बाघ और शेर बेच खाने वाले
राजनैतिक और आर्थिक समस्याओं से घिरे लेबनान के चिड़ियाघरों में रखे गए जानवर तक तस्करी के शिकार हो रहे हैं, खासकर वहां के शेर. देखिए उन्हें बचाने के लिए पशु अधिकार कार्यकर्ता कैसे प्रयास कर रहे हैं.
अमीरों का शगल
आर्थिक तंगी से निपटने के लिए जू में शेर, बाघ और चीते की दुर्लभ किस्मों की ब्रीडिंग कर अमीरों को पालतू बनाने के लिए बेचा जाता है. बाकी तमाम देशवासी तो इस जू में जानवरों को देखने आने के लिए 3 यूरो का टिकट तक खरीदने की हालत में नहीं हैं.
जानवरों के लिए अभियान
एनीमल्स लेबनान के निदेशक जेलन मायर बताते हैं, "इनमें से ज्यादातर जानवरों को जू से खरीदा जाता है, इसीलिए हम यहां ध्यान दे रहे हैं." डॉयचे वेले से बातचीत में मायर ने कहा, "एक जू को जानवर नहीं बेचने चाहिए. और इसीलिए इस अवैध तस्करी को रोकने के लिए सरकार ने कानून में नए सुधारों को मंजूरी दी है."
दुख भरी कहानी
कम खुराक और बेहद खराब स्थिति में रखी गई इस युवा शेरनी को तस्करों के हाथ से तो छुड़ा लिया गया, लेकिन बचाया नहीं जा सका. इसकी सर्जरी हुई और स्वस्थ करने के कई दूसरे प्रयास भी. लेकिन इस "क्वीन" शेरनी को जिंदा नहीं बचाया जा सका. इसी के साथ एनीमल्स लेबनान ने अपना अभियान छेड़ा. जू से बाहर निकाले जाने वाले शेर किसी निजी "केयर" में दो साल से अधिक नहीं जी पाते.
पैसों की तंगी
लेबनान के जू बहुत बुरे हाल में हैं. जानवरों को बेहद खराब स्थिति में रखा जाता है. एनीमल्स लेबनान का कहना है कि "इन्हें अक्सर बिना खाना, पानी या छाया के छोड़ा जाता है." जाजू शहर के जू में इन शेरों और बाघ को ही देखिए जो कुपोषित दिख रहे हैं.
पानी की किल्लत
जू के बत्तखों और दूसरे पक्षियों को भी पानी नहीं मिलता. ऐसे में बड़े जानवरों को खाने पीने के लिए क्या मिल पाता होगा इसकी कल्पना की जा सकती है. जू मालिक टिकट से होने वाली आय में दिलचस्पी नहीं रखते क्योंकि जानवरों की तस्करी से कहीं ज्यादा कमाई हो सकती है. एक शेर करीब 10,000 डॉलर में बिकता है.
हरकत में आई लेबनान की सरकार
इस शेर के बच्चे को किसी टीवी शो का हिस्सा बनाने के लिए जू से ले जाया गया था. ज्यादातर शावकों को निजी मालिकों को बेचा जाता है. लेबनान के कृषि मंत्री अकरम चेहाएब ने "तस्करों और गैरलाइसेंसी दुकानों से सभी जानवरों को जब्त करने के लिए सभी कानूनी रास्ते आजमाने" का वादा किया है.
बच्चों के लिए
कई अमीर पेरेंट्स अपने मासूस और नासमझ बच्चों की जिद पूरी करने के लिए इन जानवरों को खरीदते हैं. बजाए बच्चों को समझाने के उन्हें वे खिलौने के तौर पर दिए जाते हैं. ये बच्चे जब अपने खास पालतू जानवरों की तस्वीरें स्कूलों में अपने दोस्तों को दिखाते हैं तभी यह बात एनीमल्स लेबनान जैसे समूहों तक पहुंचती है.
मंकी बिजनेस
चिड़ियाघरों में जारी इस गलत कारोबार को रोकने के लिए यूरोपीय संघ से आर्थिक सहायता प्राप्त कई यूरोपीय जूकीपर्स को भी लेबनान के चिड़ियाघरों के कर्मचारियों के पास भेजा जाता है. यह लोग तस्करी करने वालों को समझा कर सही रास्ते पर लाने और उन्हें जानवरों के हितों के बारे में सोचने के लिए तैयार करते हैं.