दुनिया के सामने सबसे बड़े खतरे
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की 'ग्लोबल रिस्क्स रिपोर्ट 2025' में बताया गया है कि दुनिया का परिदृश्य तेजी से बिखर रहा है. यह रिपोर्ट दुनिया के 900 से अधिक विशेषज्ञों की राय पर आधारित है.
घटती उम्मीदें और दुनिया का बिखराव
रिपोर्ट कहती है कि राजनीतिकर्यावरणीय, सामाजिक, आर्थिक और तकनीकी क्षेत्रों में बढ़ती समस्याएं लोगों को निराश कर रही हैं. 52 फीसदी विशेषज्ञ मानते हैं कि अगले 2 साल (2025-2027) में हालात अस्थिर रहेंगे, और 62 फीसदी का मानना है कि आने वाले 10 सालों में स्थिति और खराब होगी.
बढ़ते भू-राजनीतिक संघर्ष
देशों के बीच युद्ध (जैसे यूक्रेन पर रूस का हमला, मध्य पूर्व और सूडान में संघर्ष) 2025 का सबसे बड़ा जोखिम माना गया है. विशेषज्ञ कहते हैं कि कई देश एकतरफा फैसले ले रहे हैं, जिससे शांति और स्थिरता को खतरा है.
बढ़ते भू-आर्थिक तनाव
देशों के बीच आर्थिक तनाव, जैसे साइबर जासूसी और युद्ध, तेजी से बढ़ रहे हैं. व्यापारिक संघर्ष और एक दूसरे पर प्रतिबंध लगाने की प्रवृत्ति राजनीति और व्यापार दोनों को प्रभावित कर रही हैं.
सामाजिक विभाजन बढ़ा
धन और आय की असमानता सबसे बड़ी सामाजिक समस्या है, जो कई अन्य जोखिमों को बढ़ावा दे रही है. समाज में ध्रुवीकरण, मजबूरन पलायन और मानवाधिकारों का हनन जैसी समस्याएं निकट भविष्य में और गंभीर हो सकती हैं. बूढ़ी होती जनसंख्या के करण जापान और जर्मनी जैसे विकसित देशों में पेंशन और श्रम की कमी जैसे जोखिम बढ़ेंगे.
पर्यावरणीय समस्याएं
अत्यधिक मौसम परिवर्तन (जैसे बाढ़ और सूखा) और जैव विविधता का नुकसान अगले 10 सालों के सबसे बड़े खतरे हैं. रिपोर्ट कहती है कि युवा पीढ़ी और सरकारी संस्थाएं पर्यावरण को लेकर ज्यादा चिंतित हैं, जबकि प्राइवेट कंपनियां इसे प्राथमिकता नहीं देतीं.
तकनीकी जोखिमों की अनदेखी
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से जुड़े खतरे, जैसे गलत जानकारी का प्रसार, भविष्य में और गंभीर हो सकते हैं. बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में बड़े जोखिम हैं, जैसे जैविक आतंकवाद (बायोलॉजिकल टेररिज्म) और जीन एडिटिंग का दुरुपयोग.
अफवाहों और ध्रुवीकरण का बढ़ता खतरा
गलत और भ्रामक जानकारी से समाज में विश्वास की कमी हो रही है और राजनीतिक माहौल खराब हो रहा है. यह जोखिम 2027 में और बड़ा हो सकता है.
आर्थिक परेशानियां और महंगाई के दबाव
आर्थिक मंदी और महंगाई की चिंता थोड़ी कम हुई है, लेकिन इनका असर अभी भी असमानता को बढ़ा रहा है. जीवनयापन की लागत बढ़ने से समाज में तनाव बढ़ रहा है.
घटता अंतरराष्ट्रीय सहयोग
देशों का आंतरिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना वैश्विक सहयोग को कमजोर कर रहा है. विश्व एक बहुध्रुवीय व्यवस्था की ओर बढ़ रहा है, जहां चीन, भारत और खाड़ी देशों जैसी नई शक्तियां उभरेंगी.
सामूहिक सहयोग की जरूरत
रिपोर्ट कहती है कि गहरी होती दूरियों को पाटने और वैश्विक जोखिमों से निपटने के लिए देशों को एक साथ काम करना होगा. यदि अभी कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले दशक में लोगों की स्थिति पहले से भी बदतर हो सकती है.