विदेशों में कोयले वाले बिजली संयंत्र स्थापित नहीं करेगा चीन
२४ सितम्बर २०२१चीन ने उर्जा के उत्पादन के दौरान कार्बन के उत्सर्जन को कम करने की पहल की है. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने विदेशों में नए कोयला संयंत्रों का निर्माण बंद करने को लेकर प्रतिबद्धता जताई है. न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा में जिनपिंग ने ‘जलवायु परिवर्तन पर सक्रिय रूप से कार्रवाई करने और हरित और निम्न कार्बन ऊर्जा को बढ़ावा देने' की आवश्यकता पर बल दिया.
जिनपिंग ने संकल्प लिया कि चीन 2030 से पहले कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन कम करने का प्रयास तेज करेगा और 2060 से पहले कार्बन तटस्थता हासिल कर लेगा. उन्होंने यह भी कहा कि चीन दूसरे विकासशील देशों को हरित व निम्न-कार्बन ऊर्जा विकसित करने में भी सहयोग देगा.
विदेशों में कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों में चीन के निवेश को समाप्त करने का संकल्प, इस साल नवंबर महीने में स्कॉटलैंड के ग्लासको में होने वाले जलवायु परिवर्तन सम्मेलन कॉप26 में चर्चा का अहम विषय हो सकता है. इस सम्मेलन में पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने पर चर्चा होगी.
पिछले साल जापान और दक्षिण कोरिया ने विदेशों में नए कोयला संयंत्रों का निर्माण बंद करने का फैसला लिया था. इसके बाद से, चीन कोयला संयंत्रों का वित्तपोषण करने वाला दुनिया का सबसे बड़ा देश बन गया. चीन की मदद से विशेष रूप से एशिया में 600 नए कोयला संयंत्र स्थापित किए जाने हैं.
फैसले का स्वागत
चीन की इस घोषणा के बाद से अभी भी कई तरह की शंकाएं बनी हुई हैं. जैसे, चीन कोयला संयंत्रों का वित्तपोषण कब से बंद करेगा, सिर्फ सरकारें ऐसा करेंगी या निजी क्षेत्र के जरिए भी किसी तरह की सहायता उपलब्ध नहीं कराई जाएगी, क्या इससे मौजूदा संयंत्र प्रभावित होंगे वगैरह.
अमेरिकी जलवायु राजदूत जॉन केरी ने न्यूयॉर्क में डॉयचे वेले को बताया, "यह स्वागतयोग्य फैसला है. दुनिया के सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जक देश जलवायु परिवर्तन को लेकर साथ मिलकर काम कर रहे हैं. मुझे काफी खुशी है कि राष्ट्रपति शी ने यह महत्वपूर्ण निर्णय लिया है. यह उन प्रयासों की एक अच्छी शुरुआत है जिन्हें हमें ग्लासगो में हासिल करने की आवश्यकता है."
उन्होंने नवंबर महीने में होने वाले कॉप26 जलवायु शिखर सम्मेलन का जिक्र किया जिसमें पेरिस समझौते में तय किए गए लक्ष्यों पर चर्चा की जाएगी. वहीं, यूएन महासचिव एंटोनियो गुटेरश ने भी संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें अधिवेशन में अमेरिका और चीन द्वारा जलवायु कार्रवाई पर लिए गए संकल्प का स्वागत किया है.
गुटेरेश ने कहा, "जलवायु परिवर्तन पर पैरिस समझौते के तहत, वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य को पाने के लिये कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से खत्म करना काफी महत्वपूर्ण कदम है. कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लिए विशेष रूप से काम करना होगा." इस महासभा में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अंतरराष्ट्रीय जलवायु वित्तपोषण को बढ़ाकर, प्रति वर्ष 11 अरब 40 करोड़ डॉलर करने की बात कही है.
बीजिंग में रहने वाली ग्रीनपीस ईस्ट एशिया की नीति सलाहकार ली शुओ कहती हैं, "यह एक सकारात्मक कदम है. इस पहल से पूरी दुनिया में कोयले के इस्तेमाल को कम करने की दिशा में बड़ी कामयाबी मिलेगी. साथ ही, यह कॉप26 शिखर सम्मेलन को भी गति प्रदान करेगा."
वर्ल्ड रिसॉर्स इंस्टीट्यूट में जलवायु और अर्थशास्त्र के वाइस प्रेसिडेंट हेलन माउंटफर्ड कहते हैं, "चीन के संकल्प से पता चलता है कि कोयले की आग बुझाने के लिए, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सार्वजनिक वित्तपोषण को बंद किया जा रहा है. दक्षिण कोरिया और जापान के बाद चीन का संकल्प उस ऐतिहासिक मोड़ को दिखाता है जो दुनिया को सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले जीवाश्म ईंधन से दूर ले जाता है."
क्या निजी निवेशक निवेश करेंगे?
बोस्टन विश्वविद्यालय वैश्विक विकास नीति केंद्र के निदेशक डॉ. केविन पी. गैलागर कहते हैं कि चीन द्वारा कोयला संयंत्रों में निवेश से दूर होने के बावजूद, निजी क्षेत्र विदेशों में स्थित 87 प्रतिशत कोयला संयंत्रों का वित्तपोषण जारी रख सकते हैं.
वह कहते हैं कि अगर निजी क्षेत्र कोयला संयंत्रों का वित्तपोषण जारी रखते हैं, तो जलवायु के वैश्विक लक्ष्यों को पूरा नहीं किया जा सकेगा. उन्होंने कहा, "अब जब दुनिया की प्रमुख सरकारें साथ मिलकर जलवायु परिवर्तन को लेकर काम कर रही हैं और विदेशी कोयला संयंत्रों का वित्तपोषण न करने का फैसला किया है, तो निजी क्षेत्रों को भी इस नियम का पालन करना चाहिए."
माउंटफर्ड भी इस बात से सहमत हैं कि चीनी कंपनियों और बैंकों को "पेरिस समझौते के लक्ष्यों के मुताबिक इस नई दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है." वहीं, सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी ऐंड क्लीन एयर की प्रमुख विश्लेषक लॉरी मायलीविर्टा का मानना है कि यह घोषणा निजी निवेशकों को हतोत्साहित करेगी.
लॉरी कहती हैं, "इस उच्चस्तरीय बयान से स्पष्ट होता है कि विदेशों में कोयला बिजली परियोजनाओं के लिए कोई भी नया वित्तपोषण या इक्विटी निवेश किसी भी चीनी बैंक या बिजली कंपनी के लिए नुकसानदायक होगा. जिन परियोजनाओं को अभी तक किसी तरह की वित्तीय सहायता नहीं मिली है, वे बंद हो सकती हैं. इसका मतलब यह होगा कि वियतनाम, बांग्लादेश और इंडोनेशिया में जिन संयंत्रों को स्थापित किया जाना था, उन्हें स्थापित करना काफी मुश्किल हो जाएगा."
दरअसल, चीनी राष्ट्रपति के बयान को लेकर, चीनी खनिज संसाधनों की दिग्गज कंपनी त्सिंगशान ने पहले ही कह चुकी है कि वह इंडोनेशिया में कोयला बिजली संयंत्रों का निर्माण बंद कर देगी. इंडोनेशिया चीन का सबसे बड़ा विदेशी कोयला बाजार है.
चीन के ऊर्जा विश्लेषक और चाइना डायलॉग के जलवायु लेखक टॉम बैक्सटर ने एक ट्वीट किया और कहा, "कंपनी ने कहा है कि कोयला संयंत्रों में निवेश को समाप्त करने का उसका निर्णय राष्ट्रपति शी जिनपिंग के घोषणा की मूल भावना को सक्रिय रूप से लागू करेगा."
चीन का घरेलू उत्सर्जन भी काफी ज्यादा
विदेश में कोयले के नए संयंत्र के निर्माण पर रोक लगाने की घोषणा करते समय देश में कोयला से होने वाले कार्बन उत्सर्जन की बात नहीं की गई. ग्रीनपीस ईस्ट एशिया के ली शुओ के अनुसार, चीन विदेशों में कोयले से बिजली का उत्पादन करने वाले जितने संयंत्र चला रहा है, उसके 10 गुना देश में हैं. विदेशों में जहां 100 गीगावाट का उत्पादन हो रहा है, वहीं देश में करीब 1200 गीगावाट का उत्पादन हो रहा है. शुओ का कहना है कि देश में कार्बन उत्सर्जन ‘सबसे बड़ी समस्या' है.
जिनपिंग ने हरित सुधार और विकास को हासिल करते हुए, हरित और निम्न-कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर तेजी से बदलाव की आवश्यकता पर बल दिया है. इन सब के बावजूद, शुओ को उम्मीद है कि जिनपिंग की घोषणा से ‘घरेलू मोर्चे पर अधिक प्रगति' होगी.
कार्बन ट्रैकर में डेटा वैज्ञानिक डूरंड डिसूजा कहते हैं, "यह घोषणा मजबूत संकेत है कि अब दुनिया में कोयले का इस्तेमाल कम होना शुरू हो जाएगा. चीन इस दिशा में आगे बढ़ते हुए 163 गीगावाट के कोयले के नए संयंत्र स्थापित करने की योजना रद्द कर सकता है. अब समय आ गया है कि चीन, सबसे बड़ा कोयला बिजली उत्पादक के तौर पर बनाई गई अपनी छवि को दूर करे और कम लागत वाले नवीकरणीय उर्जा की ओर कदम बढ़ाए."