोप में बंधक बनाकर उसके बाल काटे जाने तथा पीटे जाने की सूचना पर बचाव को पहुंची पुलिस पर लोगों ने हमला बोल दिया. हमले में थाना प्रभारी व दो जवान समेत पीड़ित महिला भी जख्मी हो गई. वहीं, पश्चिम चंपारण जिले के बलथर थाने की पुलिस की हिरासत में 35 वर्षीय अनिरुद्ध प्रसाद यादव नामक एक युवक की मौत से आक्रोशित लोगों ने थाने में तोड़फोड़, लूटपाट व आगजनी की. थाना परिसर में लगी गाड़ियों को फूंक दिया गया. भीड़ ने सीसीटीवी कैमरे को क्षतिग्रस्त कर दिया. इस घटना में पुरुषोत्तमपुर थाने के हवलदार रामजतन राय को जमकर पीटा गया और फिर उन्हें गोली मार दी गई. इससे उनकी मौत हो गई. कई थानों की पुलिस ने मौके पर पहुंचकर स्थिति को काबू में किया.
लोगों का आरोप था कि हंगामे के बाद पहुंची पुलिस ने बदले की भावना से घरों में घुसकर लोगों को बेरहमी से पीटा. यहां तक कि मृत अनिरुद्ध के घर की महिलाओं को भी नहीं बख्शा. आज भी गांव में स्थिति सामान्य नहीं हो सकी है. कई घरों पर ताला लटका है. पुलिस की कार्रवाई के डर से लोग फरार हो गए हैं. हालांकि, पुलिस का कहना था कि युवक की मौत पिटाई से नहीं बल्कि मधुमक्खी के काटने से हुई है. उसे बेहतर इलाज के लिए ले जाया जा रहा था. महज अफवाह पर लोगों ने हंगामा न किया होता तो उसकी जान बचाई जा सकती थी. पत्रकार एसके पांडेय कहते हैं, "इन घटनाओं का संदेश साफ है. इससे जाहिर है कि लोगों का पुलिस पर भरोसा कमतर होता जा रहा है और सदैव आपके लिए, आपके साथ होने का दावा करने वाली पुलिस भी कहीं न कहीं अपनी कार्यप्रणाली में बदलते समय के अनुसार आमूल-चूल परिवर्तन को तैयार नहीं है. पुलिस अभी भी लोकसेवक की छवि से कहीं न कहीं परहेज कर रही है."
व्यवस्था से आहत हो हताशा में दी जान
हरसिद्धि के दिवंगत आरटीआई एक्टिविस्ट विपिन अग्रवाल को न्याय न मिलता देख उनका किशोर पुत्र रोहित अग्रवाल खुद को आग लगा कर अपने घर की तीसरी मंजिल से कूद गया. कूदने के दौरान वह बिजली के हाईटेंशन तार की चपेट में बुरी तरह झुलस गया. बाद में अस्पताल में उसकी मौत हो गई. उसे यह मलाल था कि वह अपने पिता के हत्यारों को सजा नहीं दिला पा रहा है. विपिन अग्रवाल की हत्या 24 सितंबर, 2021 को हरसिद्धि प्रखंड कार्यालय के गेट पर गोली मारकर कर दी गई थी.
जान देने के पहले रोहित ने पूर्वी चंपारण के एसपी डॉ. कुमार आशीष से मिलने की भी कोशिश की थी. उसने पिता के हत्यारों की गिरफ्तारी के लिए धरना भी दिया था. उसके दादा विजय अग्रवाल का कहना है कि उनके पुत्र विपिन की हत्या के मामले में पुलिस की कार्रवाई सही दिशा में नहीं चल रही थी. जिस अतिक्रमित जमीन को मुक्त करने के लिए प्रयासरत होने के कारण विपिन की हत्या की गई थी, उस पर अभी भी अतिक्रमण बरकरार है. इसे लेकर रोहित जब एसपी से मिलने गया तो पुलिस वालों ने उसे भगा दिया. इससे न्याय मिलने की उसकी उम्मीद टूट गई और उसने अपनी जान दे दी.
हालांकि, एसपी डॉ. कुमार आशीष का कहना है कि वे विक्टिम कपंसेशन स्कीम की मीटिंग में चले गए थे इसलिए वे मिल नहीं सके. उन्होंने दुर्व्यवहार के आरोप को खारिज करते हुए रोहित की मौत को दुर्भाग्यपूर्ण बताया. रोहित की मौत के बाद शोकाकुल परिवार से मिलने आए चंपारण रेंज के डीआईजी प्रणव कुमार, डीएम शीर्षत कपिल व एसपी डॉ. कुमार आशीष से उसके दादा ने कहा कि अगर पुलिस सजग होती तो उनके बेटे विपिन की जान नहीं जाती.
पटना हाईकोर्ट के आदेश पर 2020 में हरसिद्धि अंचल कार्यालय के सामने अतिक्रमणकारियों के निर्माण पर बुलडोजर चला था. इस दौरान करीब सौ लोगों ने बहू मोनिका देवी को घसीटते हुए अतिक्रमित भूमि के पास ले जाकर पीटा था. इस मामले में प्राथमिकी भी दर्ज कराई गई थी, किंतु पुलिस ने कार्रवाई नहीं की. अपराधियों का मनोबल बढ़ता गया और अंतत: विपिन को गोलियों से भून डाला गया. व्यवस्था से आहत होकर रोहित की भी मौत हो गई. बेटे की मौत के बाद रोहित की मां मोनिका देवी तो अब हरसिद्धि में किसी भी सूरत में रहने को तैयार नहीं है.
इसी तरह पूर्वी चंपारण (मोतिहारी) जिले के चिरैया थाना के लालबेगिया गांव निवासी व ढाका प्रखंड के खडुआ परसा प्राथमिक विद्यालय के प्रिंसिपल राम विनय सहनी की हत्या के बाद उनके बड़े भाई लालबाबू सहनी ने आरोप लगाया है कि पुलिस की निष्क्रियता के कारण ही उनके भाई की हत्या हुई है. हत्या के पहले उनके भाई ने चिरैया थाने को बताया था कि गांव के ही कुछ बदमाशों से उनकी जान को खतरा है. उन्हें जल्द गिरफ्तार किया जाए. किंतु, इसके बाद भी पुलिस निष्क्रिय बनी रही.
निशाने पर रहे हैं आरटीआई एक्टिविस्ट
सामाजिक कार्यकर्ता मो. राशिद कहते हैं, "सोशल या आरटीआई एक्टिविस्ट काम तो समाज के लिए करता है, किंतु इसी बीच वह उन लोगों के निशाने पर आ जाता है, जिन्हें स्वार्थ पूर्ति में बाधा महसूस होने लगती है और अंतत: वे उसके जान के ग्राहक बन जाते हैं. याद कीजिए, मधुबनी के बुद्धिनाथ झा की हत्या का मामला. उनकी हत्या इसलिए कर दी गई कि उन्होंने अवैध क्लीनिक के खिलाफ शिकायत की थी, जिस वजह से कई बंद हो गए थे तथा कई अन्य पर जुर्माना लगाया गया था."
आरटीआई यानी सूचना का अधिकार प्रशासन में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से लाया गया. लेकिन, बिहार में आरटीआई एक्टिविस्ट्स को समय-समय पर इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है. जानकारी मांगने पर उन्हें प्रताड़ित किया जाता है. सबसे पहले जिला प्रशासन ही उनसे नाराज हो जाता है, क्योंकि अधिकतर मामले सरकारी राशि की लूट से संबंधित होते हैं. इन पर हमलों की संख्या में भी वृद्धि हुई है. प्रख्यात आरटीआई एक्टिविस्ट शिव प्रकाश राय कहते हैं, ‘‘बिहार में 2010 से अब तक 20 आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है, 300 से अधिक को विभिन्न मामलों में जेल भेजा जा चुका है. राज्य सरकार को इन हत्याओं के मामले में गवाहों को सुरक्षा तथा स्पीडी ट्रायल चलाकर अभियुक्तों को सजा दिलानी चाहिए.''
भ्रष्टाचार भी निराशा की बड़ी वजह
समाजशास्त्री एके वाजपेयी कहते हैं, "वाकई, विश्वास के संकट की यह स्थिति चिंताजनक है. जहां तक मैं समझता हूं , हर स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार आम आदमी को और परेशान कर रहा है. पुलिस के संदर्भ में लोगों के मन में यह बात घर करती जा रही है कि पैसा खर्च कर नाजायज को जायज में बदला जा सकता है. इनसे न्याय की उम्मीद बेमानी है. इसलिए जनता कानून को हाथ में लेने से परहेज नहीं कर रही."
मनोविज्ञान की अवकाश प्राप्त प्रोफेसर नीलम सिन्हा कहतीं हैं, "आप उस किशोर की मनोदशा को समझिए. उसे यह विश्वास हो गया था कि इस सिस्टम से उसे मदद नहीं मिलने वाली. इसलिए हार कर उसने अपनी इहलीला समाप्त कर ली. बलात्कार पीड़िताओं की आत्महत्या भी ऐसी ही हताशा का परिणाम है."
सच ही कहा गया है, आदमी का भरोसा जब टूटता है तो उसमें आक्रोश पैदा होता है. वह या तो उन्मादी हो जाता है या फिर स्वयं को नुकसान पहुंचाता है. पत्रकार पांडेय कहते हैं, "ऐसी स्थिति न तो समाज के लिए और न ही सरकार या पुलिस-प्रशासन के लिए उचित है. इससे अंततः अराजकता फैलेगी और लोकतांत्रिक ढांचा कमजोर ही होगा. आक्रामकता किसी समस्या का हल कतई नहीं हो सकता."